HomeAdivasi Dailyआदिवासी इलाकों में झिझक पड़ी फीकी, मांग रहे हैं कोविड वैक्सीन

आदिवासी इलाकों में झिझक पड़ी फीकी, मांग रहे हैं कोविड वैक्सीन

भारत के ग्रामीण इलाक़ों में कोविड वैक्सीन के बारे में जागरूकता की कमी की वजह से कई तरह के भ्रम देखे गए हैं. आदिवासी इलाकों में चुनौती और भी बड़ी है. क्योंकि ज्यादातर आदिवासी आबादी दूर दराज के जंगलों में बसे हैं.

राजस्थान के कोटा के दरभीजी गांव के छोटे मीणा पहले कोविड वैक्सीन लेने से हिचकिचा रहे थे और अप्रैल-मई में इससे परहेज करते थे. हालांकि स्वास्थ्य विभाग, सोशल मीडिया और अखबारों द्वारा बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान के साथ उनका सारा डर दूर हो गया.

छोटे मीणा ने पहली खुराक जुलाई में ली थी और अब उन्हें दूसरी खुराक मिलने का इंतजार है. अब स्वास्थ्य विभाग 65 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों में और 45 फीसदी शहरी क्षेत्रों में वैक्सीन वितरित कर रहा है.

छोटे मीणा की ही तरह राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में कई अन्य लोग जो पहले वैक्सीन लेने को लेकर थोड़ा डरे हुए थे. लेकिन अब वही लोग अपनी वैक्सीन डोज़ लेने के लिए लाइनों में खड़े दिखाई दे रहे हैं.

स्वास्थ्य विभाग ने शुक्रवार को कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों और यहां तक कि बारां, बांसवाड़ा और डूंगरपुर जैसे आदिवासी जिलों से भी वैक्सीन की झिझक दूर हो गई है.

स्वास्थ्य विभाग के एक अनुमान के मुताबिक जुलाई महीने में 55 फीसदी वैक्सीन वितरण ग्रामीण क्षेत्रों में हुआ. जबकि 45 फीसदी वैक्सीन वितरण शहरी क्षेत्र तक सीमित रहा. टीकाकरण के नोडल अधिकारी डॉ रघुराज सिंह ने कहा, “इस महीने में अब तक हमने ग्रामीण क्षेत्रों में 65 फीसदी टीके वितरित किए हैं जबकि शहरी क्षेत्रों में 45 फीसदी टीके दिए गए हैं.”

डॉ रघुराज सिंह ने कहा, “मुझे लगता है कि मीडिया, सोशल मीडिया, हमारे जागरूकता शिविरों और तीसरी लहर के डर ने वैक्सीन लेने की झिझक को दूर करने में अहम भूमिका निभाई है. दूसरी लहर के दौरान कई लोगों ने अपने परिजनों खो दिए. ऐसे में ख़तरनाक दूसरी लहर का डर भी झिझक को दूर करने के लिए जिम्मेदार है.”

कोटा के दरभीजी गांव के मूल निवासी छोटा मीणा ने कहा, “मेरे गांव के कुछ लोगों ने मुझसे कहा कि टीके से मैं नपुंसक हो जाऊंगा. हालांकि धीरे-धीरे जब मेरे गांव के लोगों ने जून से टीका लेना शुरू कर दिया और यह पाया गया कि टीके से कोई नुकसान नहीं हुआ है तो मैंने भी 18 जुलाई को अपनी पहली खुराक ली.”

इसी तरह बांसवाड़ा, डूंगरपुर और बारां के केंद्रों पर जहां पहले स्थानीय लोग स्वास्थ्य अधिकारियों का सामना करते थे जब भी उनके गांवों में टीकाकरण स्थल बनाए जाते थे. लेकिन अब वे उनसे अनुरोध करते हुए और लोगों को वैक्सीन की डोज लेने के लिए प्रेरित करते हुए दिखाई देते हैं.

अप्रैल और जून में टीकाकरण का मुख्य केंद्र शहरी क्षेत्र थे जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अपना विरोध और झिझक दिखा रहे थे. रघुराज सिंह ने कहा, “वे अब अपने टीके की खुराक की पुष्टि करते हैं. हमें सरपंचों और अन्य लोगों से समय पर वैक्सीन आवंटित करने के लिए फोन आते हैं, यह यकीनन एक अच्छा संकेत है.”

अधिकारियों ने कहा कि स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और आशा कार्यकर्ताओं ने भी गांवों और बस्तियों में रहने वाले लोगों के मन से डर को दूर करने के लिए कड़ी मेहनत की है.

संपर्क किए जाने पर बदले हुए परिदृश्य पर चिकित्सा और स्वास्थ्य सचिव, सिद्धार्थ महाजन ने कहा, “वे अब पूछते हैं और शिकायत करते हैं कि उनका टीका खत्म हो गया है. इन जिलों में हमारे जो लोग वैक्सीन वितरण में लगे हैं उनसे ये लोग लगातार यह जानने की कोशिश करते हैं कि उन्हें टीका कब मिलेगा और वे विशेष रूप से मात्रा के लिए पूछते हैं. इसलिए जहां तक राजस्थान का सवाल है वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट अब नहीं है.”

भारत के ग्रामीण इलाक़ों में कोविड वैक्सीन के बारे में जागरूकता की कमी की वजह से कई तरह के भ्रम देखे गए हैं. आदिवासी इलाकों में चुनौती और भी बड़ी है. क्योंकि ज्यादातर आदिवासी आबादी दूर दराज के जंगलों में बसे हैं. इन इलाकों में दो तरह की मुश्किलें हैं. पहली मुश्किल ये है कि यहां पर स्वास्थ्य कर्मी और डॉक्टर्स के साथ साथ दूसरी सुविधाओं की भारी कमी है. इसके अलावा समाचार माध्यमों की भी पहुंच इन इलाकों में नहीं है.

कई आदिवासी इलाकों में स्थानीय बोली या भाषा में जागरूकता अभियान चलाया गया है. इस तरह के इलाकों में वैक्सीन के प्रति फैला भ्रम और डर दूर हुआ है. लेकिन इन इलाकों में वैक्सीन की पर्याप्त खुराक उपलब्ध कराना चुनौती नहीं बननी चाहिए. इसके लिए एक स्पष्ट नीति की ज़रूरत है.

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