आदिवासी इलाक़ों में मशहूर हस्तियों से ज़्यादा समाज के नेता और कार्यकर्ता लोगों को वैक्सीन लेने के लिए समझाने में ज़्यादा मददगार साबित हुए हैं.
आदिवासी समुदायों में वैक्सीन से जुड़ी झिझक को तोड़ने में आदिवासी महिला नेताओं और कार्यकर्ताओं की ज़्यादा प्रभावी भूमिका रही है.
सरकार की तरफ़ से दावा किया गया है कि देश के आदिवासी बहुल 100 ज़िलों में कम से कम 6.73 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाई गई है.
हालाँकि यह भी बताया गया है कि अभी ज़्यादातर लोगों को वैक्सीन की पहली डोज़ ही लगाई जा सकी है.
लेकिन वैक्सीन अभियान से जुड़े अधिकारियों को उम्मीद है कि अब इन इलाक़ों में दूसरी डोज़ का काम भी गति पकड़ लेगा. इस सिलसिले में यूनिसेफ़ और ट्राइफेड (Tribal Cooperative Marketing Development Federation) ने 15 जुलाई से अभियान शुरू किया था.
आदिवासी ज़िलों में वैक्सीन अभियान के बारे में बताया गया है कि छत्तीसगढ़ के बस्तर और मध्य प्रदेश के मंडला ज़िले में परिणाम बेहतरीन आए हैं.
मंडला ज़िला प्रशासन ने दावा किया है कि ज़िले में कम से कम 7.47 लाख लोगों को कोविड वैक्सीन की पहली खुराक दी जा चुकी है.

इस लिहाज़ से देखें तो ज़िले की क़रीब 96 प्रतिशत आबादी को कोविड की पहली खुराक दी जा चुकी है. प्रशासन की तरफ़ से बताया गया है कि इस ज़िले में शुरुआती झिझक ज़रूर थी लेकिन 21 जून के बाद से वैक्सीन अभियान ने गति पकड़ ली थी.
प्रशासन ने दावा किया है कि इसी सप्ताह में ज़िले के 18 साल से उपर के सभी लोगों को वैक्सीन की कम से कम एक खुराक ज़रूर मिल जाएगी.
प्रशासन के अनुसार आदिवासी आबादी में वैक्सीन के प्रति भ्रांतियाँ और झिझक थी. इससे पार पाने के लिए प्रशासन ने स्थानीय सामुदायिक नेताओं और प्रभावशाली लोगों की लिस्ट बनाई.
इन लोगों को इस अभियान से जोड़ा गया, जिसके बहुत अच्छे परिणाम मिले हैं.
मंडला में बैगा आदिवासियों की बड़ी संख्या है जिन्हें विशेष रूप से पिछड़े आदिवासी समुदायों की श्रेणी में रखा जाता है.
उधर छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी वैक्सीन अभियान कामयाब होता बताया जा रहा है. ज़िला प्रशासन ने दावा किया है कि कम से कम 61.7 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन की पहली डोज़ दी जा चुकी है.
प्रशासन ने कहा है कि कम से कम 33 प्रतिशत लोगों को कोविड वैक्सीन की दूसरी डोज़ भी दी जा चुकी है. बस्तर में भी प्रशासन ने स्थानीय प्रभावशाली लोगों की मदद से यह काम करने में सफलता पाई है.
इसके अलावा प्रशासन का कहना है कि स्थानीय भाषा में वैक्सीन अभियान का प्रचार करने से भी मदद मिली है.
आदिवासी इलाक़ों में वैक्सीन अभियान को लेकर बेशक यह जानकारी अच्छी है. लेकिन अभी तक सरकार ने अलग से आदिवासी इलाक़ों में वैक्सीन अभियान के आँकड़े नहीं जुटाए हैं.
इस सिलसिले में सरकार से जब संसद में सवाल पूछा गया था तो सरकार ने कहा था कि वैक्सीन के आँकड़े समुदायों के हिसाब से नहीं जमा किए जा रहे हैं.
इसके अलावा यह भी तथ्य है कि अभी भी ग्रामीण भारत और ख़ास तौर से आदिवासी इलाक़ों में वैक्सीन के प्रति झिझक है.
देश के बाक़ी ज़िलों का प्रशासन भी इस अनुभव से सीख सकता है और इस झिझक को तोड़ने के लिए समुदाय के प्रभावशाली लोगों की मदद ले सकता है.