HomeAdivasi Daily20 साल बाद भी गोवा के आदिवासियों को नहीं मिला राजनीतिक आरक्षण

20 साल बाद भी गोवा के आदिवासियों को नहीं मिला राजनीतिक आरक्षण

साल 2003 में गोवा में गवाड़ा, कुनबी और वेलिप समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया गया था. गोवा की कुल आबादी में करीब 10.47 प्रतिशत ST है. इसके बावजूद राज्य की विधानसभा में एक भी सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित नहीं है.

गोवा विधानसभा में अनुसूचित जनजाति के लिए सीटें आरक्षित करने की मांग तेज़ हो रही है. शुक्रवार को राज्य के विधानसभा अध्यक्ष रमेश तावडकर के साथ ‘गोवा के अनुसूचित जनजातियों के लिए मिशन राजनीतिक आरक्षण’ के एक प्रतिनिधिमंडल ने इस मांग को लेकर मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत से मुलाकात की. इस मुलाकात के दौरान प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री को गोवा के अनुसूचित जनजाति समुदायों के प्रति राज्य और केंद्र सरकार के संवैधानिक दायित्वों के बारे में जानकारी दी.

प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया कि वे केंद्र सरकार को इस संबंध में एक प्रस्ताव भेजे ताकि चुनाव आयोग एसटी के लिए राजनीतिक आरक्षण के लंबे समय से लंबित मुद्दे का समाधान कर सके और राज्य के गवाड़ा, कुनबी और वेलिप समुदायों को न्याय मिल सके. मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री और कानून एवं न्याय मंत्रालय को इस बारे में सूचित करने का भी अनुरोध किया गया है. प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि मुख्यमंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया है कि वह इस मामले को देखेंगे.

इस प्रतिनिधिमंडल में अधिवक्ता जोआओ फर्नांडीस, रवींद्र वेलिप, रूपेश वेलिप, गोविंद शिरोडकर और जोसेफ वाज शामिल थे.

आदिवासी नेता रूपेश वेलिप ने कहा कि गोवा की अनुसूचित जनजातियों को उनके राजनीतिक आरक्षण के संवैधानिक अधिकार से वंचित रखा गया है. उन्होंने बताया कि हाल ही में गोवा के तीन दिवसीय दौरे पर आए अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए संसदीय समिति के सामने भी ये मु्द्दा रखा गया. समिति के अध्यक्ष किरीट सोलंकी को इसकी जानकारी दी गई. जिसके बाद समिति ने इस संदर्भ में गोवा सरकार को एक प्रस्ताव जल्द से जल्द केंद्र को भेजने को कहा था.

गोवा के दौरे पर आए अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए संसदीय समिति की बैठक

ये पहली बार नहीं है जब राज्य में ये मु्द्दा सुर्खियों में आया हो. इससे पहले भी कई बार आदिवासी समुदायों ने विधानसभा में ST के लिए सीटें आरक्षित करने की मांग की थी. दरअसल 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल आबादी में अनुसूचित जनजाति का हिस्सा 10. 23 प्रतिशत है. गोवा में 2 ज़िले है – उत्तरी गोवा और दक्षिण गोवा. उत्तरी गोवा में 6.92 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जनजाति से है जबकि वहीं दक्षिण गोवा में ST की आबादी 10.47 प्रतिशत है.

लेकिन इसके बावजूद राज्य की 40 विधानसभा सीटों में से एक भी सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित नहीं है. जबकि विधानसभा में 1 सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है जिसकी आबादी राज्य की कुल जनसंख्या में 1.74% है.

राज्य की जनसंख्या आंकड़ों के आधार पर, अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के कल्याण पर संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि गोवा विधानसभा के 40 निर्वाचन क्षेत्रों में से 5 को अनुसूचित जनजाति के लिए और 2 को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया जाना चाहिए.

अगस्त 2022 में ही गोवा के यूनाइटेड ट्राइबल एसोसिएशन एलायंस (यूटीएए) ने इस मांग को लेकर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को भी ज्ञापन सौंपा था. ज्ञापन में बताया गया कि गोवा राज्य में, 12 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जनजाति (ST) की है और इन समुदायों को जनवरी 2003 में आदिवासी का दर्जा मिला था. लेकिन इसके बावजूद 19 सालों से इन समुदायों को विधानसभा में आरक्षण नहीं मिला है. जबकि इतने सालों में चार बार विधानसभा के चुनाव भी संपन्न हो चुके है, मसलन – वर्ष 2007, 2012, 2017 और मार्च 2022 में.

हालांकि ध्यान देने वाली बात है कि वर्तमान में पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए शिक्षण संस्थानों, सरकारी नौकरियों और पदोन्नति, जिला पंचायत चुनाव, नगर पालिका और पंचायत चुनाव में एसटी के लिए 12 प्रतिशत आरक्षण लागू है.

दरअसल साल 2003 में गोवा में गवाड़ा, कुनबी और वेलिप को ST सूची में अधिसूचित किया गया था. जिस समय अधिसूचना जारी की गई थी उसी समय परिसीमन आयोग का गठन किया गया था. तब पिरसीमन आयोग सीटों के पुनर्समायोजन और SC-ST के लिए सीटों के आरक्षण के लिए अपनी रिपोर्ट तैयार कर रहा था. इस रिपोर्ट को 2008 में संसद में पेश किया गया था और इसे मंजूरी दी गई थी.

साल 2011 में ये मामले सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट में वीरेंद्र प्रताप बनाम भारत संघ मामले पर सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को लोकसभा और राज्य विधान सभा में कुछ अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था. इसमें वो समुदाय शामिल थे जिन्हें 2002-03 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया गया था. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर चुनाव आयोग ने सुझाव दिया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों के पुनर्समायोजन के लिए आयोग को सशक्त बनाने के लिए एक कानून पारित किया जाना चाहिए.

साल 2013 में सरकार ने जनवरी में इस संबंध में एक अध्यादेश जारी किया. इसके बाद एक विधेयक को संसद के बजट सत्र में पेश किया गया. 26 फरवरी को राज्यसभा में संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधित्व का पुनर्समायोजन (तृतीय) विधेयक 2013 लाया गया. जिसके बाद मार्च में राज्यसभा ने इस विधेयक को संसद की कार्मिक, लोक शिकायत, कानून, व्यवस्था और न्याय संबंधी स्थायी समिति के पास जांच के लिए भेजा और संसद में रिपोर्ट पेश करने को कहा.

उस समय समिति के अध्यक्ष सांसद शांताराम नाईक ने कहा था कि चूंकि गोवा में अनुसूचित जनजाति समुदाय का प्रतिशत लगभग 12 प्रतिशत है, इसलिए यह पांच सीटों के लिए योग्य हो सकता है. हालांकि, उन्होंने कहा कि एसटी समुदाय के लिए आरक्षण के लिए सीटों का सही प्रतिशत वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित होगा.

मई 2013 में संसद की स्थायी समिति ने इस मामले पर अपनी रिपोर्ट पेश की. लेकिन बजट सत्र शुरू होने के छह सप्ताह के भीतर विधेयक पारित नहीं हो पाया जिसके चलते अध्यादेश लैप्स हो गया.

इस मांग को उठा रहे ‘गोवा के अनुसूचित जनजातियों के लिए मिशन राजनीतिक आरक्षण’ प्रतिनिधिमंडल ने भारत के चुनाव आयोग (ECI) को गोवा की अनुसूचित जनजातियों के लिए राजनीतिक आरक्षण देने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने का अनुरोध किया. प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से संसद के दोनों सदनों में इस मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का अनुरोध किया ताकि या तो लोकसभा या राज्यसभा लंबे समय से लंबित विधेयक (संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधित्व का पुनर्समायोजन (तृतीय) विधेयक 2013) को पारित कर सकें.

बता दें, भारत के संविधान के अनुच्छेद 330 के तहत लोकसभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटें आरक्षित की जाती है. वहीं अनुच्छेद 332 के तहत असम के स्वायत्त जिलों में अनुसूचित जनजातियों को छोड़कर हर राज्य की विधानसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है. अनुच्छेद 332 के खंड (1) के तहत किसी भी राज्य की विधान सभा में अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या, विधानसभा में सीटों की कुल संख्या के समान अनुपात में होगी. राज्य की कुल जनसंख्या में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या के अनुपात में सीटों का निर्धारण होगा.

दिसंबर 2019 में ही संसद ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण को और 10 साल के लिए बढ़ाने के लिए एक संविधान संशोधन विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया. संविधान के अनुच्छेद 334 के तहत एससी, एसटी और एंग्लो-इंडियन को 25 जनवरी, 2020 तक 70 साल के लिए विधायिका में आरक्षण दिया गया था.

देश की संसद में अनुसूचित जाति के 84 सदस्य और अनुसूचित जनजाति समुदायों के 47 सदस्य हैं. वहीं पूरे भारत में राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति 614 के सदस्य और अनुसूचित जनजाति के 554 सदस्य हैं.

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