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‘अगर घर वापसी नहीं होती तो आदिवासी राष्ट्रविरोधी हो जाते’ : मोहन भागवत

संघ परिवार लंबे समय से आदिवासियों के ईसाई धर्मांतरण का विरोध करता रहा है.वानवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठनों के माध्यम से यह अभियान दशकों से चल रहा है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को लेकर एक महत्वपूर्ण दावा किया है.  

मोहन भागवत का दावा है कि राष्ट्रपति पद पर रहते हुए प्रणब मुखर्जी ने ‘घर वापसी’ कार्यक्रम की सराहना की थी और कहा था कि अगर संघ का धर्मांतरण पर यह काम न होता, तो आदिवासियों का एक हिस्सा राष्ट्रविरोधी हो गया होता.

प्रणब मुखर्जी का 2020 में निधन हो गया और इस तरह की बातचीत के कोई सार्वजनिक रिकॉर्ड नहीं हैं.

भागवत ने यह बात सोमवार को इंदौर में विश्व हिंदू परिषद (VHP) नेता चंपत राय को ‘राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार’ प्रदान करने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में कही. चंपत राय श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव भी हैं.

अपने संबोधन में भागवत ने कहा, “डॉ. प्रणब कुमार मुखर्जी उस समय राष्ट्रपति थे. जब मैं उनसे पहली बार मिला, तो संसद में घर वापसी को लेकर बहुत विवाद चल रहा था. मैं पूरी तैयारी के साथ गया था लेकिन उन्होंने मुझसे पूछा कि आपने कुछ लोगों को वापस लाने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों की? ऐसा करने से विवाद होता है. उन्होंने यह भी कहा कि अगर मैं कांग्रेस में होता और राष्ट्रपति नहीं होता, तो मैं भी संसद में इसका विरोध करता. हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि संघ के प्रयासों के कारण 30 फीसदी आदिवासी ईसाई या राष्ट्रविरोधी बनने से बच गए.”

इस बारे में विस्तार से बताते हुए भागवत ने कहा कि यह वही है जो उन्होंने कहा था ऐसा इसलिए है क्योंकि धर्मांतरण व्यक्ति को अपनी जड़ों से दूर ले जाता है.

मोहन भागवत ने यह भी बताया कि अगर धर्मांतरण स्वेच्छा से और आंतरिक विश्वास से हो, तो यह स्वीकार्य है. लेकिन प्रलोभन या जबरदस्ती से धर्मांतरण को उन्होंने गलत ठहराया.

उन्होंने कहा, “अगर धर्मांतरण आंतरिक प्रेरणा से होता है, तो यह ठीक है. हम मानते हैं कि सभी प्रार्थना पद्धतियां सही हैं. लेकिन अगर धर्मांतरण प्रलोभन या जबरदस्ती से होता है, तो इसका उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति नहीं होता बल्कि जड़ों से काटकर प्रभाव बढ़ाना होता है.”

भागवत ने कहा कि संघ ने हमेशा आदिवासियों के धर्म परिवर्तन को लेकर विरोध जताया है, खासकर जब इसे बाहरी प्रभाव या लालच के तहत किया जाता है.

आदिवासियों का ईसाई धर्म में धर्मांतरण संघ परिवार के प्रमुख मुद्दों में से एक रहा है, जिसने वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठनों के माध्यम से दशकों से इसके खिलाफ आंदोलन किया है.

संघ से जुड़े कई संगठन पिछले कुछ सालों से आदिवासी बहुल इलाकों में धर्मांतरित आदिवासियों को आरक्षण के लाभ से वंचित करने के लिए अभियान चला रहे हैं.

भागवत ने यह भी कहा कि भारतीय संस्कृति और धर्म के मूल तत्व भगवान राम, कृष्ण और शिव से जुड़े हुए हैं.

उन्होंने यह उदाहरण देते हुए कहा कि भारत का धर्मनिरपेक्षता का दृष्टिकोण कोई विदेशी विचार नहीं है, बल्कि यह भारत की 5000 साल पुरानी सभ्यता का हिस्सा है.

भागवत का यह बयान ऐसे समय आया है जब विपक्ष जाति जनगणना और आदिवासी अधिकारों को अपने चुनावी रणनीति के केंद्र में रख रहा है.

वहीं मोहन भागवत का प्रणब मुखर्जी को लेकर यह बयान महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने (प्रणब मुखर्जी) 2018 में नागपुर में RSS के एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया था जो उस समय काफी चर्चा में रहा था.

भागवत के इस बयान में मुखर्जी के विचारों का जिक्र है. हालांकि प्रणब मुखर्जी की तरफ़ से कांग्रेस पार्टी के नेता के तौर पर कभी ऐसी कोई बात सार्वजनिक तौर पर कम से कम सामने नहीं आई थी.

आरएसएस के संगठन आदिवासी इलाकों में धर्मांतरण को मुद्दा बनाता रहे हैं. इस दिशा में जनजाति सुरक्षा मंच नाम के एक संगठन ने धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति की सूचि से बाहर करने की मांग करते हुए आंदोलन खड़ा करने की कोशिश की है.

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