कमार जनजाति (Kamar tribe) छत्तीसगढ़ (tribes of Chhattisgarh) राज्य के गरियाबंद, धमतरी और महासमुंद ज़िले में मुख्य रूप से रहते हैं. छत्तीसगढ़ की कमार जनजाति विशेष रूप से कमज़ोर जनजाति (पीवीटीजी) है.
पीवीटीजी (PVTG) में उन आदिवासी समुदायों को रखा जाता है, जो आर्थिक रूप से कमज़ोर हो, खेती में पांरपरिक तकनीक का इस्तेमाल करते हो, जनसंख्या घट रही हो.
2011 जनगणना के अनुसार इस जनजाति का जनसंख्या 26530 है. जिनमें 13070 पुरुष 13460 स्त्रियां हैं.
कमार जनजाति की उत्पत्ति
कमार आदिवासियों की उत्पत्ति गोंड समुदाय से मानी जाती है. कमार आदिवासी कहते हैं कि एक ज़माने में उनके समुदाय सेना में काम करते हैं. लेकिन फ़िलहला वे खेती-बाड़ी और मज़दूरी का काम करते हैं.
कमार आदिवासी घर बनाने से पहले तय भूमि पर स्थानीय देवी देवताओं की पूजा करते हैं. पूजा करने के बाद भूमि पर चवाल के 21 दाने रखे जाते हैं. अगर अगले दिन यह चवाल के दाने बिखरे नहीं होते, तो भूमि को शुभ माना जाता है.
इन आदिवासियों के घरों के एक कोने में पूर्वज देवी देवताओं का स्थान होता है, जिसे पीतर कुरिया कहा जाता है.
कमार आदिवासियों के प्रमुख स्थानीय देवी-देवता – छोटेमाई-बड़ेमाई वामनदेव, पूर्वज देव, मागरमाटी, शीतला माता, ठाकुरदेव, भीमा, माता पहुंचानी इत्यादि हैं.

रोज़ी-रोटी के साधन
कमार आदिवासियों की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से खेती पर निर्भर है. यह आदिवासी झूम खेती करते हैं. इस खेती की तकनीक को कमार भाषा में बेवरा खेती या डहिया खेती कहत हैं.
यह आदिवासी धान, कुरथी, कोदो -कुटकी आदि आनाजों की खेती करते हैं.

इसके अलावा यह आदिवासी बांस से टोकरी और अन्य चीज़ें बनाते हैं. आदिवासी जंगलों से वनोपज जैसे लकड़ी, महुआ के फल, महुआ इकट्ठा करते हैं.
कमार आदिवासी खेती के अलावा महुआ के फल(डोरी), तेंदू के पत्ते, साल के पत्ते और बीज आदि को बाज़ारों में बेचते हैं.

इनके घरों में आज भी तीर-धनुष और मछली पकड़ने का जाल दीवारों में लटका रहता है.
कमार आदिवासियों को दो भागों में बांटा गया है. पहले वो है जो पहाड़ों में रहते हैं, इन्हें पहाड़पट्टिया कहा जाता है.
वहीं जो कमार समूह समतल इलाकों में रहते हैं, उन्हें बुन्दरजीवा कहा जाता है.
कमार आदिवासियों में शिशु पैदा होने के 6 दिन बाद नामकरण किया जाता है. इसके अलावा बच्चे की मां को काकेपानी नाम का काड़ा पिलाया जाता है.
इसके साथ ही कमार जनजाति में मृत्यु का तीन दिनों तक शोक मनाया जाता है.. इसके अलावा मृत्यु के पांचवे और तेरहवें दिन सभी को खाना खिलाया जाता है.
कमार जनजातियों में शादी

कमार आदिवासियों में लड़के के मुछे आने पर और लड़की के मासिक धर्म आने के बाद विवाह योग्य माना जाता है.
इन आदवासियों में बुआ की लड़की के साथ शादी मान्य होती है और उन्हें प्राथमिकता दी जाती है.
इसके अलावा कमार आदिवासियों के विवाह स्थल पर महुआ की लकड़ी और मड़वा गाड़ा जाता है.
वहीं जब दुल्हन शादी के बाद अपने ससुराल जाती है, तो सभी लोग शिकार करने जंगल जाते है, उसे मृग मारना कहा जाता है.
दीपावली पर्व के अवसर पर कमार आदिवासी महिलाएं सुआ नृत्य करते हैं. कमार आदिवासियों में महिलाएं और पुरूष मिलकर शादियों में नाच-गाना करते हैं.
कमर आदिवासियों के मुख्य त्योहार नवाखाई, बीजबोनी, हरेली, माटीजात्रा, होली, दशहरा, दीपावली, छेरछेरा, पोरा इत्यादि हैं.
कमार आदिवासियों की चुनौतियाँ
कमार आदिवासी को पीवीटीजी (आदिम जनजाति) की श्रेणी में रखा गया है. इस समुदाय के विकास के लिए छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में विशेष योजनाएं बनती रही हैं.
इन योजनाओं के ज़रिए कमार आदिवासियों की स्थिति ना के बराबर ही बदली है. हालाँकि यह दावा किया जाता है कि कमार आदिवासियों में साक्षता दर बढ़ी है. लेकिन अभी भी इस आदिवासी समुदाय में ग़रीबी और अशिक्षा एक बड़ी चुनौती है.
साल 1984 से साल 2017 कम से कम पांच शोध यह बताते हैं कि कमार आदिवासियों की स्थिति लगातार ख़राब ही होती गई है.
इन शोध पत्रों का निचोड़ अगर निकाला जाए तो भूमि से अलग होना, अशिक्षा, बंधक मजदूर, बेरोजगारी, निर्धनता, ऋणग्रस्तता, प्राकृतिक आपदाएं कमार आदिवासी समुदाय के विकास के बड़े कारण हैं.
फ़िलहाल देश में प्रधानमंत्री जनमन योजना पीवीटीजी समुदायों के विकास पर फ़ोकस करके चलाई जा रही है. इस योजना के तहत कमार आदिवासी समूह को कितना फ़ायदा मिला है इसके आंकड़े नहीं मिलते हैं.
यह उम्मीद की जानी चाहिए कि यह योजना किसी हद तक इस समुदाय का भला कर सकेगी.