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आदिवासी राज्य पर TIPRA के साथ नहीं बनी सहमति, TMC त्रिपुरा नगरपालिका चुनाव अकेले ही लड़ेगी

टीआईपीआरए ने इस अप्रैल में 28 सदस्यीय त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद में भारी जीत दर्ज की. टीआईपीआरए ने 18 सीटों पर जीत हासिल की और सीपीएम को बाहर कर दिया जो पहले बहुमत में थी. वहीं बीजेपी ने परिषद के लिए जिन 12 सीटों पर चुनाव लड़ा था उनमें से नौ पर जीत मिली थी.

तृणमूल कांग्रेस ने क्षेत्रीय स्तर पर तिप्राहा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन (TIPRA) के साथ आम सहमति पर पहुंचने में नाकाम रहने के बाद त्रिपुरा में नगरपालिका चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया है.

प्रद्योत किशोर देबबर्मा के नेतृत्व वाले टीआईपीआरए ने आदिवासियों के लिए अलग राज्य पर समर्थन सुनिश्चित करने का लिखित आश्वासन दिए बिना तृणमूल के साथ चुनावी समझौता करने से इनकार कर दिया है.

अगरतला में नगरपालिका चुनाव 25 नवंबर को होने हैं और यह पहला मौका है जब तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार पश्चिम बंगाल के बाहर किसी शहरी स्थानीय निकाय चुनाव में उतरेंगे. ममता बनर्जी की पार्टी सभी 51 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार है.

कुछ वक्त पहले ही एक कड़े मुकाबले में बीजेपी को चुनावी शिकस्त देकर पश्चिम बंगाल की सत्ता पर फिर से काबिज होने वाली तृणमूल कांग्रेस पिछले चार महीनों से बंगाल से बाहर अपने विस्तार के लिए दो छोटे राज्यों- पूर्वोत्तर में त्रिपुरा और पश्चिमी तट पर गोवा की राजनीति में दस्तक देने की कोशिश करती नज़र आ रही है.

गोवा में जहां अगले तीन महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं. वहीं त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव 2023 में होने हैं. त्रिपुरा में शहरी स्थानीय निकाय चुनावों को ‘महत्वपूर्ण’ बताते हुए तृणमूल के वरिष्ठ नेताओं ने दिप्रिंट से कहा कि यह चुनाव त्रिपुरा में पार्टी के लिए ‘लिटमस टेस्ट’ जैसा होगा.

त्रिपुरा राज्य चुनाव आयोग की तरफ से 27 अक्टूबर को जारी एक अधिसूचना के मुताबिक 20 शहरी स्थानीय निकाय- अगरतला नगर निगम के अलावा धर्मनगर, कैलाशहर, कुमारघाट, अंबासा, खोवाई, तेलियामुरा, रानीरबाजार, मोहनपुर, 13 बिशालगढ़, मेलाघर उदयपुर, संतीरबाजार, बेलोनिया नगर परिषदों और पनीसागर, कमालपुर, जिरानिया, सोनमुरा, अमरपुर और सबरूम की नगर पंचायतों के लिए 25 नवंबर को मतदान होगा.

तृणमूल ने अभी तक सिर्फ अगरतला नगर निगम चुनाव के लिए उम्मीदवारों की घोषणा की है. जबकि टीआईपीआरए जिसके साथ तृणमूल ने जुलाई में चुनावी गठबंधन के लिए चर्चा शुरू की थी ने अगरतला नगर निगम चुनावों में अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित पांच सीटों और अंबासा सहित राज्य में अन्य शहरी परिषदों के चुनाव के लिए सात प्रत्याशियों की घोषणा की है.

तृणमूल के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी त्रिपुरा के प्रभारी हैं जबकि सुष्मिता देव जो एक पूर्व कांग्रेस सांसद है और हाल ही में तृणमूल में शामिल हुई हैं पिछले कई हफ्तों से राज्य में डेरा डाले हुए हैं. पार्टी ने राज्य में चुनावी तैयारियों पर नजर रखने के लिए पश्चिम बंगाल के महासचिव कुणाल घोष, मंत्रियों ब्रत्य बसु और मोलॉय घटक जैसे वरिष्ठ नेताओं को त्रिपुरा भेजा है.

सुष्मिता देव ने दिप्रिंट से कहा, “हम यहां पूरी ताकत झोंक रहे हैं. त्रिपुरा सांप्रदायिक और राजनीतिक हिंसा के दौर से जूझ रहा है. यहां कानून व्यवस्था नहीं है. यह चुनाव हमारे लिए यहां हमारे अगले राजनीतिक कदम के लिहाज से बहुत अहम है.”  

साथ ही उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि अगरतला नगरपालिका चुनावों के लिए नामांकन दाखिल करते समय पार्टी उम्मीदवारों को विरोध का सामना करना पड़ा.

इस बीच टीआईपीआरए के अध्यक्ष देबबर्मा ने स्पष्ट किया कि तृणमूल और उनकी पार्टी के बीच अभी तक गठबंधन नहीं हो पाने के बावजूद भी दोनों दलों में ‘कोई दुश्मनी’ नहीं है.

देबबर्मा ने कहा, “दीदी (ममता बनर्जी) के लिए हमारे मन में बहुत सम्मान है. हमारी लड़ाई बीजेपी के खिलाफ और अपने मूल निवासियों के अधिकारों के लिए है. तृणमूल और टीआईपीआरए दो अलग-अलग राजनीतिक दल हैं जो अलग-अलग विचारधारा रखते हैं. हम अलग राज्य के लिए लड़ रहे हैं और समझते हैं कि किसी भी पार्टी के लिए इस पर साथ आना मुश्किल है.”

उन्होंने कहा, “हमारी एक-दूसरे से कोई दुश्मनी नहीं है लेकिन तृणमूल को अभी यहां अपना जनाधार बढ़ाना होगा. वहीं हमारा समर्थन आधार पूरी तरह अलग है और यह मुख्यत: आदिवासी आबादी के बीच है. यह पहला मौका है जब देश में कोई आदिवासी पार्टी शहरी स्थानीय निकाय चुनाव लड़ रही है. इसलिए अब हम अकेले चुनाव लड़ रहे हैं. हालांकि हम जानते हैं कि तृणमूल ने एसटी के लिए सुरक्षित पांच सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं जहां हम भी चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन हम एक-दूसरे के खिलाफ कोई अभियान नहीं चलाने जा रहे.”

टीआईपीआरए ने इस अप्रैल में 28 सदस्यीय त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद में भारी जीत दर्ज की. टीआईपीआरए ने 18 सीटों पर जीत हासिल की और सीपीएम को बाहर कर दिया जो पहले बहुमत में थी. वहीं बीजेपी ने परिषद के लिए जिन 12 सीटों पर चुनाव लड़ा था उनमें से नौ पर जीत मिली थी.

बीजेपी से नाराज है जनता

आदिवासी निकाय चुनाव में टीआईपीआरए की जीत के दो महीने बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक ने कोलकाता में देबबर्मा से मुलाकात की थी और राजनीतिक गठजोड़ पर चर्चा शुरू की थी. देबबर्मा का पूरा जोर इस पर था कि तृणमूल कांग्रेस टीआईपीआरए की अलग राज्य की मांग का संसद में समर्थन करे और इसके लिए लिखित आश्वासन दे.

तृणमूल के एक वरिष्ठ नेता ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया कि तबसे ही गठबंधन की बातचीत आगे नहीं बढ़ पाई.

सुष्मिता देव ने कहा, “हमने त्रिपुरा में अकेले लड़ने का फैसला किया है. लोग राज्य में बीजेपी के मुख्यमंत्री बिप्लब देब से निराशा हैं और उनका मोहभंग हो चका है. हमें बहुत सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है क्योंकि कांग्रेस, माकपा और बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता हमसे जुड़ रहे हैं. कोई भी इस बात को देख सकता है कि हमने अगरतला नगर निगम की सभी सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है.”

उन्होंने आगे कहा, “उम्मीदवार बीजेपी के आतंक के खिलाफ खड़े है. हम टीआईपीआरए के खिलाफ नहीं हैं. वे अलग राज्य के लिए अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं और हम भाजपा को हटाने के लिए लड़ रहे हैं. त्रिपुरा में अभी तक किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन की कोई बात नहीं हुई है.”

तृणमूल और टीआईपीआरए दोनों ने त्रिपुरा में बीजेपी की अगुआई में हिंसा जारी होने की शिकायत की है और सत्तारूढ़ दल पर उन्हें नामांकन दाखिल करने से रोकने की कोशिश करने का आरोप भी लगाया है.

सुष्मिता देव ने आरोप लगाया कि बीजेपी अंबासा सहित अन्य शहरी निकाय चुनावों (अगरतला के अलावा) में भी तृणमूल प्रत्याशियों को पर्चा दाखिल करने से रोक रही है.

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