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यहाँ के आयुर्वेद अस्पताल में होता देसी मुर्ग़ा पालन, कमाल का है फ़ार्मूला

अस्पताल बनने के बाद नाला के विधायक रवींद्रनाथ महतो ने वर्ष 2008 में इसका उद्घाटन किया. एक साल तक अस्पताल किसी तरह चला. उसके बाद से इस अस्पताल में कोई कर्मचारी या डॉक्टर नहीं आया है. प्रशासन ने भी अभी तक इसकी सुध नहीं ली है.

झारखंड के जामताड़ा ज़िले के कुंडहित ब्लॉक के गाँव पुतुलबोना में कई साल पहले एक आयुर्वेदिक अस्पताल बनाया गया था. इस अस्पताल में आजकल मुर्ग़ी पालन का काम चल रहा है.

क्योंकि बरसों से यहाँ ना तो कोई आयुर्वेद का डॉक्टर आया है और ना ही कोई और कर्मचारी ही यहाँ पहुँचा है. 

इस अवस्था में गाँव की कुछ महिलाओं ने इस बेकार पड़े भवन का कुछ सदुपयोग कर लिया है. 

राज्य सरकार ने आदिवासियों को स्थानीय स्तर पर चिकित्सा उपलब्ध कराने को आयुर्वेदिक अस्पताल का निर्माण 2008 में कराया था.

लेकिन अब इस भवन की खिड़की, दरवाजा, पानी की टंकी, बिजली के तार समेत सारे समान गायब हो चुके हैं. खाली पड़े भवन में ग्रामीण मुर्गी पालन कर रहे.

अस्पताल बनने के बाद नाला के विधायक रवींद्रनाथ महतो ने वर्ष 2008 में इसका उद्घाटन किया. एक साल तक अस्पताल किसी तरह चला. उसके बाद से इस अस्पताल में कोई कर्मचारी या डॉक्टर नहीं आया है. प्रशासन ने भी अभी तक इसकी सुध नहीं ली है. 

ग्रामीणों का कहना है कि वर्षो से डॉक्टर व कर्मचारी के अभाव में अस्पताल बंद पड़ा है. सरकार ने जिस उद्देश्य से आयुर्वेदिक अस्पताल का निर्माण किया गया था उसका लाभ साल भर ही मिल पाया.

लोगों को अस्पताल के अभाव में छोटी-छोटी बीमारी होने पर 10 किलोमीटर दूर कुंडहित सीएचसी जाना पड़ता है. या फिर 20 किलोमीटर दूर बंगाल के राजनगर तथा नाकड़ाकोदा का सफर तय करना पड़ता है.

जब यह भवन सालों तक ख़ाली पड़ा रहा तो गांव की महिला स्वयं सहायता समिति ने इस भवन का इस्तेमाल शुरू कर दिया. ये महिलाएँ के दो बंद पड़े आयुर्वेदिक अस्पताल में मुर्गी पालन का काम कर रही है.

इस दौरान गांव के सिदो-कान्हू महिला समूह व सरा सरना महिला समूह 200 मुर्गी वहां पाल रही है. समिति की महिलाओं ने बताया कि अस्पताल बंद हो गया और भवन पड़ा हुआ था.

इसलिए इसका उपयोग कर रहे हैं. जब खाली करने को कहा जाएगा तो खाली कर देंगे.

आदिवासी इलाक़ों में स्वास्थ्य सेवाओं की यही कहानी है. अक्सर देखा जाता है कि किसी तरह से प्रशासन इन इलाक़ों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के भवन तो बना देता है. लेकिन उसके लिए ज़रूरी स्टाफ़, दवाएँ और दूसरी सुविधाओं का अभाव ही रहता है. 

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