HomeAdivasi Dailyकेरल की बदलती जीवनशैली से बीमारी और कुपोषण बढ़े

केरल की बदलती जीवनशैली से बीमारी और कुपोषण बढ़े

आदिवासी इलाक़ों में जीवनशैली में आ रहे बदलाव लाज़मी हैं और इन्हें रोका नहीं जा सकता है. लेकिन यह चिंता की बात है कि जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की वजह से जिन आदिवासियों की मौत हुई है उनमें से 70 प्रतिशत को इलाज नसीब नहीं हुआ था.

केरल की आदिवासी जनसंख्या की जीवनशैली में बदलाव आ रहा है. इस बदलाव की वजह से सेहत से जुड़ी समस्याएँ भी पैदा हो रही हैं. केरल में जीवनशैली से जुड़ी बीमारियाँ लगभग सभी समुदायों में चिंता का कारण है. 

राज्य में 40 साल से कम उम्र में लोगों की मृत्यु की दर बढ़ी है. इसका एक बड़ा कारण जीवनशैली से जुड़ी आदतों में परिवर्तन बताया जाता है. लेकिन आदिवासी आबादी में भी यह समस्या है, इसका अंदाज़ा नहीं था. 

केरल में फ़ूड कमीशन के चेयरमैन केवी मोहन कुमार के नेतृत्व में एक पैनल ने आदिवासी इलाक़ों में एक अध्ययन किया है. इस अध्ययन के बाद  यह बताया गया है कि राज्य के आदिवासी इलाक़ों में भी जीवनशैली में बड़े बदलाव देखे जा रहे हैं.

इन बदलावों में खाने की आदतों में बड़े बदलाव आ रहे हैं. इस पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इन बदलावों की वजह से आदिवासी जनसंख्या में बीमारियों के गंभीर ख़तरे पैदा हो रहे हैं. 

अपने अध्ययन के दौरान इस टीम ने पाया कि आदिवासी गाँवों में बच्चे अब अपने परंपरागत खाने को पसंद नहीं कर रहे हैं. आदिवासी बस्तियों में भी भी अब जंक फ़ूड पहुँच रहा है. 

आदिवासी गाँवों में लोगों से बातचीत में यह तथ्य भी सामने आया है कि वहाँ बच्चों और जवान लोगों में किडनी की बीमारी मिल रही है. इसके अलावा डायबिटीज़ जैसी बीमारी भी आदिवासी आबादी में पहुँच गई है. 

यहाँ के कई आदिवासी समुदायों में जन्म दर में कमी भी देखी जा रही है. इसकी वजह से कई आदिवासी समुदायों की जनसंख्या में कमी भी दर्ज हो सकती है.

जन्म दर में कमी की एक बड़ी वजह लड़कियों का कुपोषित होना है. केरल के कई आदिवासी समुदायों में लड़कियाँ इतनी कुपोषित होती हैं कि वो गर्भवती नहीं हो पाती हैं. 

ये लड़कियाँ अगर गर्भवती हो भी जाती हैं तो गर्भ सँभाल नहीं पाती हैं. चोलानायकर और कादर नाम के समुदायों में तो यह समस्या काफ़ी गंभीर है.

केरल के आदिवासी इलाक़ों में नशे की लत भी एक बड़ी समस्या बन रही है. 

पोषण कार्यक्रम लागू होने में कमियाँ 

इस पैनल ने अपने अध्ययन में यह पाया है कि यहाँ पर 6 महीने से 3 साल के बच्चों के लिए ‘अमृतम न्यूट्रीमिक्स’ नाम का जो कार्यक्रम चल रहा है, वह सही काम नहीं कर रहा है. 

पैनल को शिकायत मिली कि इन आदिवासी इलाक़ों में राशन की दुकानों पर जो चावल फ़्री में आदिवासियों को दिया जाना चाहिए था, उसके पैसे लिये जा रहे थे. इस टीम ने इन शिकायतों के आधार पर ऐसे कई दुकानदारों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया है. 

समस्या केरल तक सीमित नहीं है

नवंबर 2022 में आईसीएमआर (ICMR) ने देश के 12 आदिवासी ज़िलों में एक अध्ययन किया. इस अध्ययन में यह पाया गया कि आदिवासी इलाक़ों में जीवनशैली में बदलाव से जुड़ी बीमारियों की वजह से लोगों की मौत की संख्या बढ़ी है.

लेकिन इस रिपोर्ट में एक बेहद ज़रूरी तथ्य भी सामने आया था. इस रिपोर्ट में यह बताया गया था कि जिन आदिवासियों की मृत्यु हुई उनमें से 70 प्रतिशत की मौत घर पर ही हुई थी.

यानि उन्हें अस्पताल में इलाज नहीं मिल पाया था. यह आदिवासी इलाक़ों की सबसे बड़ी चुनौती है. दुनिया बदल रही है और संचार के साधन आदिवासी इलाक़ों तक भी पहुँचे हैं.

इसके अलावा सरकार भी चाहती है कि आदिवासी भी मुख्यधारा का हिस्सा बने, इसलिए उनकी जीवनशैली में बदलाव आना लाज़मी है. इस बदलाव को रोकना किसी के बस की बात नहीं है.

इसलिए ज़रूरी ये है कि आदिवासी इलाक़ों में नियमित रूप से स्वास्थ्य संबंधी अध्ययन किये जाएँ और उनके परिणामों के हिसाब से वहाँ पर स्वास्थ्य सेवाओं का निर्माण किया जाए.

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