नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National green tribunal) ने दक्षिण गोवा के बल्ली क्यूपेम के आदिवासियों के एक समूह को भारी कीमत चुकाने की चेतावनी दी है.
कुछ समय पहले यहां के आदिवासियों ने यह आरोप लगाया था की बल्ली क्षेत्र में स्थित एक निजी जंगल के पेड़ो को अवैध रूप से कटा जा रहा है.
जिसके बाद पिछले साल सितंबर में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने मामले की जांच के लिए एक संयुक्त समिति का गठन किया था.
जिनके निरीक्षण के बाद एनजीटी ये दावा कर रही है की बल्ली क्यूपेम में आदिवासियों द्वारा लगाए गए आरोप झूठे हैं.
दरअसल, संयुक्त समिति ने निरीक्षण के दौरान आदिवासियों को वो ज़मीन दिखाने का आग्रह किया, जिस जमीन को वह निजी वन की सीमा के अंदर होने का दावा कर रहे थे.
लेकिन निरीक्षण के बाद एनजीटी की संयुक्त समिति की रिपोर्ट में यह दावा किया जा रहा है की आदिवासियों द्वारा बताई गई भूमि निजी वन की सीमा से अलग है.
इसके अलावा एनजीटी अधिकारी ने कहा, “आदिवासियों को पिछली तारीख पर हमने चेतावनी दी थी कि अगर समिति ने लगाए गए आरोपों को गलत पाया तो आदिवासियों को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.”
क्या है पूरा मामला
यह सभी आरोप लगाने वाले आदिवासी दक्षिण गोवा के क्यूपेम तालुका में स्थित अदनेम-बल्ली गांव के निवासी है और वेलिप्स नामक आदिवासी समुदाय से आते हैं.
आदिवासियों द्वारा ये आरोप लगाया गया है कि एक पार्टी, सर बायोटेक इंडिया (Sir Biotech India) ने बल्ली क्षेत्र में जमीन खरीदी थी और अधिकारियों की अनुमति के बिना पेड़ों की कटाई कर रहे थे. सिर्फ इतना ही नहीं जेसीबी जैसी भारी मशीनरी की मदद से वह भूमि पर काम कर रहे थे.
उन्होंने ये आरोप भी लगाया है की वह 8 मीटर चौड़े रास्ते बना रहे हैं और रास्ते बनाने के लिए खड़ी ढलानों को समतल कर रहे हैं.
इसके अलावा बायोटेक इंडिया ने बिना किसी अनुमति के रास्तों पर तारकोल डालने जैसे सिविल कार्य करने के लिए पहाड़ियों और ढलानों को काटकर मिट्टी की खुदाई भी की थी और इन सब काम के लिए ग्राम पंचायत से कोई वन मंजूरी नहीं ली गई थी.
इस मामले में पहले आदिवासियों द्वारा दी गई तस्वीरों को देखते हुए एनजीटी ने आदिवासियों के आरोप को स्वीकार किया था. इन तस्वीरों में साफ तौर पर देखा जा सकता था की जंगल के पेड़ों को काटा जा रहा है.
लेकिन सर बायोटेक इंडिया (आदिवासियों द्वारा आरोप लगाई गई संगठन) ने बाद में इन आरोपों को खारिज कर दिया था.
जिसके बाद मामले की गंभीरता को देखते हुए एनजीटी ने ये फैसला किया की वे इस मामले की निरीक्षण के लिए एक संयुक्त समिति का गठन करेंगे.
समिति की रिपोर्ट में अब दावा किया जा रहा है की आदिवासियों द्वारा लगाए गए आरोप झूठे हैं.
इसी रिपोर्ट के सहारे एनजीटी ने आदिवासियों को भारी रकम देने की चेतावनी दी है. हालांकि अभी इस मामले पर प्रतिक्रिया देने के लिए आदिवासियों के वकील ने और समय मांगा है.