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डीलिस्टिड जनजातियों के कर्मचारियों को सुप्रीम कोर्ट से राहत

यह मामला विशेष रूप से उन कर्मचारियों से संबंधित था जिन्हें 1978 से 1987 के बीच कर्नाटक सरकार द्वारा जारी SC/ST प्रमाण पत्रों के आधार पर नौकरी मिली थी.

सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को अनुसूचित जनजाति की सूचि (ST list) से डीलिस्ट किए गए समुदायों के कुछ लोगों की नौकरी को बरक़रार रखा है.

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उन सरकारी और बैंक कर्मचारियों को नौकरियों पर बने रहने का फैसला सुनाया जिन्होंने अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) प्रमाण पत्रों के आधार पर नौकरी हासिल की थी, लेकिन बाद में जिनकी जाति या जनजाति को अनुसूचित सूची से हटा दिया गया था.

यह फैसला उन कर्मचारियों के लिए राहत लेकर आया है, जिन्होंने सही तरीके से और कानूनी प्रक्रियाओं के तहत ये प्रमाण पत्र प्राप्त किए थे.

यह मामला विशेष रूप से उन कर्मचारियों से संबंधित था जिन्हें 1978 से 1987 के बीच कर्नाटक सरकार द्वारा जारी SC/ST प्रमाण पत्रों के आधार पर नौकरी मिली थी.

इनमें केनरा बैंक, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के कर्मचारी शामिल थे.

यह पूरा मामला साल 2001 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद पैदा हुई स्थिति में सामने आया था.

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य सरकार बनाम मिलिंद मामले में यह स्पष्ट किया था कि संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के अनुसार केवल संसद के पास ही SC/ST सूचियों में बदलाव करने का अधिकार है.

इस फ़ैसले के बाद कर्नाटक सरकार ने कुछ समुदायों को अनुसूचित जाति और जनजाति की सूचि से हटा दिया था.

सरकार के इस कदम से कई ऐसे लोगों के जाति या जनजाति प्रमाणपत्र बेकार हो गए थे जो पहले से नौकरी हासिल कर चुके थे.

इस मामले में याचिकाकर्ताओं के वकील के.वी. धनंजय और ए. वेलन ने अदालत के सामने एक ज़रूरी सवाल उठाया.

उन्होंने कोर्ट से जानना चाहा कि क्या वे कर्मचारी अपने पदों पर बने रह सकते हैं जिन्होंने कर्नाटक सरकार से SC/ST प्रमाण पत्र प्राप्त कर सरकारी या बैंक नौकरियों प्राप्त की थी लेकिन बाद में उनकी जाति या जनजाति को अनुसूचित सूची से हटा दिया गया था.

इसके साथ ही उन्होंने कर्नाटक सरकार के 11 मार्च 2002 और 29 मार्च 2003 के उन आदेशों की वैधता पर भी प्रश्न किया जिनके ज़रिये यह सुनिश्चित किया गया था कि इन कर्मचारियों की नौकरी नहीं जाएगी.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुनाया.

न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने कहा कि इन कर्मचारियों की नौकरियों की सुरक्षा की जानी चाहिए क्योंकि उन्होंने सही प्रक्रिया का पालन करते हुए नौकरी हासिल की थी. कोर्ट ने कहा कि जब उन्हें अनुसूचित जाति या जनजाति के आरक्षण में नौकरी मिली उस समय की अनुसूचित जाति और जनजाति की सूची और सरकारी आदेशों के तहत उनके प्रमाणपत्र सही थे.

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा है कि इन कर्मचारियों ने बिना किसी धोखाधड़ी के सरकार द्वारा जारी किए गए प्रमाण पत्रों के आधार पर नौकरी पाई थी इसलिए उनके साथ न्याय होना चाहिए.

लेकिन अदालत ने यह भी साफ कर दिया कि भविष्य में इन कर्मचारियों को SC/ST श्रेणी के तहत कोई और लाभ नहीं मिलेगा.

अब उन्हें सामान्य यानि जनरल उम्मीदवारों की श्रेणी में ही गिना जाएगा.

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