HomeAdivasi Dailyअबूझमाड़ के राकेश ने ‘खेलो इंडिया बीच गेम्स’ में दिखाया दम-खम

अबूझमाड़ के राकेश ने ‘खेलो इंडिया बीच गेम्स’ में दिखाया दम-खम

अब भारत सरकार खेलो इंडिया जैसी परियोजनाओं में आदिवासी खेलों का शामिल कर रही है. यह आदिवासी समाज को आगे लाने का एक सशक्त ज़रिया बन सकता है.

छत्तीसगढ़ के सुदूर जंगलों से निकलकर एक आदिवासी किशोर ने आज देशभर में अपनी पहचान बनाई है.

नारायणपुर ज़िले के अबूझमाड़ क्षेत्र के रहने वाले 15 वर्षीय राकेश कुमार वर्दा ने ‘खेलो इंडिया बीच गेम्स’ में मल्लखंभ में शानदार प्रदर्शन कर सभी को चौंका दिया है.

यह प्रतियोगिता गुजरात के दीव में हुई थी. इस प्रतियोगिता में देश के कोने-कोने से खिलाड़ी पहुंचे थे. हालांकि मल्लखंभ को प्रतियोगिता में औपचारिक खेल के रूप में शामिल नहीं किया गया था लेकिन राकेश को उसके शानदार प्रदर्शन के लिए प्रतीकात्मक रूप से स्वर्ण पदक दिया गया.

उसके प्रदर्शन ने यह दिखा दिया कि प्रतिभा जंगलों की सीमाओं में बंधी नहीं रहती.

माँ की मौत लेकिन हौसला नहीं टूटा

राकेश जब 2022 में गुजरात नेशनल गेम्स से लौटा तो उसे दो दिन बाद पता चला कि उसकी माँ की मृत्यु हो चुकी है. उसका गांव कुटुल इतना दूर और कटे हुए इलाके में है कि ये बड़ी खबर भी समय पर नहीं मिल पाई.

इस गहरे सदमे के बावजूद, राकेश ने अभ्यास नहीं छोड़ा और अपनी लगन से आगे बढ़ता रहा.

राकेश की जिंदगी आसान नहीं रही. लेकिन ज़िंदगी की तकलीफ़ों ने राकेश को रोका नहीं बल्कि और मज़बूत बनाया है.

पिता तुल्य प्रशिक्षक

राकेश ने आठ साल की उम्र से ही मल्लखंभ की शुरुआत की थी.

उसे इस खेल से जोड़ने वाले एसटीएफ (स्पेशल टास्क फोर्स) अफसर मनोज प्रसाद हैं. लेकिन जिन बच्चों को वो सिखाते हैं उनके लिए मनोज प्रसाद पिता से कम नहीं हैं.

उन्होंने 2017 में अबूझमाड़ मल्लखंभ अकादमी शुरू की थी. आज 25 बच्चे इस अकादमी में रहकर अभ्यास कर रहे हैं.

प्रसाद न केवल प्रशिक्षण देते हैं बल्कि बच्चों की पढ़ाई, रहन-सहन, खाना, कपड़े और खेल सामग्री तक का पूरा खर्च उठाते हैं.

कामयाबी की झलक

राकेश ने ऐसा एक नहीं बल्कि दर्जनों पदक जीते हैं. अब तक उन्होंने 30 से अधिक पदक राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर जीते हैं.

लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में उनका नाम दर्ज है, जहां उन्होंने 1 मिनट 6 सेकंड का सबसे लंबा हैंडस्टैंड किया.

इंडियाज गॉट टैलेंट सीजन 10 में उनकी अकादमी ने जीत हासिल की थी.

राकेश ने बिहार के खेलो इंडिया यूथ गेम्स में 4 पदक जीते हैं तो गुजरात और गोवा नेशनल गेम्स में कांस्य पदक हासिल किए हैं.  

उन्होंने पंचकुला और उज्जैन में भी गोल्ड और सिल्वर पदक जीते हैं.

उनकी इन उपलब्धियों से पता चलता है कि राकेश एक प्रतिभाशाली और मेहनती खिलाड़ी हैं.

बदलाव की सोच किसकी

राकेश के प्रशिक्षक मनोज प्रसाद कहते हैं कि इन बच्चों के पास कोई और सहारा नहीं है. अगर वे इनका साथ छोड़ देंगे तो ये कहाँ जाएंगे?

प्रसाद चाहते हैं कि ये बच्चे अपने हुनर से सरकारी नौकरी पाएं और अपने समाज की तस्वीर बदलें.

अब प्रशासन और आम लोग भी उनकी मदद के लिए आगे आ रहे हैं. छत्तीसगढ़ मल्लखंभ संघ के सचिव राजकुमार शर्मा लगातार सहयोग कर रहे हैं.

मनोज प्रसाद मानते हैं कि खेल सिर्फ मैदान तक सीमित नहीं हैं. उनका कहना है कि खेलो इंडिया बीच गेम्स में मल्लखंभ की एंट्री ने उन्हें उम्मीद दी है. अब भारत सरकार आदिवासी खेलों का आयोजन कर रही है. यह आदिवासी समाज को आगे लाने का एक सशक्त ज़रिया बन सकता है.

अबूझमाड़ के जंगलों से निकलकर राकेश ने यह दिखा दिया है कि अगर अवसर और सही मार्गदर्शन मिले तो कोई भी बच्चा आसमान छू सकता है.

यह सिर्फ एक खिलाड़ी की कहानी नहीं बल्कि उस बदलाव की शुरुआत है, जो आदिवासी बच्चों को नई पहचान दे रहा है.

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