HomeGround Reportबैगा आदिवासियों का खाना कौन और क्यों बदल देना चाहता है?

बैगा आदिवासियों का खाना कौन और क्यों बदल देना चाहता है?

साल 2023 को दुनिया भर में मिलेट ईयर (Millet Year) के तौर पर मनाया गया. भारत में हुए G20 सम्मेलन में भी मिलेट्स की खूब चर्चा हुई. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मध्य प्रदेश के डिंडोरी ज़िले की लहरीबाई की तारीफ़ करते हुए कहा कि वे परंपरागत पोषक अनाज को बचाने का महत्वपूर्ण काम कर रही हैं. लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि मध्यप्रदेश के डिंडोरी में ही बैगा आदिवासियों को परंपरागत अनाज यानि मिलेट्स की बजाए गेंहू और धान जैसा अन्न खाने की आदत डाली जा रही है.

मध्य प्रदेश के बैगा आदिवासियों (Baiga Tribe) की चर्चा कई साल से एक बेहद ख़ास वजह से होती रही है. लेकिन पिछले साल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस समुदाय की एक लड़की की तारीफ़ करके पूरे देश का ध्यान इस जनजाति की तरफ खींचा.

लहरीबाई (Lahari Bai) मध्य प्रदेश के डिंडोरी ज़िले की सिलपिढी गांव की रहने वाली हैं. इस लड़की ने एक अनोखा बैंक खोला है. इस बैंक में पैसे नहीं बल्कि बैगा आदिवासियों की परंपरागत फ़सलों के बीज मिलते हैं.

MBB की टीम को हाल ही में डिंडोरी जाने का मौका मिला और इस दौरान हमने कई बैगा गांवों में लोगों से मुलाकात की. इन मुलाकातों में हमने यह पाया कि बैगा आदिवासी अभी भी मुख्यतः मिलेट्स यानि परंपरागत फ़सलों की खेती ही कर रहे हैं.

लेकिन इन मुलाक़ातों में हमने यह भी पाया कि बैगा आदिवासियों का भोजन अब बदल रहा है. यह भोजन क्यों बदल रहा है? क्या यह एक स्वभाविक बदलाव है? या फिर यह एक योजना के तहत लाया जा रहा बदलाव है? या फिर यह नीति निर्माताओं की एक लापरवाही भर है? देखिये यह स्पेशल रिपोर्ट –

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