HomeAdivasi Dailyस्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया या पॉवर ग्रिड कॉरपोरेशन के बोर्ड में एक...

स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया या पॉवर ग्रिड कॉरपोरेशन के बोर्ड में एक भी दलित और आदिवासी क्यों नहीं है – संसदीय कमेटी

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सामाजिक और आर्थिक बराबरी की जो भावना निहित है उसका सम्मान किया जाना चाहिए. इसलिए कमेटी सरकार से यह उम्मीद करती है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के बोर्ड और दूसरे पदों पर आदिवासी और दलितों को समुचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए.

सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में दलित या आदिवासी समुदायों के अधिकारियों को सीनियर पॉज़िशन तक नहीं पहुँचने दिया जाता है. यह बात संसदीय कमेटी की रिपोर्ट में सामने आई है. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति मामलों की इस कमेटी ने सोमवार को यह रिपोर्ट संसद में टेबल की है. 

अपनी रिपोर्ट में संसदीय कमेटी ने विशेष रूप से पावर ग्रिड कॉरपोरेशन का हवाला देते हुए कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में आरक्षण के नियमों और भावना का पालन नहीं किया जा रहा है.

कमेटी ने यह महसूस किया है कि आदिवासी और दलित अधिकारियों को बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स जैसे पदों पर मौक़ा नहीं दिया जाता है.

बीजेपी के सांसद क्रीम सोलंकी ने इस रिपोर्ट को पेश किया है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सामाजिक और आर्थिक बराबरी की जो भावना निहित है उसका सम्मान किया जाना चाहिए.

इसलिए कमेटी सरकार से यह उम्मीद करती है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के बोर्ड और दूसरे पदों पर आदिवासी और दलितों को समुचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए. 

इस रिपोर्ट में कमेटी ने बताया है कि उसके सदस्य यह भी समझना और जानना चाहते थे उन अधिकारियों या व्यक्तियों के नाम बताएँ जाएँ जो सीनियर पोजिशन के लिए इंटरव्यू में उम्मीदवार थे.

इस क्रम में कमेटी ने यह भी पाया कि स्टेट बैंक में मेधावी और काबिल अधिकारियों पर मनगढ़ंत आरोप लगा कर उन्हें सीनियर पॉज़िशन के लिए अयोग्य करार दे दिया जाता है. 

कमेटी ने यह सवाल भी उठाया कि स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के बोर्ड में एक भी दलित या आदिवासी प्रतिनिधि क्यों नहीं है. 

कमेटी कि रिपोर्ट में नोट किया गया है कि पॉवर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स में एक भी दलित या आदिवासी समुदाय से नहीं है.

कमेटी ने कहा है कि यह बेहद चिंता की बात है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में सीनियर पदों पर आदिवासी या दलित अधिकारी नहीं है.

कमेटी ने इस बारे में जो सिफ़ारिश सरकार को दी हैं, उन पर सरकार की प्रतिक्रिया से कमेटी बहुत खुश नहीं है. कमेटी ने कहा है कि सरकार इस मामले में गंभीर नहीं है.

कमेटी ने यह सुझाव दिया था कि सार्वजनिक कंपनी विभाग केंद्रीय कैबिनेट को एक प्रस्ताव दे जिसमें वरिष्ठ पदों पर लोगों की नियुक्ति की नीति में बदलाव के सुझाव हों.

कमेटी चाहती है कि सरकार इन पदों पर आदिवासी और दलितों को प्रतिनिधित्व देने के बारे में नीतिगत बदलाव करे.  

संसदीय कमेटी अलग अलग मंत्रालयों से जुड़ी होती हैं और मंत्रालय के काम काज की समीक्षा करती हैं. इन कमेटियों का काम सरकार की अलग अलग नीतियों, योजनाओं और फ़ैसलों के बारे में तथ्यों का पता लगाना होता है. उसके बाद कमेटी सरकार को सुझाव देती है.

सरकार क़ानूनी तौर पर इन सुझावों को मानने के लिए बाध्य नहीं है. लेकिन सरकार से यह उम्मीद की जाती है कि वह कमेटी की सिफ़ारिशों पर अमल करे.

ख़ासतौर से आदिवासी और दलित जैसे वंचित तबकों से जुड़ी महत्वपूर्ण सिफ़ारिशों को नज़रअंदाज़ करना निराशाजनक है.

क्योंकि जब सार्वजनिक कंपनियों की निर्णायक पदों पर आदिवासी और दलित समुदायों के लोग नहीं होंगे तो ज़ाहिर है उन कंपनियों के सरोकारों में शायद वंचित तबकों को प्राथमिकता देने की नीति ना बनें.  

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments