HomeAdivasi Dailyकश्मीर की जनजातियों में लाइफ़ स्टाईल से जुड़े रोग बढ़ रहे हैं

कश्मीर की जनजातियों में लाइफ़ स्टाईल से जुड़े रोग बढ़ रहे हैं

एक शोध का दावा है कि कश्मीर की जनजातियों के लोगों में लाइफ़ स्टाइल से जुड़े रोग बढ़ रहे हैं. लेकिन ये लोग आधुनिक इलाज से कतराते हैं. वे अभी भी जड़ी बूटियों से ही इलाज को तरजीह देते हैं.

2011 की जनगणना के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जनजातियों की कुल आबादी 14.9 लाख है, जो केंद्र शासित प्रदेश की कुल आबादी का 11.9 प्रतिशत है और देश की कुल आदिवासी आबादी का 1.4 प्रतिशत है.

पुंछ, राजौरी, अनंतनाग, उधमपुर, कुपवाड़ा, डोडा और श्रीनगर जिलों में गुज्जरों और बकरवाल की संख्या ज्यादा है. इस आबादी में करीब 90 प्रतिशत गुज्जर (करीब 9 लाख) और बकरवाल (करीब 2 लाख) हैं.

बकरवाल पूरी तरह खानाबदोश हैं जबकि गुज्जर मुख्य रूप से खेती-किसानी करते हैं. वे आजीविका कमाने के लिए मवेशियों का पालन-पोषण करते हैं. इसके अलावा मजदूर और ड्राइवर के रूप में भी काम करते हैं. उनकी जीवन शैली में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया है. वे गर्मियों में हिमालय के ऊपरी क्षेत्रों में पशुओं को लेकर जाते हैं और सर्दियों में सेट होने पर मैदानी इलाकों में लौटते हैं. जैसे-तैसे उनका घर चल रहा है.

थायराइड, प्री डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर की व्यापकता

2020 में सौरा स्थित ‘शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज’ (SKIMS) द्वारा एक अध्ययन किया गया, जिसमें कश्मीर के अंदर थायराइड विकारों की व्यापकता का अनुमान लगाया. साथ ही कश्मीर घाटी के गुज्जरों और बकरवाल के बीच थायराइड ऑटो-एंटीबॉडी की स्थिति का मूल्यांकन किया. अनंतनाग, पुलवामा, गांदरबल, कुपवाड़ा समेत कई जिलों से कुल 763 लोगों ने इस अध्ययन में भाग लिया था.

इस अध्ययन में पता चला कि 33 प्रतिशत आदिवासियों में थायराइड की किसी न किसी तरह की शिथिलता थी, जिसमें 24.1 प्रतिशत सब-क्लिनिकल और 6.8 प्रतिशत ओवरट हाइपोथायरायडिज्म शामिल था. इसके अलावा आदिवासियों में आयोडीन की कमी भी दिखी.

SKIMS द्वारा 2021 में किए गए एक अन्य अध्ययन में 20 वर्ष से अधिक आयु के 6,808 आदिवासियों (5,695 गुज्जर और 1,113 बकरवाल) को शामिल करके हाई ब्लड प्रेशर और संबंधित जोखिम कारकों के प्रसार का मूल्यांकन किया गया.

जिसमें पता चला कि हाई ब्लड प्रेशर का समग्र प्रसार 41.4 प्रतिशत था और प्री-हाई ब्लड प्रेशर 35 प्रतिशत था. निष्क्रिय धूम्रपान, पारिवारिक इतिहास और मोटापा इस स्थिति के साथ महत्वपूर्ण रूप से जुड़े हुए थे. 

इस अध्य्यन मे बताया गया है कि गरीबी, निरक्षरता और भाषा बाधा के कारण, यहां आदिवासी एलोपैथिक दवाओं की तुलना में पारंपरिक इलाज पसंद करते हैं.

गर्भवती महिलाओं में जिंक, आयरन, फोलेट और आयोडीन सहित सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के कारण शिशुओं में जन्म के समय वजन कम होता है, जिसके कारण उनके बड़े होने पर उनमें एनीमिया और गैर-संचारी रोगों का खतरा बढ़ जाता है.

सब्सिडी चावल, मक्का और दाल आदिवासियों का प्रमुख आहार है. वे दोपहर की चाय भी पीते हैं, जिसमें नमक की मात्रा अधिक होती है कुल मिलाकर उनकी आहार की आदतें बहुत खराब हैं और परेशानी का बड़ा कारण हैं.

कश्मीर की आदिवासी आबादी की समस्या का हल क्या है?

एसकेआईएमएस में क्लिनिकल रिसर्च विभाग के उल्लेख किए गए अध्ययनों और साइंटिस्ट-बी के सह-लेखक डॉक्टर ताजली सहार ने बताया कि लाइफस्टाइल की बीमारियों को अकेले एक सेडेंटरी लाइफस्टाइल से नहीं जोड़ा गया था.

नए शोध ने खराब पोषण, कुपोषण, धूम्रपान, तंबाकू का सेवन और जंक फूड सहित कई कारकों के साथ अपना संबंध दिखाया है. उन्होंने कहा कि सामान्य आबादी के बीच हाई ब्लड प्रेशर के प्रसार पर कोई भरोसेमंद डेटा उपलब्ध नहीं है. 

लेकिन हम आसानी से कह सकते हैं कि आदिवासियों में हाई बीपी आम है. दरअसल, वे ज्यादातर खराब हवादार कच्चे घरों या ढोकों में रहते हैं और खाना पकाने के लिए लकड़ी पर निर्भर रहते हैं.

यह बहुत कम उम्र में महिलाओं और बच्चों के बीच एक निष्क्रिय धुएं के रूप में काम करता है. डॉक्टर सहार ने कहा कि प्री-डायबिटीज 11 और 13 प्रतिशत के बीच इसकी व्यापकता के साथ चिंता का कारण है. अगर ठीक से देखभाल नहीं की जाती है तो यह आने वाले दिनों में आखिरकार पूरी तरह कार्यात्मक मधुमेह का कारण बन सकता है.

2021 में जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने जनजातीय क्षेत्रों में समग्र स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए एक स्वास्थ्य योजना शुरू की थी. इस योजना के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) मोबाइल मेडिकल यूनिट, एम्बुलेंस सेवाओं, अस्पतालों में इलाज और आदिवासी युवाओं के प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करना शामिल था. इसके अलावा उन्हें विभिन्न योजनाओं से लाभ उठाने में मदद उपलब्ध करना था. दुर्भाग्य से यह कागज पर ही रह गया.

दूसरी ओर एसकेआईएमएस एंडोक्रिनोलॉजी विभाग ने मुद्दों को हल करने के लिए एक हस्तक्षेप योजना तैयार की है. संस्थान ने कहा कि हमने अनंतनाग और पुलवामा जिलों को इस परियोजना के लिए चुना जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित है.

योजना के मुताबिक अगर कोई भी हाई बीपी पीड़ित व्यक्ति हमारे पास आता है तो हम मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (ASHAs) के माध्यम से मुफ्त दवाएं देंगे. हम एक मरीज की स्थिति की आसानी से निगरानी करने के लिए IDs से ASHAs प्रदान करेंगे और ASHAs साप्ताहिक आंकड़े भेजेंगे.

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