केरल के त्रिशूर ज़िले के कुडुम्बश्री मिशन ने राज्य के आदिवासी गांवों को महिलाओं और बच्चों के लिए ज़्यादा सुरक्षित बनाने के लिए एक ख़ास योजना बनाई है.
नवंबर 2020 में शुरु हुई ‘पेण्णिडम’ योजना को इतनी सफलता मिली है कि यह अब पूरे राज्य में आदिवासियों के विकास का एक मॉडल बन रहा है.
‘पेण्णिडम’ का मिशन है हर घर को महिलाओं और बच्चों के लिए सुरक्षित बनाना.
आदिवासी बस्तियों में समय बिताने के बाद कुडुम्बश्री के सदस्यों ने पाया कि मनोरंजन और सुख-सुविधा के साधनों के अभाव में आदिवासी बस्तियों में निराशा का माहौल रहता है. इससे उबरने के लिए अकसर लोग हिंसा का सहारा लेते हैं.
‘पेण्णिडम’, जिसका मतलब ‘महिलाओं की जगह’ है नवंबर 2020 में महामारी के दौरान शुरु की गई थी. इसका पहला मकसद महिलाओं की क्षमताओं को बढ़ाना था. यह पायलट प्रोजेक्ट के रूप में अतिरापल्ली ग्राम पंचायत के वाझचाल और पोगलप्पारा गांवों में शुरु किया गया था.
आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए मिशन के तहत कुछ गतिविधियाँ भी शुरू की गई हैं. इस बात पर भी ध्यान दिया जा रहा है कि इन गतिविधियों में गांव की सभी आदिवासी महिलाओं की भागीदारी हो.
महिलाओं को ज़्यादा एक्टिव और आत्मविश्वास देने के लिए उनकी शारीरिक और मानसिक फ़िटनेस का ख़ास खयाल रखा जा रहा है. इसके लिए अलग-अलग ग्रुप बनाए गए हैं.
इन ग्रुप्स को अलग-अलग खेलों में ट्रेनिंग दी जा रही है. जबकि मानसिक स्वास्थ्य के लिए काउंसलिंग और ग्रुप थैरपी का सहारा लिया जा रहा है.
पेण्णिडम के लिए काम कर रहे कुडुम्बश्री सदस्यों का कहना है कि इन गतिविधियों से महिलाओं में परिवर्तन दिखाई दे रहा है. इन खेलों में हिस्सा लेने के बाद से आदिवासी महिलाओं का जीवन के प्रति नज़रिया बदलने लगा है, जो एक सकारात्मक बदलाव है.
साथ ही यह महिलाएं अब अपनी परेशानियों को साझा करने से हिचकिचाती नहीं हैं. उनका कहना है कि इस पूरे प्रोजेक्ट ने घर के माहौल को ही बदल कर रख दिया है.
केरल में आदिवासियों की आबादी 5 प्रतिशत है. और यहां पांच पीवीटीजी समुदाय यानि आदिम जनजातियां हैं – चोलनायकन, कुरुम्बा, काटुनायकन, काड़र और कोरगा.
आदिवासी आबादी का एक बड़ा हिस्सा पश्चिम घाट की पहाड़ियों में वायनाड, पालक्काड, और इडुक्की ज़िलों में मिलता है.