HomeAdivasi Daily5000 का क़र्ज़ और पीढ़ियों की ग़ुलामी, आदिवासी गाँवों की कहानी

5000 का क़र्ज़ और पीढ़ियों की ग़ुलामी, आदिवासी गाँवों की कहानी

फिलहाल बंधुआ मजदूरी से मुक्त होने के लिए एनजीओ श्रमजीवी संगठन द्वारा 43 सदस्यों वाले 18 आदिवासी परिवारों की पहचान की गई है. एनजीओ ने मामले को भिवंडी तहसीलदार के सामने उठाया है.

ठाणे के भिवंडी के एक आदिवासी गांव में पत्थर की खदान और ईंट भट्ठे पर काम करने वाले एक दर्जन से अधिक परिवारों की पीढ़ियां बंधुआ मजदूरी में फंस गई हैं. पिलांजे बुद्रुक चिंचपाड़ा गांव के एक ग्राउंड विजिट के दौरान परिवारों ने mid-day को बताया कि कैसे उनके नियोक्ता और स्थानीय पुलिस ने उन्हें परेशान करने और अमानवीय परिस्थितियों के अधीन करने के लिए मिलीभगत की है.

ग्रामीणों ने निजी ठेकेदारों चंद्रकांत और राजाराम पाटिल, जो भाई हैं पर उचित वेतन, भोजन और पानी के बिना काम करने और यहां तक कि सार्वजनिक रूप से उन्हें कोड़े मारने, उनके पूर्वजों द्वारा कथित रूप से लिए गए कर्जों को चुकाने के लिए काम में लगाने, उन्हें दूसरी नौकरियां तलाशने से रोकने का आरोप लगाया है.

पिलांजे बुद्रुक के निवासी कातकरी आदिवासी समुदाय से हैं. ग्रामीणों ने बताया कि पाटिल बंधु ईंट भट्ठे की फैक्ट्री चलाते हैं और पहाड़ों को जिलेटिन के डंडों से फोड़कर क्रशर मशीनों से पत्थरों की आपूर्ति करते हैं.

फिलहाल बंधुआ मजदूरी से मुक्त होने के लिए एनजीओ श्रमजीवी संगठन द्वारा 43 सदस्यों वाले 18 आदिवासी परिवारों की पहचान की गई है. एनजीओ ने मामले को भिवंडी तहसीलदार के सामने उठाया है.

(Image Credit: mid-day)

ग्रामीणों ने mid-day को बताया कि कैसे उन्हें अपर्याप्त वेतन के साथ खराब परिस्थितियों में रहना पड़ता है. धागों की चटाई पर या जमीन पर सोना पड़ता है और सिर्फ प्लास्टिक की चादर से ढके घरों में और घायल होने पर चिकित्सा सुविधाओं से वंचित रखा जाता है.

15 साल की उम्र में पाटिल बंधुओं ने संजय वाघे को 500 रुपये पर अपने मवेशियों को खेतों में चराने के लिए रखा था. वाघे ने सात साल तक काम किया लेकिन इस काम के लिए उन्हें फिर कभी मेहनताना नहीं मिला और उन्हें सिर्फ एक बार ही बचा हुआ खाना दिया जाता था.

संजय वाघे ने बताया, “जब मैंने पैसे मांगे तो पाटिल भाई मेरे साथ मारपीट और गाली-गलौज करते थे. जब मैंने काम पर जाना बंद कर दिया तो वे मुझे घसीटकर अपने घर ले गए और मुझे काम करने के लिए मजबूर किया.”

जब संजय वाघे बड़े हुए तो उन्हें पत्थर की खदान में काम करने के लिए कहा गया. वाघे ने कहा, “उन्होंने मुझे बड़े-बड़े पत्थरों को तोड़ने के काम में लगवाया जिन्हें पास की एक क्रशिंग मशीन में भेजा जाता है. एक दिन मेरी बायीं आंख में एक पत्थर लगा और उससे खून बहने लगा. जब मैंने राजाराम सेठ से इलाज के लिए पैसे मांगे तो उन्होंने गाली-गलौज की और मुझे पीटा. अब मैं अपनी बायीं आंख से अंधा हूं.”

वहीं रघुनाथ पवार को पाटिल बंधुओं के मवेशियों की देखभाल के लिए हर हफ्ते 100 से 200 रुपये अग्रिम भुगतान पर रखा. शादी के बाद रघुनाथ पवार ने पाटिल भाइयों से कहा कि वो अब गांव से बाहर नौकरी तलाशना चाहता है. लेकिन उन्होंने मुझे बताया गया कि मेरे पिता ने 5,000 रुपये का कर्ज लिया था जिसे अभी तक पूरा नहीं किया गया है. मुझे कहा गया था कि कर्ज चुकाने के लिए ये काम करते रहना होगा. पवार ने बाताया कि लेकिन मेरे पिता ने मुझे कभी कर्ज के बारे में नहीं बताया था.  

रघुनाथ पवार (Image Credit: mid-day)

जगदीश वाघे पाटिल की ईंट भट्ठा फैक्ट्री में काम करते थे और बड़े होने पर उन्हें एक बैलगाड़ी पर मिट्टी ले जाने का काम दिया गया. उन्होंने पाटिल भाइयों पर खाना नहीं देने और मारपीट करने का आरोप लगाया. ज

गदीश ने कहा, “एक बार जब मैं काम पर नहीं गया तो चंद्रकांत ने मुझे बांस के डंडों से इतनी बुरी तरह पीटा कि मेरे दोनों हाथ टूट गए. किसी तरह मेरी बहन ने मेरे हाथों का इलाज स्थानीय स्तर पर कराने की व्यवस्था की. मैं इस घटना के बाद घबरा गया था और फिर कभी उसे ना कहने की हिम्मत नहीं की. मैंने वही काम करना जारी रखा जो उन्होंने आदेश दिया था.”

शुक्रिया वाघे दिसंबर से मई के बीच ईंट भट्ठे पर काम करती थीं. शुक्रिया ने कहा, “कोई आराम नहीं है. हम मुश्किल से दिन में दो से तीन घंटे सोते थे. बारिश के दौरान मैंने कम से कम भोजन और आराम के साथ खेत में काम किया. उत्पीड़न के बावजूद मैंने कहीं और काम करने की हिम्मत नहीं की.”

शुक्रिया ने दावा किया कि पाटिल भाइयों द्वारा उसकी गर्भवती पत्नी के साथ मारपीट के चलते उसकी मौत हुई. शुक्रिया ने कहा, “मेरी पत्नी गर्भवती थी और मेरी बेटी मुश्किल से 13 साल की थी. पाटिल भाइयों ने मेरी बेटी को उनके लिए काम करने के लिए भेजने के लिए कहा. जब मेरी पत्नी ने उसे भेजने से मना किया तो उन्होंने उसके साथ मारपीट की. इस मारपीट ने उसे मार डाला.”

शुक्रिया चंद्रकांत के बड़े बंगले के बगल में एक झोपड़ी में रहता था. अब वह आदिवासी गांव में एक छोटी सी झोपड़ी में रहता है. उन्होंने कहा, “चंद्रकांत अक्सर रात में बेल्ट और डंडे से मेरे साथ मारपीट करता था. इसलिए मैंने अपना घर छोड़ दिया और दूसरे आदिवासियों के साथ रहने आ गया.”

(Image Credit: mid-day)

कान्हा जाधव ईंट भट्ठे में काम करते थे और उन्हें हर हफ्ते 500 रुपये का अग्रिम भुगतान किया जाता था. जाधव ने कहा, “मैं रात के 1 बजे ईंट बनाना शुरू करता और दोपहर 1 बजे खत्म होता. उसके बाद भट्ठे पर दूसरे काम करता था. मैं रात 10 बजे या रात 11 बजे तक सिर्फ कुछ घंटों के लिए सोता था. जब मैंने काम करने के लिए मना कर दिया तो पाटिल भाइयों ने मुझे सबक सिखाने की योजना बनाई.”

जाधव ने कहा कि 21 जून की रात करीब 10 बजे गांव में कुछ लोग आए और पाटिल भाई उनके साथ थे. पुरुषों ने एक शब्द भी नहीं कहा और लोहे की छड़ और बांस की छड़ी से मेरे साथ मारपीट करने लगे. मेरे अलावा उस रात संतोष गावित के साथ भी मारपीट की गई.

जाधव ने mid-day को बताया कि वे गणेशपुरी पुलिस थाने में मारपीट की प्राथमिकी दर्ज करने गए थे. लेकिन पुलिस ने हमले के मामले में पाटिल भाइयों का नाम नहीं लिया. जाधव ने कहा, “मैं पुलिस को बता रहा था कि हमारे साथ मारपीट करने वाले सभी अज्ञात लोगों को पाटिल लाया था जो कुछ ही दूरी पर मौजूद थे जब हमें पीटा जा रहा था. फिर भी पुलिस ने प्राथमिकी में उनका नाम नहीं लिया.”

जाधव ने दावा किया कि उन्होंने पाटिल के बंगले पर मारपीट करने वाले लोगों को देखा. उन्होंने कहा कि गणेशपुरी पुलिस सब कुछ जानती है लेकिन वे कुछ नहीं कर रही हैं.

भीमा पवार के पति लकवा से ग्रस्त हैं और वो सहारे से चल सकते हैं. इसलिए वो अपने पति के इलाज के लिए पैसे कमाने के लिए गांव से बाहर काम करना चाहती है. क्योंकि पाटिल बहुत कम पैसे देते हैं. लेकिन मुझे गांव से बाहर जाने की अनुमति नहीं है.

भीमा पवार (Image Credit: mid-day)

पाटिल भाई भी कथित तौर पर इस बात का फायदा उठाते हैं कि आदिवासी पढ़-लिख नहीं सकते. बलराम जाधव के पास अपनी अनुमानित मजदूरी के विवरण के साथ एक डायरी है, लेकिन यह नहीं पता कि क्या लिखा है.

श्रमजीवी संगठन के सदस्य बलराम भोईर ने कहा कि बंधुआ मजदूरों को मंगलवार को भिवंडी में तहसीलदार के कार्यालय में लाया गया. उनके बयान दर्ज किए गए. पहले तो तहसीलदार उन्हें रिहाई प्रमाण पत्र देने को तैयार नहीं थे लेकिन बाद में हमारे नेता विवेक पंडित से मिलने के बाद वे राजी हो गए. तहसीलदार को बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम से संबंधित सभी नियमों और विनियमों से अवगत कराया गया.

आदिवासियों के लिए योजनाओं की स्थिति को देखने के लिए राज्य सरकार द्वारा नियुक्त समिति के अध्यक्ष विवेक ने कहा, “ये सब इस ओर इशारा करता है कि अब भी सामंतवाद मौजूद है भले ही कम संख्या में और मुंबई के बाहर. बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम के प्रवर्तन के बारे में प्रशासन को कुछ भी नहीं पता है. मुझे उम्मीद है कि अब तहसीलदार 24 घंटे के भीतर रिहाई प्रमाण पत्र जारी कर हर एक बंधुआ मजदूर को 20,000 रुपये की तत्काल राहत प्रदान करेंगे. मुझे यह भी उम्मीद है कि पुलिस अपराध का संज्ञान लेगी.”

विवेक ने 2019 और 2020 के दौरान भिवंडी, डिंडोरी, इगतपुरी, पनवेल और उल्हासनगर से 24 बंधुआ मजदूरों को छुड़ाने का दावा किया.

भिवंडी तालुका के तहसीलदार अधिक पाटिल ने mid-day को बताया कि वह मामले की वैधता का अध्ययन कर रहे हैं. पाटिल ने कहा, “मैं उन्हें रिलीज सर्टिफिकेट जारी करने से पहले नियम पुस्तिका पढ़ रहा हूं.”

राजाराम उर्फ राजेंद्र ने कहा, “मामला तहसीलदार के पास अभी लंबित है इसलिए मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा. लेकिन आदिवासियों द्वारा लगाए गए सभी आरोप झूठे हैं.”

चंद्रकांत ने कहा, “मैं अपना कारोबार चलाने के लिए अपने कार्यकर्ताओं को जवाहर से ला रहा हूं. मेरे और मेरे भाई राजाराम पर झूठे आरोप लगाने वाले आदिवासियों ने 10 साल पहले हमारे लिए काम करना बंद कर दिया था. कुछ लोग आदिवासियों का इस्तेमाल कर मुझे बदनाम करने और आगामी चुनाव लड़ने की मेरी योजना को पटरी से उतारने के लिए कर रहे हैं. हमने आदिवासियों को कभी बंधुआ मजदूरी के अधीन नहीं किया.”

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