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ओडिशा: कला, संस्कृति और व्यापार का प्रदर्शन करने के लिए 26 जनवरी से शुरू होगा वार्षिक आदिवासी मेला

यह वार्षिक आदिवासी मेला ओडिशा के भुवनेव्श्रेर में 26 जनवरी से 5 फरवरी तक लगेगा. जिसमें आकर्षित आदिवासी नृत्य, आदिवासी भाषाओं में एक बहुभाषी नाटक उत्सव, एससी/एसटी विकास विभाग सांस्कृतिक संघ द्वारा प्रस्तुत एक नाटक और एक भजन संध्या जैसे कार्यक्रम शामिल किए गए है. इसके अलावा इस मेले के ज़रिए आदिवासियों को बाजार भी उपलब्ध करवाए जाएंगे.

ओडिशा (Odisha) की राजधानी भुवनेश्वर में 26 जनवरी से 5 फरवरी तक वार्षिक आदिवासी मेला (Adivasi Mela) लगने जा रहा है. इस मेले में 13 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs) और 62 आदिवासी समुदाय (Tribal communities) शामिल होंगे.

यह वार्षिक आदिवासी मेला अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति विकास, अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग का एक प्रमुख कार्यक्रम है.

यह मेला कृषि उत्पादों, वन उपज और शिल्प सामग्री को बेचने के लिए आदिवासियों को बाजार उपलब्ध करवाता है.
बाजार उपलब्ध करवाने के अलावा इस मेले में आकर्षित आदिवासी नृत्य, आदिवासी भाषाओं में एक बहुभाषी नाटक उत्सव, एससी/एसटी विकास विभाग सांस्कृतिक संघ द्वारा प्रस्तुत एक नाटक और एक भजन संध्या जैसे कार्यक्रम शामिल किए गए है.

ये सभी आदिवासी कार्यक्रम और बाजार, भुवनेश्वर (राज्य की राजधानी) और आसपास के क्षेत्रों के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं.

इसके अलावा इस मेले का सबसे दिलचस्प हिस्सा “आदिवासी गाँव (आदिवासी झोपड़ियां)” है.

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इन आदिवासी झोपड़ियों (tribal huts) के माध्यम से विभिन्न आदिवासी समुदायों और पीवीटीजी की जीवन शैली और संस्कृति को प्रदर्शित किया जाता है.

इस साल आदिवासी झोपड़ियों में कुटिया कंधा, संथाल, पौडी भुइयां, हिल खड़िया और मनकिर्डिया, जुआंगा मुंडा, गदाबा, डोंगरिया कंधा, लांजिया साओरा, बोंडा और चुक्तिया भुंजिया की झोपड़ियां को शामिल किया गया है.

इसके अलावा इस मेले में 39 सांस्कृतिक समूह आदिवासी नृत्य प्रदशित करेंगे, जो 26 जनवरी से 1 फरवरी तक चलेगा.
वहीं 30 जनवरी को भजन संध्या, 2 फरवरी को एससी/एसटी विकास विभाग सांस्कृतिक संघ द्वारा एक नाटक और 3 से 5 फरवरी तक विभिन्न आदिवासी समुदायों द्वारा बहुभाषी नाटकों का आयोजन किया जाएगा.

इस बारे में मिली जानकारी के अनुसार यह आदिवासी मेला पहली बार 1951 में ओडिशा की तत्कालीन राजधानी कटक में शुरू किया गया था. बाद में इसे 1954 में राज्य की नई राजधानी, भुवनेश्वर में लगाया जाने लगा.

यह आयोजन राज्य में आदिवासी विकास के बारे में बताता है. इसके साथ ही मेले के दौरान आदिवासी समुदाय अपनी पहचान और विशिष्टता के साथ मुख्यधारा के लोगों से घुलता- मिलता है.

जानकारी के मुताबिक लगभग 10 लाख से अधिक लोग इस कार्यक्रम में शामिल होते हैं और खुशी-खुशी जैविक जनजातीय उत्पाद और लघु वन उत्पाद खरीदते हैं.

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