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तमिलनाडु: मनरेगा को शुरु हुए 15 साल हो गए, लेकिन इस आदिवासी बस्ती में अभी तक नहीं पहुंचा लाभ

खेतों में काम करने वाली मोहनम्माल ने कहा कि ज़मींदार कभी-कभी उन्हें समय पर मज़दूरी नहीं देते. मज़दूरी मिलने में एक-दो दिन की देरी का सीधा असर इन आदिवासियों के खाने पर पड़ता है. कर्ज़ में डूबे इन आदिवासियों को अपने खाने की मात्रा कम करनी पड़ती है.

रोज़गार गारंटी योजना मनरेगा (MGNREGA) को शुरु हुए 15 साल हो चुके हैं, लेकिन अभी भी देश में कई ऐसी जगहें हैं, जहां साल में 100 दिन के काम की गारंटी देने वाली यह स्कीम लागू नहीं हो पाई है.

ऐसी ही एक जगह है तमिलनाडु के कांचीपुरम ज़िले का मणिमंगलम गांव, जहां इरुला आदिवासी समुदाय के 70 परिवार रहते हैं.

यूपीए सरकार द्वारा 2005 में शुरू किए गए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम का मक़सद 18 साल से ऊपर के लोगों को दैनिक मज़दूरी के लिए अनस्किल्ड काम देकर देश के हर ग्रामीण परिवार को कवर करना है. तमिलनाडु में एक दिन की मज़दूरी है 250 रुपये.

लेकिन इस योजना तक पहुंच की कमी ने मणिमंगलम गांव के इरुला आदिवासियों को उच्च जाति के लोगों के खेतों में काम करने को मजबूर कर दिया है. गांव की इरुला औरतें आस-पास के इलाकों के घरों में काम करती हैं.

इस ग़लती को सुधारने के लिए ज़िला अधिकारियों को चिट्ठियां लिखी गई हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई है.

ऐसी ही एक शिकायत करने वाले 54 साल के शंकर ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, “हमें मनरेगा के तहत हफ़्ते में पांच दिन काम मिलेगा, जिससे हर हफ़्ते हम 1,250 रुपये कमा सकते हैं. इन पैसों से हम अपना रोज़ का ख़र्चा आराम से निकाल सकते हैं. फ़िलहाल तो हम उच्च जाति के लोगों की दया पर निर्भर हैं.”

खेतों में काम करने वाली मोहनम्माल ने कहा कि ज़मींदार कभी-कभी उन्हें समय पर मज़दूरी नहीं देते. मज़दूरी मिलने में एक-दो दिन की देरी का सीधा असर इन आदिवासियों के खाने पर पड़ता है. कर्ज़ में डूबे इन आदिवासियों को अपने खाने की मात्रा कम करनी पड़ती है.

पहले से ही स्कूल बंद होने की वजह से इनके बच्चों को मिड-डे मील नहीं मिल रहा, ऊपर से मज़दूरी न मिलना उनके लिए दोहरी मार बना जाता है.

ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, मनरेगा के तहत 1.32 करोड़ लोगों का पंजीकरण हुआ है, जिसमें से 89.96 लाख लोग सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं. काम करने वालों की औसत आयु 68 है. तमिलनाडु में अधिकांश आदिवासी आबादी मनरेगा के तहत काम पाने के योग्य है.

10 अगस्त को ग्रामीण विकास मंत्रालय ने लोकसभा में बताया कि राज्यों से मनरेगा पंजीकरण प्रणाली के दायरे का विस्तार करने के लिए कहा गया है. 2020-21 के दौरान जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने राज्यों को शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका सहित विभिन्न विकास गतिविधियों के लिए 5,476.01 करोड़ रुपये दिए हैं.

मामला सिर्फ़ मनरेगा का नहीं है. इस गांव के कई आदिवासी जो वृद्धावस्था पेंशन पाने के योग्य हैं, उनका कहना है कि उन्हें उसका फ़ायदा नहीं मिल रहा है. ज़िला प्रशासन से कई विनतियों के बाद भी हालात में कोई बदलाव नहीं हुआ है.

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ कांचीपुरम के जिला राजस्व अधिकारी का कहना है कि अधिकारी गांव का दौरा करेंगे, और जल्द से जल्द योजना को लागू करेंगे.

(Photo Credit: Ashwin Prasath)

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