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सरकार की उदासीनता से परेशान अल्लूरी सीताराम राजू के आदिवासियों ने खुद बिछाई सड़कें

आदिवासियों का आरोप है कि जो जनप्रतिनिधि चुनाव से पहले वोट मांगते हैं, वे निर्वाचित होने के बाद उनकी परेशानियों पर ध्यान नहीं देते. आदिवासी नेताओं का आरोप है कि 2004 में फूड फॉर वर्क (Food For Work) कार्यक्रम के तहत एक सड़क को मंजूरी दी गई थी और 2008 तक, सिर्फ जंगल की सफाई की गई थी.

आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू जिले के अनंतगिरी मंडल के पिनाकोटा, जीनाबादु और पेद्दाकोटा पंचायतों के दूरदराज के इलाकों के आदिवासी लोगों ने श्रमदान के साथ 10 किलोमीटर की सड़क का निर्माण शुरू कर दिया है. एक मोटर योग्य सड़क की कमी ने यहां के लोगों को अस्थायी सड़क बनाने के लिए मजबूर किया है.

सरकार की उदासीनता से परेशान 180 आदिवासियों ने राचाकमलम और रेड्डीपाडु के रास्ते गुम्मंती रोड और पालबंधी के बीच 10 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए सड़क बनाने का काम शुरू किया. क्योंकि संबंधित अधिकारियों ने सड़क बनाने के लिए उनकी दलीलों पर ध्यान नहीं दिया.

सोमवार की सुबह सात बजे तक कुल 180 आदिवासियों ने काम शुरू किया. करीब चार घंटे तक काम करते हुए उन्होंने 1 किलोमीटर सड़क बिछाने का काम पूरा किया.

राचाकमलम के जेम्मिली जन्मा राजू ने नाराजगी जताते हुए कहा, “ऐसे समय में जब भारत आजादी के 75 साल पूरे होने पर ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मना रहा है, तो हमें अपने गांवों से बल्लागरुवु बिटुमिनस (बीटी) सड़क तक पहुंचने के लिए पहाड़ी इलाकों और झाड़ियों के रास्ते से 7 से 15 किलोमीटर तक ट्रेक करने के लिए मजबूर होना पड़ता है.”

एक अन्य ग्रामीण,  सुकुरु गंगम्मा ने कहा, “जब भी लोग बीमार पड़ते हैं या गर्भवती महिलाओं को प्रसव पीड़ा होती है तो उन्हें डोली (अस्थायी स्ट्रेचर) में ले जाना पड़ता है. कभी-कभी महिलाएं अस्पताल पहुंचने में देरी की वजह से रास्ते में ही बच्चों को जन्म दे देती हैं.”

आदिवासी युवाओं का सरकार से आग्रह है कि नरेगा (NREGS) के तहत बीटी सड़के बिछाएं.

आदिवासियों का आरोप है कि जो जनप्रतिनिधि चुनाव से पहले वोट मांगते हैं, वे निर्वाचित होने के बाद उनकी परेशानियों पर ध्यान नहीं देते. आदिवासी नेताओं का आरोप है कि 2004 में फूड फॉर वर्क (Food For Work) कार्यक्रम के तहत एक सड़क को मंजूरी दी गई थी और 2008 तक, सिर्फ जंगल की सफाई की गई थी. यहां तक ​​कि ठेकेदार द्वारा नियोजित लोगों को वादा किया गया चावल भी नहीं दिया गया था.

2013-14 में सामग्री घटक (Material component)के लिए 9 लाख रुपये और मनरेगा के तहत श्रम लागत के लिए 21 लाख रुपए बल्लागरुवु से रेड्डीपाडु और राचकिलम के माध्यम से पालबंधE गांवों तक सड़क के निर्माण के लिए स्वीकृत किया गया था.

गिरिजन संघम के नेताओं ने कहा कि अधिकारियों ने एक बार फिर उन्हें सड़क निर्माण के लिए झाड़ियों को साफ करने का काम दिया है. उन्होंने आरोप लगाया कि ठेकेदार ने उन्हें उनके श्रम के लिए भुगतान नहीं किया था. उन्होंने कहा कि अधिकारियों ने कहा था कि काम के लिए मशीनें लगाई जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ, जिसके परिणामस्वरूप स्वीकृत धनराशि समाप्त हो गई.

अधिकारी बार-बार कह रहे हैं कि सड़क का काम हो जाएगा. सरकारें बदल रही है और अधिकारियों का तबादला हो रहा है लेकिन काम अब तक नहीं हुआ है.

गिरिजाना संघम पांचवीं अनुसूची साधना समिति के जिला अध्यक्ष के गोविंदा राव ने कहा, “जब आईटीडीए के परियोजना अधिकारी रोनांकी गोपालकृष्ण ने पिछले साल दयारथी गांव का दौरा किया था, तो हमने उन्हें अपनी समस्या से अवगत कराया था. बाद में उन्होंने एमपीडीओ को एक सर्वेक्षण करने और अनुमान तैयार करने के लिए भेजा.”

हालांकि अधिकारी कह रहे हैं कि सड़क का काम शुरू कर दिया जाएगा लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है. इस समस्या से तंग आकर आदिवासी युवकों ने बैठक कर सड़क निर्माण का काम स्वयं करने का निर्णय लिया.

गोविंदा राव ने जिला कलेक्टर से अपील की कि वे गांव का दौरा करें और आदिवासी लोगों को डोली में बीमारों को ले जाने की परेशानी से बचाने के लिए सड़क को जल्द पूरा करने का आदेश दें.

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