छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र के घने जंगल, कभी माओवादियों का मजबूत गढ़ माने जाते थे. लेकिन आज यही जंगल सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच घमासान लडा़ई चल रही है. यह संघर्ष न सिर्फ हथियारों के दम पर हो रहा है, बल्कि रणनीति, धैर्य और ज़मीन पर पकड़ की जंग भी है.
यही वजह है कि इन जंगलों को अब भारत के सबसे ख़तरनाक इलाकों में गिना जाने लगा है.
इन्हीं जंगलों के भीतर आदिवासी रहते हैं. सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच चल रही जंग में आदिवासी की स्थिति क्या है? यह समझा जाना बेहद ज़रूरी है.
बस्तर के जंगल में पिछले करीब करीब 40 साल से माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच चल रही जंग में पहली बार सुरक्षा बल जीत रहे हैं, क्योंकि अब सुरक्षा बलों की तरफ़ से आदिवासी लड़के लड़कियां लड़ रहे हैं.
बस्तर में कई बार यह चिंता भी सामने आ रही है कि इस जंग की कीमत आदिवासी अपनी जान दे कर चुका रहा है. एक तरफ़ पुलिस पर आरोप है कि वह नक्सलवाद को निपटाने की हड़बड़ी में आम आदिवासी को भी मार रही है.
उधर माओवादी भी पुलिस मुखबिर बता कर आदिवासियों को मौत के घाट उतार रहे हैं.
इस पूरे संघर्ष के बीच एक सवाल बार-बार उठता है — क्या माओवाद वाकई अपने अंतिम दौर में है? क्या 2026 तक सरकार द्वारा तय की गई समयसीमा में इसे पूरी तरह खत्म किया जा सकेगा?
इन सवालों की तह तक जाने के लिए ‘मैं भी भारत’ की टीम इंद्रावती के जंगलों में पहुंची. हमने उन आदिवासियों से बात की जो हर दिन इस संघर्ष के साए में जीते हैं.
‘मैं भी भारत’ की यह ग्राउंड रिपोर्ट, संघर्ष के बीच की सच्चाई, आदिवासियों की पीड़ा और बदलते बस्तर की कहानी कहती है. यह वीडियो ज़रूर देखें और समझें कि देश के इस हिस्से में क्या चल रहा है — और क्यों यह हम सबके लिए मायने रखता है.