असम सरकार (Assam Govt) ने पहली बार ओबीसी और एससी कोटा के अलावा राज्य सरकार की नौकरियों में चाय जनजातियों (Tea tribes) और आदिवासी समुदाय (Adivasi community) के लिए 3 फीसदी आरक्षण की शुरुआत की है. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) ने गुरुवार को विधानसभा को यह सूचित किया.
उन्होंने कहा कि इस साल की भर्ती में 3% आरक्षण शामिल होगा, जिससे चाय जनजातियों और आदिवासियों को सशक्त बनाया जा सकेगा.
सरमा ने सदन को बताया कि सरकार ने चाय बागान क्षेत्रों में 100 हाई स्कूल खोले हैं और अगले साल जनवरी तक 100 और खोले जाएंगे. उन्होंने कहा कि वहां दस डिग्री कॉलेज भी स्थापित किए जाएंगे, जो मुख्य रूप से चाय जनजातियों और आदिवासियों से संबंधित छात्रों के लिए होंगे.
सीएम ने सदन को राज्य के चाय बागान क्षेत्रों में अस्पतालों और स्कूलों के विकास के लिए केंद्र द्वारा 700 करोड़ रुपये के आवंटन के बारे में भी बताया.
इसके अलावा, उन्होंने कहा कि असम सरकार ने वहां सड़कों के निर्माण के लिए 900 करोड़ रुपये भी आवंटित किए हैं.
सीएम सरमा ने सदन को बताया कि अगले साल से आठ लाख चाय बागान श्रमिकों को अपने बच्चों की शिक्षा का खर्च वहन करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी.
वहीं विपक्ष के नेता और वरिष्ठ कांग्रेस नेता देबब्रत सैकिया और निर्दलीय विधायक अखिल गोगोई ने पार्टी द्वारा चाय श्रमिकों के वेतन वृद्धि के वादे पर सीएम से सवाल किया. सैकिया ने कहा, “दैनिक मजदूरी को 351 रुपये तक बढ़ाना भाजपा के विजन डॉक्यूमेंट में एक वादा था.”
इस पर जवाब देते हुए सीएम ने दावा किया कि भाजपा ने चाय बागान श्रमिकों के लिए बहुत कुछ किया है. उन्होंने कहा, “कांग्रेस के पास चाय जनजातियों के कल्याण के बारे में हमसे सवाल करने का नैतिक अधिकार नहीं है.”
टी-ट्राइब्स की मुख्य मांगों की एक बार फिर अनदेखी
एक बार फिर से असम सरकार ने टी ट्राइब्स को ठगने का काम किया है. एक बार फिर मुख्यमंत्री ने समुदाय की विशिष्ट मांगों के लिए कोई ठोस प्रतिबद्धता पर स्पष्ट नहीं किया.
असम सरकार टी ट्राइब्स की प्रमुख मांग कि उन्हें अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल किया जाए की अनदेखी लंबे वक्त से कर रही है.
चाय श्रमिक विभिन्न आदिवासी समुदायों से आते हैं जिन्हें अन्य राज्यों में एसटी का दर्जा दिया गया है इसलिए असम में भी वो ऐसा ही चाहते हैं. अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने से सदस्यों को आरक्षण और छूट जैसे कुछ सामाजिक लाभ मिलते हैं, जो वर्तमान में चाय जनजातियों के लिए नहीं हैं.
साल 2022 में केंद्र सरकार ने अनुसूचित जनजाति सूची को अपडेट किया और इनमें पांच राज्यों- छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश की 12 जनजातियां और पांच उप-जनजातियां शामिल थीं.
लेकिन सूची में असम की छह जनजातियां – ताई अहोम, मोरन, मटक, चुटिया, कोच राजबंशी और चाय जनजाति को छोड़ दिया गया. जबकि ये जनजातियां लंबे समय से एसटी दर्जे की मांग कर रहे हैं.
बीजेपी ने इन समुदायों को एक नहीं, बल्कि दो लगातार राज्य विधानसभा चुनाव घोषणापत्रों में अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने का वादा किया था. लेकिन अब तक वादा पूरा करने में नाकाम रही हैं.
इसके अलावा बीजेपी ने 2016 के चुनावों में दैनिक वेतन के रूप में 351 रुपये का वादा किया था, लेकिन इस वादे को भी उन्होंने स्पष्ट रूप से छोड़ दिया.
टी-ट्राइब्स कौन हैं?
औपनिवेशिक काल में, 1823 में रॉबर्ट ब्रूस नामक एक ब्रिटिश अधिकारी द्वारा चाय की पत्तियों को उगाए जाने के बाद, वर्तमान के उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ आदि राज्यों से आदिवासी समुदायों के लोगों को असम में चाय बागानों में काम करने के लिए लाया गया.
1862 तक, असम में 160 चाय बागान थे. इनमें से कई समुदायों को उनके गृह राज्यों में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिया गया है.
असम में, इन लोगों को चाय जनजाति के रूप में जाना जाने लगा. वे एक विषम, बहु-जातीय समूह हैं और सोरा, ओडिया, सदरी, कुरमाली, संताली, कुरुख, खारिया, कुई, गोंडी और मुंडारी जैसी विविध भाषाएं बोलते हैं.
उन्होंने औपनिवेशिक काल में इन चाय बागानों में काम किया था और उनके वंशज आज भी राज्य में चाय बागानों में काम कर रहे हैं. वे असम को अपना घर बना रहे हैं और इसके समृद्ध सामाजिक-सांस्कृतिक ताने बाने को जोड़ रहे हैं. आज असम में 8 लाख से अधिक चाय बागान कर्मचारी हैं और चाय जनजातियों की कुल जनसंख्या 65 लाख से अधिक होने का अनुमान है.