HomeAdivasi Dailyसलाम आशा, आदिवासियों का भरोसा और दिल जीता

सलाम आशा, आदिवासियों का भरोसा और दिल जीता

चेन्नयनकोटे में चार से पांच छोटी आदिवासी बस्तियाँ हैं. पिछले एक महीने में इन आदिवासियों का दिल जीतने के लिए इलाक़े के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टरों ने इन बस्तियों का पांच बार दौरा किया.

एक वक़्त था जब आदिवासी आशा कार्यकर्ताओं को देखते ही वो भाग जाते थे. जो चल नहीं सकते थे, वो इन कार्यकर्ताओं को बुरा-भला कहते थे. लेकिन फिर भी, अधिकारियों और स्वास्थ्य कर्मचारियों ने हार नहीं मानी और हर रोज़ बस्तियों का दौरा कर कोविड वैक्सिनेशन में सफ़लता पाई.

यह कहानी है कर्नाटक के कोडागु ज़िले के चेन्नयनकोटे की एक आदिवासी बस्ती की. यहाँ की आशा कार्यकर्ताओं को सलाम है, जिन्होंने आदिवासियों का भरोसा और दिल जीता.

ज़िले में COVID-19 वैक्सीन की पहली डोज़ 95% लोगों को लगाई जा चुकी है. और अब प्रशासन का अगला लक्ष्य शत-प्रतिशत वैक्सिनेशन जल्द से जल्द हासिल करना है.

पिछले एक महीने से स्वास्थ्य विभाग, आईटीडीपी, ग्राम पंचायत और पुलिस समेत कई दूसरे विभाग बाकि बची 5 प्रतिशत आबादी का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं, जिन्होंने वैक्सीन लगवाने से इंकार कर दिया. मना करने वालों में मुख्य रूप से ज़िले के आदिवासी हैं, और अधिकारी उन्हें अब वैक्सीन के बारे में जागरुक कर रहे हैं.

विराजपेट के चेन्नांगी हाड़ी में शूट किए गए एक वीडियो में एक आशा कार्यकर्ता आराम से एक आदिवासी लड़की को वैक्सीन लेने के लिए कहती दिखाई देती है. वो उसे समझा रही है कि कोई भी उसे मारने के इरादे से इंजेक्शन नहीं लगाएगा.

एक दूसरे वीडियो में, पुलिस और स्वास्थ्य अधिकारी एक ऐसे व्यक्ति के पीछे भागते नज़र आते हैं जो वैक्सीन के डर से जंगल की ओर भाग रहा है.

चेन्नयनकोटे में चार से पांच छोटी आदिवासी बस्तियाँ हैं. पिछले एक महीने में इन आदिवासियों का दिल जीतने के लिए इलाक़े के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टरों ने इन बस्तियों का पांच बार दौरा किया.

केंद्र के चिकित्सा अधिकारी डॉ एस शिवप्पा गोत्याल ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि कार्यकर्ताओं ने आदिवासियों की दिनचर्या को समझा, उनकी जीवन शैली सीखी और बाद में उन्हें वैक्सीन लगवाने के लिए मनाया.

लेकिन यह काम बिल्कुल आसान नहीं था, क्योंकि आदिवासी वैक्सीन लगवाने के बदले सरकार से आवास या आईडी की मांग कर रहे थे. स्वास्थ्यकर्मियों की सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि इन तरह की मांगें पूरी करना उनके बस की बात नहीं है, क्योंकि यह राजस्व विभाग का काम है.

फिर भी, पांच बार बस्तियों के चक्कर लगाने के बाद, बस्ती के 250 से ज़्यादा आदिवासियों को वैक्सीन की पहली डोज़ दे दी गई है. बाकि कुछ ही ऐसे लोग बचे हैं जो अभी भी हिचकिचा रहे हैं.

लेकिन डॉक्टरों और दूसरे स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने भी ठान रखा है कि वो तब तक बस्ती का दौरा करते रहेंगे, जब तक वहां सभी का वैक्सिनेशन नहीं हो जाता.

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