केरल सरकार ने राज्य के दो सुदूरवर्ती आदिवासी गाँवों में सामुदाय आधारित आपदा प्रबंधन योजना लागू की है.
इस प्रयास का उद्देश्य है कि स्थानीय आदिवासी समुदाय खुद आपदा के समय बेहतर तैयारी कर सकें और प्राकृतिक संकट से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके.
इस पहल की शुरुआत इडुक्की ज़िले के स्वामियारालकुडी और पथानमथिट्टा ज़िले की कुरुम्बनमूझी बस्ती से की गई है.
ये दोनों बस्तियां पश्चिमी घाट के अंदर गहरे जंगलों में स्थित हैं. यहां हर साल भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएँ सामने आती हैं.
स्वामियारालकुडी पेरियार टाइगर रिज़र्व के पास स्थित है और यहाँ सालाना लगभग 3500 मिलीमीटर तक वर्षा होती है.
वहीं कुरुम्बनमूझी घने जंगल और पहाड़ी इलाके से घिरा क्षेत्र है. इस क्षेत्र में हर साल करीब 3000 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश दर्ज की जाती है.
बारिश के मौसम में ये गाँव अक्सर मुख्य सड़क के संपर्क से कट जाते हैं. स्थानीय घरों की संरचना भी कमज़ोर होती है. इस वजह से आपदा के दौरान जोखिम और बढ़ जाता है.
केरल राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (Kerala State Disaster Management Authority) के मुताबिक इन गाँवों में स्थानीय अनुभव और पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक भू-स्थानिक तकनीक के साथ जोड़ते हुए योजना तैयार की गई है.
इसमें बहु-आपदा मानचित्र, निकासी मार्ग, स्थानीय संसाधनों की सूची और महत्वपूर्ण ढाँचों की जानकारी शामिल है.
केरल राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य जॉय एलामोन ने बताया कि यह योजना भविष्य में राज्य के बाकी 6000 आदिवासी बस्तियों में भी लागू की जा सकती है. फिलहाल इन दो गाँवों को मॉडल के तौर पर चुना गया है.
राज्य परियोजना अधिकारी मिधिला मल्लिका ने कहा कि इन योजनाओं से स्थानीय निकायों को आपदा प्रबंधन से जुड़ी परियोजनाओं के लिए राज्य आपदा न्यूनीकरण कोष (State Disaster Mitigation Fund) से वित्तीय सहायता लेने में मदद मिलेगी.
इन योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर लागू करने के लिए गाँवों में हेमलेट संसाधन समूह (Hamlet Resource Groups) बनाए जा रहे हैं.
ये समूह गाँव के लोगों को आपदा के समय निर्णय लेने, मदद पहुँचाने और समन्वय बनाने के लिए प्रशिक्षित करेंगे.
इस प्रक्रिया में वन विभाग, जनजातीय कल्याण विभाग, पंचायत प्रतिनिधि और ज़िला प्रशासन को भी शामिल किया गया है.
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह पहल सिर्फ आपदा के खतरे को कम करने तक सीमित नहीं है बल्कि यह आदिवासी समुदायों को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कड़ी हो सकती है.