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त्रिपुरा का दारलोंग समुदाय ST लिस्ट में होगा शामिल , संसद से बिल पास हुआ

इस विधेयक के तहत अनुसूचित जनजाति संविधान आदेश 1950 की व्‍यवस्‍थाओं में संशोधन कर त्रिपुरा की अनुसूचित जनजातियों की सूची में विशेष समुदाय को शामिल करने का प्रावधान किया गया है. इस संशोधन के बाद त्रिपुरा में कूकी जनजाति की उपजाति दारलोंग को भी अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल किया जा रहा है.

राज्‍यसभा ने 6 अप्रैल, बुधवार को अनुसूचित जनजाति आदेश संविधान संशोधन विधेयक 2022 को मंजूरी दे दी. इसके साथ ही यह विधेयक संसद से पारित हो गया. लोकसभा ने पहले ही इसे मंजूरी दे दी थी.

इस विधेयक के तहत अनुसूचित जनजाति संविधान आदेश 1950 की व्‍यवस्‍थाओं में संशोधन कर त्रिपुरा की अनुसूचित जनजातियों की सूची में विशेष समुदाय को शामिल करने का प्रावधान किया गया है. इस संशोधन के बाद त्रिपुरा में कूकी जनजाति की उपजाति दारलोंग को भी अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल किया जा रहा है.

राज्‍यसभा में विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए अनुसूचित जनजाति मामलों की राज्‍यमंत्री रेणुका सिंह सरूता ने कहा कि त्रिपुरा में मुख्‍य रूप से 19 जनजातियां हैं. 

दारलोंग समुदाय की कुल आबादी 11000 के क़रीब बताई जाती है.

इस बिल को 25 मार्च 2022 को लोकसभा ने पास कर दिया था. हांलाकि दारलोंग समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने की प्रक्रिया को पूरा करने में क़रीब 8 साल से भी अधिक का समय लग गया है.

25 अगस्त 2014 को ही अनुसूचित जनजाति आयोग ने त्रिपुरा के इस समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने का प्रस्ताव सरकार को भेज दिया था. उसके दो साल बाद यानि मई 2016 में मोदी सरकार के मंत्रिमंडल ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी.

इसी साल यानि दिसंबर 2016 में इस प्रस्ताव को संशोधन बिल के रूप में लोक सभा में पेश कर दिया गया था. लेकिन इस बिल पर चर्चा ही नहीं शुरू की गई थी. 

संविधान के अनुच्छेद 342 में यह प्रावधान है कि सरकार संसद से कानून बना कर किसी आदिवासी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल कर सकती है. 

इस बिल पर छत्तीसगढ़ से कांग्रेस पार्टी की राज्य सभा सांसद फुलो देवी नेताम ने कहा कि देश की कुल आदिवासी आबादी में से 34 प्रतिशत भूमिहीन है और 86 प्रतिशत की आमदनी 50 हज़ार रूपये प्रति वर्ष से भी कम है. 

उन्होंने कहा कि संविधान में अनुसूचित जनजातियों को भेदभाव से बचाने के लिए सुरक्षा का प्रवाधान किया गया है. 

लेकिन अब आदिवासियों के सामने नई चुनौती पैदा हो गई है. उन्होंने कहा कि न्याय पालिका जैसे क्षेत्रों में पहले से ही आदिवासियों के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं है.

अब सरकार सरकारी कंपनियों को बेच रही है. सरकारी कंपनी अगर निजी क्षेत्र में चली जाती हैं तो वहां भी आरक्षण समाप्त हो जाएगा. 

उन्होने कहा कि आदिवासियों के लिए बजट आवंटन की घोषणा तो की जाती है, लेकिन असल में आदिवासी विकास पर पैसा बेहद कम ख़र्च होता है. 

उन्होंने कहा कि अगर आदिवासियों के लिए जो बजट आवंटित किया जाता है उसका वास्तविक रूप में सिर्फ 10 प्रतिशत ही आदिवासी विकास पर ख़र्च होता है. 

उन्होंने कहा कई राज्यों से सरकार के पास अलग अलग आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजाति की लिस्ट में शामिल करने के प्रस्ताव भेजे गए हैं. लेकिन सरकार इन प्रस्तावों पर कोई कदम नहीं उठा रही है.

उन्होंने छ्त्तीसगढ़ के संदर्भ में कहा कि वहां कि भारिया, भूमिया, धनवार, नगेसिया और सुवर समुदायों को अनुसूचित जनजाति की लिस्ट में शामिल करने का प्रस्ताव केन्द्र को भेजा था. सरकार ने इस छत्तीसगढ़ के प्रस्ताव को अप्रूव भी कर दिया था.

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