केरल के वायनाड ज़िले के कोल्लिमूला पनिया आदिवासी बस्ती में तीन आदिवासी परिवारों की झोपड़ियों को गिराने का मामला सामने आया है. इस मामले में वन अधिकारी को निलंबित भी कर दिया गया है.
आदिवासी अधिकार के लिए काम करने वाले संगठन और कार्यकर्ताओं ने सोमवार की शाम के करीब 8 बजे हुई इस कार्यवाही की निंदा की और इसके विरोध में थोलेपट्टी रेंज ऑफ़िस के सामने प्रदर्शन भी किया गया.
आदिवासी नेताओं और संगठनों ने इस कार्रवाई को वन अधिकार अधिनियम का उल्लंघन करार दिया था. उनका कहना था कि यह अधिनियम आदिवासी समुदायों के जंगलों में रहने और संसाधनों तक पहुंच के अधिकार को मान्यता देता है. उन्होंने वन विभाग पर आदिवासी अधिकारों की अनदेखी करने का आरोप लगाया और मांग की कि सरकार तत्काल राहत प्रदान करे.
विरोध और नाराजगी के बाद उत्तरी क्षेत्र के मुख्य वन संरक्षक के.एस. दीपा ने संबंधित सेक्शन वन अधिकारी टी. कृष्णन को मंगलवार को निलंबित कर दिया.
प्रभावित परिवारों की स्थिति
इस कार्यवाही के कारण राज्य के आदिवासी कल्याण मंत्री ओआर केलू की पंचायत में पिछले 16 वर्षों से झोपड़ी बनाकर रह रहे आदिवासी को बेघर हो गए हैं.
ये घटना उस इलाके में हुई जहां दिन के उजाले में भी जंगली हाथी घूमते रहते हैं. इन आदिवासियों के घरों को रात के समय तोड़ दिया गया जिसके कारण गर्भवती महिलाओं और बच्चों वाले परिवार को जंगल में रहना पड़ा.
उन्होंने बताया कि सड़क किनारे उनके लिए नए घर बनाने का वादा किया गया था लेकिन उस वादे पर अमल करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.
पीडित परिवारों ने बताया कि झोपड़ियां गिराने के दौरान उनके खाने के सामान और खाना बनाने की सामग्री भी नष्ट कर दी गई.
ग्राम पंचायत ने पहले इन परिवारों को सरकारी योजना के तहत मकान आवंटित किए थे. लेकिन इन घरों का निर्माण अधूरा छोड़ दिया गया, जिससे कुछ परिवार झोपड़ियों में रहने को मजबूर हो गए. बाकी परिवार दूसरी जगहों पर चले गए, लेकिन ये तीन परिवार यहीं पर रह गए.
सरकारी और अधिकारिक प्रतिक्रियाएं
केरल के वन मंत्री ए.के. ससींद्रन ने घटना की कड़ी निंदा करते हुए वन विभाग के अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी. वन मंत्री ने यह भी आश्वासन दिया था कि परिवारों को अस्थायी रूप से वन विभाग के डॉर्मिटरी में ठहराया जाएगा और उनके घरों का पुनर्निर्माण किया जाएगा.
मानवाधिकार आयोग ने भी इस मामले का संज्ञान लिया और जिला अधिकारियों और वन विभाग से 15 दिनों के भीतर रिपोर्ट मांगी है.
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री ओ.आर. केलू ने इस कदम को गलत बताते हुए कहा कि स्थानीय निकायों के साथ विचार-विमर्श किए बिना इस कार्यवाही को अंजाम दिया गया है, जो सही नहीं है.
इसके अलावा जिन आदिवासियों के घर तोड़े गए हैं, उन्हें जानकारी के तौर पर पहले से कोई नोटिस नहीं दिया गया था.
यह पहली बार नहीं है जब आदिवासियों के घरों को तोजकर उन्हें बेघर कर दिया गया है इसलिए सरकार को भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए दीर्घकालिक समाधान सुनिश्चित करने के बारे में सोचना चाहिए.