HomeAdivasi Dailyओडिशा में आदिम जनजातियों के एक तिहाई लोग सिकल सेल पॉज़िटिव हैं

ओडिशा में आदिम जनजातियों के एक तिहाई लोग सिकल सेल पॉज़िटिव हैं

सिकल सेल रोग से छुटकारा पाने के लिए यह जरूरी है कि युवक और युवतियां शादी से पहले अपना ब्लड टेस्ट करवाएं. अगर दोनों में रोग के लक्षण पाए जाएं तो विवाह नहीं करना चाहिए. इससे बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है.

ओडिशा के गजपति जिले के तीन ब्लॉकों में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTG) की लगभग एक तिहाई आबादी सिकल सेल एनीमिया से पॉजिटिव है.

जिला प्रशासन द्वारा पिछले एक महीने में 13 विशेष शिविरों में तीन गुम्मा, मोहना और आर. उदयगिरि ब्लॉकों में कुल मिलाकर 365 पीवीटीजी की जांच की गई. 

आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि उनमें से 126 को सिकल सेल एनीमिया है और उनमें से 79 की उम्र 18 वर्ष से कम है. गजपति प्रशासन ने AMLAM (एनीमिया मुक्त लक्ष्य अभियान) के तहत विभिन्न विभागों को शामिल करके शिविरों का आयोजन किया. 

जिसे राज्य सरकार ने दो महीने पहले जनजातीय इलाकों में सिकल सेल एनीमिया के मामलों का पता लगाने के लिए शुरू किया था, जहां पीवीटीजी जैसे सौरा, लंजिया सौरा और डोंगरिया कोंध रहते हैं.

जिन लोगों का टेस्ट पॉजिटिव आया है, उन्हें नि: शुल्क ब्लड, दवाइयां और सामाजिक सोशल सिक्योरिटी स्कीम के तहत पेंशन आदि जैसे सरकारी लाभों का लाभ उठाने के लिए दिव्यांग प्रमाण पत्र दिया जाएगा.

गजपति के कलेक्टर लिंगराज पांडा ने कहा, “हम सिकल सेल एनीमिया के मामलों का पता लगाने के लिए और अधिक क्षेत्रों में विशेष योजनाओं का संचालन करेंगे, विशेष रूप से आदिवासी आबादी वाले क्षेत्रों में. ड्राइव का दूसरा चरण फरवरी में शुरू होगा.”

उन्होंने कहा कि गजपति जिले में लगभग 300 सिकल सेल एनीमिया पीड़ितों का पता चला है और उन्हें सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत लाभ मिलता है.

ओडिशा में आदिम जनजातियों में सिकल सेल ज़्यादा बड़ी समस्या है

मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी (CDMO) पीके पात्रा ने कहा कि सिकल सेल एनीमिया विरासत में मिला रक्त विकार का एक रूप है, जो रक्त संबंधों के बीच विवाह के कारण आदिवासियों में फैलता है. उन्होंने कहा, “टेस्टिंग के अलावा आदिवासियों में इस आनुवंशिक विकार के बारे में जागरूकता भी पैदा की गई है.”

उन्होंने कहा कि जिन लोगों को सिकल सेल एनीमिया है वे लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं अगर इसका जल्द पता चल जाए और इलाज किया जाए. 

उन्होंने आगे कहा, “सिकल सेल रोग से छुटकारा पाने के लिए यह जरूरी है कि युवक और युवतियां शादी से पहले अपना ब्लड टेस्ट करवाएं. अगर दोनों में रोग के लक्षण पाए जाएं तो विवाह नहीं करना चाहिए. इससे बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है.”

आदिवासी आबादी में सिकल सेल एनीमीया पीड़ितो की संख्या बहुत ज्यादा है. 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में तीन प्रतिशत आदिवासी आबादी सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित है और अन्य 23 प्रतिशत सिकल सेल वाहक हैं और सिकल सेल जीन को अपने बच्चों तक पहुंचाते हैं. 

महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और गुजरात के आदिवासी इलाक़े भी चपेट में हैं

महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, ओडिशा और  तमिलनाडु इन राज्यों के आदिवासी इलाकों को सिकल सेल ने जकड़ रखा है. महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल नंदुरबार जिले में सिकल सेल एनीमिया (SCA) के रोगियों की संख्या सबसे अधिक है.  

बावजूद इसके जिले में बीमारी के इलाज के लिए बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं, दवाओं और विशेषज्ञों की कमी है.

उचित इलाज के बिना रोगियों में ये बीमारी बढ़ जाती है.  इस बीमारी से कई लोगों की मौत हो जाती है लेकिन उनकी मौत का कारण रिकॉर्ड नहीं होता है.  

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, नंदुरबार में राज्य के सिकल सेल एनीमिया के 21 प्रतिशत से अधिक रोगी हैं. 18 हज़ार रजिस्टर रोगियों में से 3,842 नंदुरबार से हैं. 

2009 और 2015 के बीच किए गए एक अध्ययन – ‘नंदुरबार जिले के ग्रामीण इलाकों में सिकल सेल एनीमिया’ से पता चला है कि धड़गांव और नंदुरबार तालुका सूची में सबसे ऊपर हैं. वहीं मृत्यु दर 10 वर्ष से कम आयु में सबसे अधिक थी.

मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में भी सिकल सेल एनीमीया पीड़ितों की संख्या ज्यादा है. लेकिन सिकल सेल वाहक और बीमारी से प्रभावित लोगों का कोई डेटाबेस नहीं है. मध्य प्रदेश के 45 में से 22 जिले सिकल सेल बेल्ट के अंतर्गत आते हैं. इसके अलावा राज्य में 14 अनुसूचित जनजाति बहुल जिले हैं.

राज्य सरकार ने सिकल सेल से पीड़ित मरीजों को विकलांग मान लिया है और जो मरीज 40 प्रतिशत से अधिक सिकल सेल एनीमिया से प्रभावित है उनके विकलांगता प्रमाण पत्र बनाए जा रहे हैं. 

सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित मरीज और परिजन सरकारी अस्पतालों में मिलने वाली नि:शुल्क सुविधाओं के बारे में अनजान हैं. इसी कारण वे निजी जांच केन्द्रों और निजी चिकित्सकों से इलाज में हजारो रूपये खर्च कर देते हैं. 

जबकि सरकारी जिला अस्पतालों में सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित मरीजों को जांच और दवाइयां निशु:ल्क मिलती है.

गुजरात में लंबे समय से सिकल सेल के बारे में जागरूकता अभियान चला रहे डॉक्टर दक्सर पटेल कहते हैं, “इस बीमारी के लिए जब हम स्कैन करते हैं तो 80 प्रतिशत पीड़ित में लक्षण नहीं मिलते हैं. उन्हें दवाई की भी ज़रूरत नहीं होती है. लेकिन उनके बच्चों में यह बीमारी हो जाती है. इसलिए इन मरीज़ों की पहचान भी ज़रूरी है.”

वे कहते हैं, “आदिवासी इलाक़ों में इस बीमारी के बारे में जागरुकता बेहद ज़रूरी है. पिछले 6 साल में गुजरात में इस दिशा में सरकार ने कुछ काम किया है. अब अलग से सिकल सेल के लिए विभाग बना दिया गया है.”

सरकार की पहल

जनजातीय कार्य मंत्रालय के मुताबिक भारत में 86 जन्मे आदिवासी बच्चों में से एक सिकल सेल रोग से पीड़ित होता है. जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने आदिवासी क्षेत्रों में रोगियों और स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के बीच की खाई को पाटने के लिए सिकल सेल रोग सहायता कॉर्नर लॉन्च किया है.

ये पोर्टल एक वेब-आधारित रोगी संचालित पंजीकरण प्रणाली प्रदान करता है जो भारत में आदिवासी लोगों के बीच एससीडी से संबंधित सभी सूचनाओं को इकट्ठा करेगा, जिसमें बीमारी या लक्षण होने पर उन्हें खुद को रजिस्टर करने के लिए एक प्लेटफॉरम देना शामिल है.

इसके अलावा सिकल सेल रोग पर राष्ट्रीय परिषद ने समय पर और प्रभावी कार्रवाई के लिए भारत सरकार और हेल्थ केयर प्राइवेट और पब्लिक निकायों के वरिष्ठ अधिकारियों का गठन किया गया है.

सिकल सेल एनीमिया

सिकल सेल एनीमिया एक आनुवांशिक विकार है जिसे पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता लेकिन इसका इलाज संभव है. सिकल सेल एनीमिया में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी के कारण फेफड़ों तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है. यह आपातकालीन स्थिति पैदा कर सकता है जैसे छाती में दर्द, सांस लेने में तकलीफ बच्चों को बुखार होना आदि.

हंसिए के आकार रक्त कोशिकाओं द्वारा रक्त–वाहिकाओं को बाधित करने के कारण तेज दर्द उठ सकता है. आमतौर पर पेट, छाती और हड्डियों के जोड़ों में तेज चुभने वाला दर्द होता है. दर्द शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है.

इस बीमारी में डिहाइड्रेशन, बुखार, शरीर के तापामान में उतार-चढ़ाव, तनाव आदि भी हो सकता है. बच्चों में ये सभी लक्षण कुछ दिनों से लेकर सप्ताह भर तक नजर आ सकते हैं. बच्चे में इनसे लक्षण अलग भी हो सकते हैं. बच्चों के लक्षणों को देखकर उसका इलाज किया जाता है.

सिकल सेल माता या फिर पिता में से किसी एक से बच्चे को विरासत में मिला है तो इसे सेल ट्रेट या सिकल सेल कैरियर (वाहक) कहा जाता है. 

अगर माता-पिता, दोनों से बच्चे को सिकल सेल मिलती है तो इसे सिकल सेल रोग या सिकल सेल एनीमिया (होमेजिगससिकल सेल) कहा जाता है. सिकलहीमोग्लोबिन मिलने का कारण सिर्फ माता-पिता हैं. इसके अलावा इसका दूसरा कोई कारण नहीं है.

सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित व्यक्ति लगभग 40 वर्ष तक ही जीवित रहता है. हालांकि, समय के साथ बीमारी को कम करने के लिए जरूरी कदम, अत्याधुनिक इलाज और थेरेपी ने इस बीमारी के बोझ को काफी कम किया है.

विशेष अस्पतालों की ज़रूरत है

सिकल सेल रोगियों की जांच और उपचार के लिए आधुनिक उपकरणों वाला एक विशेष अस्पताल समय की मांग है. ऐसा अस्पताल जो लोगों की पहुंच से दूर न हो, जहां जैनेटिककाउंसलिंग हो और जरूरी हस्तक्षेप के उपाय सुझाए जाएं.

अनुवांशिक रक्त विकार के लिए इस विशेष अस्पताल में प्रशिक्षित पूर्णकालिक स्टाफ, डॉक्टर और हेमेटोलॉजिस्ट को सिकल सेल की मामलों को कम करने के लिए लंबा रास्ता तय करना होगा.

सिकल एनीमिया से निपटने के लिए ज़रूरी बातें

. सिकल सेल एनीमिया को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता लेकिन इसका इलाज हो सकता है. नियमित जागरूकता अभियान और शिविरों के जरिए लोगों को सिकल सेल और इसके प्रभावों के बारे में जानकारी दी जा सकती है.

. रोग के प्रसार को रोकने में मैरिजकाउंसलिंग लंबे समय तक के लिए असरदार साबित होगी.

. नवजात बच्चे से लेकर बुर्जुगों तक सभी आयु वर्ग के लोगों की जांच जरूरी है. किशोरों, प्रसव पूर्व महिलाओं और नवजात शिशुओं पर खास तौर से ध्यान देने की जरूरत है.

. प्रसव पूर्व महिलाओं की सिकल सेल जांच करते समय पति की भी जांच जरूरी है ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि आने वाले बच्चे को कोई ख़तरा ना हो. अगर गर्भ में पल रहे बच्चे में सिकल सेल रोग पाया जाता है तो ऐसे में कानूनी तौर पर गर्भपात की सलाह दी जा सकती है.

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