पिछले हफ्ते मणिपुर (Manipur) में संघर्ष और विभाजन को बढ़ाने की क्षमता वाली मांगों ने ज़ोर पकड़ा है. मणिपुर 3 मई, 2023 के बाद से भड़की हिंसा से अभी तक उबर नहीं पाया है, जिसमें 200 से अधिक लोग मारे गए हैं और 60 हज़ार से अधिक लोग राहत शिविरों में हैं.
इसी बीच अब मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह (N Biren Singh) ने कहा है कि चिन कुकी समुदाय (Chin Kuki community) राज्य की अनुसूचित जनजाति सूची (Scheduled Tribes list) में रहेगा या नहीं, यह तय करने के लिए एक सर्व-जनजाति समिति का गठन किया जाएगा.
कुकी-ज़ो संगठनों ने कुछ जनजातियों की एसटी स्थिति की समीक्षा करने के इस कदम का विरोध किया है. इस कदम की इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) और ज़ोमी काउंसिल संचालन समिति (ZCSC) ने भी कड़ी निंदा की है.
आईटीएलएफ इसे बीरेन सिंह सरकार द्वारा कुकी-ज़ो आदिवासियों को उनके अधिकारों और भूमि से वंचित करने के लिए एसटी मानदंडों को बदलने की कोशिश के रूप में देखता है. वहीं ज़ोमी संगठनों का कहना है कि यह केवल मौजूदा विभाजन को बढ़ाएगा.
मणिपुर के उखरुल टाइम्स नाम के पोर्टल के अनुसार मुख्यमंत्री ने अन्य स्थानीय समूहों की ऐसी मांगों के जवाब में कहा है कि इस मामले को देखने के लिए एक “समिति बनाई जाएगी”.
उधर मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने कहा कि समिति की रिपोर्ट को प्रस्ताव के रूप में केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय को भेजा जाएगा. सीएम बीरेन द्वारा की गई टिप्पणी के बाद विवाद छिड़ गया, जो लंगथाबल में दिवंगत राजा महाराज गंभीर सिंह की 190वीं पुण्य तिथि के मौके पर बोल रहे थे.
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एन बीरेन ने लिखा, “वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों को बचाने के लिए किसी को जोखिम उठाना होगा. युवाओं को नशीली दवाओं और राज्य को खतरे में डालने वाले विभिन्न तत्वों से बचाने के लिए बलिदान देना होगा. राज्य सरकार संविधान में निहित कानूनों और मूल्यों का पालन करते हुए इन चुनौतीपूर्ण कार्यों को कर रही है.”
इस बारे में राज्य सरकार के रुख के बारे में पूछे जाने पर कि क्या “सभी कुकी जनजातियों को एसटी के रूप में सूचीबद्ध किया जाएगा”, सिंह ने मंगलवार, 9 जनवरी को कहा, “उन्हें सूची में शामिल किया गया था लेकिन इसे कैसे शामिल किया गया, इसकी फिर से जांच की जानी है. इसलिए कोई भी टिप्पणी देने से पहले हमें सभी जनजातियों को मिलाकर एक समिति बनानी होगी, तभी हम हटाने या शामिल करने का पूरा प्रस्ताव भेज पाएंगे… कुछ भी हो सकता है, लेकिन समिति बनने के बाद.”
विभिन्न जनजातियों के बीच किसी भी संवाद प्रक्रिया में शामिल होने की अनिच्छा के लिए काफी आलोचना झेल चुके मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के इस विवादास्पद बयान को एक ऐसे संघर्ष के लिए एक और फ्लैश प्वाइंट की शुरुआत के रूप में देखा जाता है जिसे संतोषजनक ढंग से नियंत्रित नहीं किया गया है.
इसके अलावा राज्य सरकार का यह कदम अलग से नहीं उठाया गया है.
एक अलग कार्रवाई में जिसे एक साथ होते हुए देखा जा सकता है, केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने हाल ही में मणिपुर के अतिरिक्त मुख्य सचिव को पत्र लिखकर राज्य प्रशासन से “घुमंतू चिन-कुकी” को सूची से हटाने की मांग करने वाले प्रतिनिधित्व की जांच करने के लिए कहा था.
रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) के राष्ट्रीय सचिव महेश्वर थौनाओजम द्वारा मणिपुर में अनुसूचित जनजातियों की सूची बनाई गई. मंत्रालय के पत्र ने कथित तौर पर यह स्पष्ट कर दिया कि मामले को आगे बढ़ाने के लिए राज्य सरकार की सिफारिश एक पूर्व-आवश्यकता है.
इस बीच इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम और ज़ोमी काउंसिल स्टीयरिंग कमेटी ने बुधवार, 10 जनवरी को मणिपुर में जातीय संघर्ष के बीच कुछ कुकी-ज़ो समुदायों की अनुसूचित जनजाति (एसटी) स्थिति की समीक्षा करने के कदम की कड़ी निंदा की.
मूल निवासी
8 जनवरी, 2024 को यह ख़बर भी प्रकाशित हुई थी कि इंफाल में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) के राष्ट्रीय सचिव द्वारा केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री को ज्ञापन भेजा गया था.
इसके माध्यम से केंद्र द्वारा मणिपुर सरकार को मणिपुर में अनुसूचित जनजातियों की सूची से “घुमंतू चिन-कुकी” को हटाने की मांग की गंभीरता से पड़ताल करने का आग्रह किया गया है.
केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने कहा कि इंफाल में रहने वाले रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) के राष्ट्रीय सचिव महेश्वर थौनाओजम, ने चिन कुककी को एसटी सूची से हटाने की मांग की थी.
इस ज्ञापन में इस्तेमाल भाषा को मणिपुर के आदिवासी संगठनों ने खतरनाक बताया है. इन संगठनों का कहना है कि इस तरह की भाषा और मांग हिंसा फैला सकती है.ॉ
11 दिसंबर, 2023 को जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा को ज्ञापन में जनवरी, 2011 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए सुझाव दिया गया है कि “सभी अनुसूचित जनजातियाँ (आदिवासी) भारत की मूल निवासी होंगी.”
फिर वह तर्क देते हैं कि इस फैसले के आलोक में “मणिपुर के ज़ोमिस सहित कुकी इस आधार पर मणिपुर की अनुसूचित जनजाति के रूप में योग्य नहीं हैं कि वे मणिपुर के मूल निवासी नहीं हैं.”
हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि उद्धृत सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारीकी से विश्लेषण से पता चला कि इस मामले का जनजाति की परिभाषा तय करने से कोई लेना-देना नहीं है.
यह महाराष्ट्र में एक आदिवासी भील महिला के खिलाफ अत्याचार के मामले में एक आपराधिक अपील थी. सुप्रीम कोर्ट ने सजा को बरकरार रखा था और इस प्रक्रिया में टिप्पणी की थी कि भारत में वर्तमान एसटी के पूर्वज संभवतः इस भूमि के मूल निवासी थे.
13 दिसंबर को भेजा गया थौनाओजम का ज्ञापन, जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा 26 दिसंबर को मणिपुर सरकार के जनजातीय और पहाड़ी मामलों के विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को भेज दिया गया था.
केंद्रीय मंत्रालय ने कहा कि राज्य सरकार की सिफारिश प्रक्रिया के लिए एसटी की सूची में शामिल करने या संशोधन के लिए राज्य से प्रस्ताव केंद्र सरकार को आना एक अनिवार्य शर्त है.
मूल निवासी और अन्य के बीच अंतर करना
सैकड़ों पृष्ठों के अनुबंध के साथ 17 पेज के ज्ञापन में, हस्ताक्षरकर्ता के रूप में थौनाओजाम ने यह तर्क देने की कोशिश की है कि देश में अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करने के लिए मूल निवासी होना प्रमुख मानदंड होना चाहिए.
इसके अलावा, ज्ञापन में दावा किया गया है कि “ज़ू” जनजाति एक विदेशी देश – म्यांमार के चिन राज्य – से थी, जिसका स्वतंत्रता-पूर्व भारत की जनगणना में कोई उल्लेख नहीं है और इसलिए, मणिपुर की एसटी सूची में नहीं होना चाहिए.
इन कदमों के कुछ हफ़्तों के बाद इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फ़ोरम (आईटीएलएफ) और ज़ोमी काउंसिल स्टीयरिंग कमेटी (ज़ेडसीएससी) की ओर से तीखी प्रतिक्रिया सामने आई थी. दोनों संगठनों ने 10 जनवरी को राज्य में चल रहे जातीय संघर्ष के बीच मणिपुर में कुछ कुकी-ज़ो समुदायों की अनुसूचित जनजाति (एसटी) स्थिति की समीक्षा करने के कदम की कड़ी निंदा की.
आईटीएलएफ ने एक बयान जारी कर मैतेई समुदाय का जिक्र करते हुए कहा, “पहले उन्होंने हमारे जैसा बनने की कोशिश की. अब वे आदिवासी के रूप में हमारी स्थिति को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं.”
ZCSC ने अपनी आपत्तियों के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय को एक ज्ञापन भेजा है.