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आदिवासी संगठनों ने जताई नागालैंड के ‘एनआरसी’ पर आपत्ति, कहा कई शुद्ध नागा आदिवासी हो जाएंगे बाहर

नागालैंड सरकार कथित तौर पर जुलाई 2019 से RIIN अभ्यास को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही है. इसके पीछे बाहरी लोगों को नौकरी और सरकारी योजनाओं के लाभ उठाने के लिए नकली स्वदेशी प्रमाण पत्र प्राप्त करने से रोकने का मकसद है.

नागा जनजातियों के एक प्रमुख संगठन ने नागालैंड सरकार से कहा है कि वह रजिस्टर ऑफ़ इंडिजिनस इनहैबिटेंट्स ऑफ़ नागालैंड (Register of Indigenous Inhabitants of Nagaland – RIIN) को तैयार करने में जल्दबाजी न दिखाए.

नागालैंड सरकार कथित तौर पर जुलाई 2019 से RIIN अभ्यास को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही है. इसके पीछे बाहरी लोगों को नौकरी और सरकारी योजनाओं के लाभ उठाने के लिए नकली स्वदेशी प्रमाण पत्र प्राप्त करने से रोकने का मकसद है.

RIIN असम में बन रहे नैशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स की तर्ज़ पर ही बनना है.

राज्य सरकार ने RIIN के कार्यान्वयन के लिए तीन सदस्यीय पैनल बनाया है. लेकिन विरोध के बाद इस प्रक्रिया को फ़िलहाल रोक दिया गया.

नागा होहो, जो एक प्रमुख आदिवासी संगठन है, ने 2019 में RIIN को पुनर्जीवित करने की सरकार की मंशा पर आपत्ति जताई थी. नागा होहो ने एक बयान में कहा है कि RIIN के मुद्दे पर अत्यंत सावधानी बरतना ज़रूरी है, क्योंकि इसका असर नागा लोगों के लिए खतरनाक हो सकता है.

राज्य सरकार ने समिति को एक यह अधिकार दिया था कि वो आदिवासी होने के मानदंड निर्धारित करे. इसमें आदिवासी होने के दावों को प्रमाणित करने, आदिवासी के रूप में पंजीकरण का स्थान, आदिवासी होने के दावों का आधार, और अनुमतिप्राप्त दस्तावेज़ों की लिस्ट तय करने का अधिकार इस समिति को था.

नागा होहो का कहना है कि 1 दिसंबर, 1963 (जिस दिन नागालैंड को राज्य का दर्जा मिला) को “स्थायी निवासियों” के निर्धारण की कट-ऑफ़ तारीख के रूप में माना गया तो यह ग़लत होगा. इस तिथि से उन नागा लोगों के बाहर होने की संभावना है जो नागालैंड के बाहर से आकर बसे हैं.

असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के अलावा म्यांमार में भी कई नागा आदिवासी रहते हैं, और इन सबको अपनी पैतृक भूमि पर अधिकार है. लेकिन 1 दिसंबर, 1963 की कट-ऑफ़ तारीख़ के लागू होने से इनके दावे खारिज हो सकते हैं.

नागालैंड के कोनियाक आदिवासी

नागा होहो का दावा है कि हज़ारों नागा आदिवासी ऐसे हैं जो कई दशकों से राज्य में बसे हैं, लेकिन उनके पास 1 दिसंबर, 1963 से पहले के दस्तावेज़ नहीं होंगे.

इस तारीख़ से पहले के भूमि कर, हाउस टैक्स या मतदाता सूची में नाम जैसे दस्तावेज़ों के अभाव में कई शुद्ध नागाओं को भी अपनी नागरिकता साबित करने में मुश्किल आएगी.

ऐसे में बाहर से आकर बसे नागाओं को अवैध मानकर उनकी भूमि और संपत्ति ज़ब्त की जा सकती है.

इस मुद्दे पर नागालैंड सरकार आज (अप्रैल 16) विभिन्न स्टेकहोलडर्स के साथ एक बैठक करेगी.

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