कर्नाटक विधानसभा के शीतकालीन सत्र में बीजेपी सरकार ने सोमवार को राज्य सरकार की नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षण बढ़ाने से जुड़े विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया. इस बिल के तहत SC/ST के आरक्षण में 2 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई है.
विधेयक में अनुसूचित जाति के लिए कोटा 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 17 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के लिए तीन प्रतिशत से बढ़ाकर सात फीसदी करने का प्रस्ताव है. इस साल अक्टूबर में सरकार की ओर से जारी अध्यादेश का स्थान लेने के लिए यह विधेयक लाया गया था.
बिल का विपक्षी सदस्यों ने भी समर्थन किया. हालांकि, विपक्ष का कहना है कि इस बिल से भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज के लोगों का भला नहीं होगा.
विपक्ष ने बीजेपी सरकार पर हमला करते हुए कहा कि नई आरक्षण नीति से लक्षित लोगों को लाभ नहीं होगा क्योंकि निजीकरण के कारण सरकारी नौकरियों में कटौती की गई है. विपक्ष का कहना है कि इस बिल का लाभ तभी होगा जब निजी क्षेत्रों में भी इसे लागू किया जाएगा.
कर्नाटक कैबिनेट ने बीते आठ अक्तूबर को ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का आरक्षण बढ़ाने के लिए अपनी औपचारिक सहमति दे दी थी. अध्यादेश को राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद नवंबर से लागू भी कर दिया गया था. अब अध्यादेश को कानूनी तौर पर अमलीजामा पहनाने के लिए ही इस बिल को विधानसभा में पेश किया गया था.
कानून मंत्री जेसी मधुस्वामी के हवाले से डेक्कन हेराल्ड ने कहा, “सरकार ने यह जानते हुए कि यह 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को पार कर जाएगा, अध्यादेश को लागू करने का जोखिम लिया था. हमारे ऊपर एजे सदाशिव, नागमोहन दास और सुभाष आदि आयोगों की रिपोर्ट को लागू करने का दबाव था. हम यह भी जानते थे कि ऐसा करने में हमारे पास खुद को सही ठहराने के लिए भी पर्याप्त साधन था.”