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नहीं मिला राशन, न मिल रही पेंशन, परहिया आदिम जनजाति का बुज़ुर्ग दंपति भुखमरी के कगार पर

राइट टू फ़ुड कैंपेन के कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, यह घटना राज्य में सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के कार्यान्वयन में खामियों को उजागर करती है. वो भी उस समय जब 2017 से राज्य में भुखमरी से लगभग 30 मौतें हुई हैं.

झारखंड के गढ़वा ज़िले में विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों में से एक परहिया जनजाति के एक बुज़ुर्ग और विकलांग दंपति सरकार से मिलने वाले राशन और पेंशन से वंचित होने के बाद भुखमरी की कगार पर हैं.

राइट टू फ़ुड कैंपेन के कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, यह घटना राज्य में सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के कार्यान्वयन में खामियों को उजागर करती है. वो भी उस समय जब 2017 से राज्य में भुखमरी से लगभग 30 मौतें हुई हैं. 

73 साल के हल्कन परहिया नेत्रहीन हैं, जबकि 69 साल की उनकी पत्नी जगिया के बाएं हाथ में पोलियो है. यह दोनों झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 260 किलोमीटर दूर गढ़वा ज़िले के रमना ब्लॉक के मंदोहर-करुवा गाँव में रहते हैं. जिस घर में यह दोनों रहते हैं, वो लगभग दो दशक पहले इंदिरा आवास योजना के इन्हें मिला था. अब इस मकान की हालत जर्जर है. 

राइट टू फ़ुड कैंपेन के कार्यकर्ता और कोरवा पीवीटीजी समुदाय के माणिकचंद कोरवा ने द टेलिग्राफ़ को बताया, “उनकी दयनीय स्थिति के बारे में पता चलने के बाद हमने रमना ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफ़िसर, ललित प्रसाद सिंह को इसके बारे में बताया था. हल्कन और जगिया के बच्चे नहीं हैं, वो दोनों अकेले रहते हैं. उन्हें सितंबर से राशन नहीं मिल रहा है. इसके अलावा उन्हें कई सालों से अभी तक न तो 600 रुपए की मासिक आदिम जनजाति पेंशन मिली है, और न ही राज्य सामाजिक सुरक्षा वृद्धावस्था पेंशन (600 रुपए हर महीने). जब हम उनसे मिले तो उनके घर में अनाज का एक भी दाना नहीं था.” 

ग्रामीणों का दावा है कि बुजुर्ग दंपति भीख मांगकर अपना पेट भरने को मजबूर हैं.

माणिकचंद कोरवा कहते हैं, “उनके पास ज़िंदा रहने के लिए अपने गाँव में खाने की भीख माँगने के अलावा कोई चारा नहीं था. जब हमने विरोध दर्ज कराया, तो बीडीओ ने सोमवार सुबह करीब 11 बजे दंपति को अनाज की आपूर्ति करने की व्यवस्था की.” 

परहिया झारखंड के खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग की डाकिया योजना के तहत कवर किए गए आठ पीवीटीजी समुदायों में से एक है. इस योजना के तहत उन्हें उनके घर पर हर महीने 35 किलो चावल मिलना चाहिए. 

इसके अलावा वो 3 रुपये प्रति किलो चावल और 2 रुपये प्रति किलो गेहूं की रियायती कीमत पर 35 किलो चावल और गेहूं प्राप्त करने के हकदार भी हैं.

रमना के बीडीओ का कहना हैै  कि जैसे ही उन्हें बुज़ुर्ग दंपति के हालात के बारे में पता चला, तो उन्होंने राशन की आपूर्ति की व्यवस्था की. अब वो जल्द ही दंपति को पिछले कुछ महीनों से लंबित राशन देने कीस कोशिशि करेंगे. बीडीओ का यह भी कहना है कि दंपति के बैंक खातों में कुछ तकनीकी वजहों से उन्हें राज्य पेंशन योजना के तहत कवर नहीं किया गया है. अब ज़रूरी दस्तावेज़ ले लिए गए हैं,और जल्द ही उन्हें उनकी पेंशन भी मिल जाएगी.

Indigenous Rights Advocacy Centre ने हाल ही में पिछले तीन महीनों में गढ़वा जिले में राशन की आपूर्ति न होने से 8,000 आदिवासियों की कथित तौर पर भुखमरी की रिपोर्ट पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को शिकायत की थी. 

(Image Credit: The Telegraph)

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