मध्य प्रदेश के दमोह ज़िले में सूरजपुरा नाम का एक आदिवासी गाँव है. यह गाँव बेहद ख़ास है, और इस गाँव की ख़ास बात ये है कि इस गाँव में अभी तक बिजली नहीं पहुँची है.
जी नहीं यह मत समझिएगा कि यहाँ के लोग स्टोन ऐज में रहने वाले आदिवासी हैं. इन आदिवासियों के पास मोबाइल फ़ोन भी हैं. बस इस गाँव के लोगों को अपने मोबाईल चार्ज करने के लिए क़रीब 10 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है.
इस गाँव के लोगों को बिजली ना होने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है ? क्या इस गाँव के लोग बिजली के लिए कभी आवाज़ नहीं उठाते हैं ? इस ज़िले में प्रशासन भी होगा और जनप्रतिनिधि तो होते होंगे ?
जी हाँ इस गाँव के लोगों को बिजली ना होने से फ़र्क़ पड़ता है. ये आदिवासी जानते हैं कि बिजली से उनकी ज़िंदगी में भरपूर रोशनी ना सही, उम्मीद की एक किरण तो ज़रूर ही आ सकती है.
ये आदिवासी लगातार अपने गाँव में बिजली लगाए जाने की माँग भी करते रहे हैं. जी नहीं ऐसा भी नहीं है कि यह गाँव प्रशासन के रिकॉर्ड में मौजूद ही नहीं है. जहां तक जन प्रतिनिधियों का सवाल है तो लगभग हर चुनाव में इस गाँव तक बिजली पहुँचाने की बात कही जाती रही है.
प्रशासन ने भी कोशिश की है, जानना तो ज़रूर चाहेंगे आप कि आख़िर कैसी कोशिश थी प्रशासन की. तो प्रशासन ने जो प्रयास किया उसी का नतीजा है कि गाँव के कई घरों में मीटर लगे हैं..जी हाँ बिजली के मीटर. वो बात दीगर है कि अभी बिजली नहीं आई है.
दमाहो के हाता ब्लॉक में बसे इस गाँव में कम से कम 200 आदिवासी परिवार रहते हैं. इस गाँव की कुल आबादी का 92 प्रतिशत आदिवासियों का है.
यहाँ की कुल साक्षरता दर है 45 प्रतिशत और महिलाओं में साक्षरता दर बताई जाती है 19.3 प्रतिशत. ये दस साल पहले हुई 2011 की जनगणना के आँकड़े हैं.
वैसे ऐसा नहीं है कि इस गाँव में प्रशासन ने कोई और सुविधा नहीं दी है. गाँव में आंगनबाड़ी भी है और एक प्राइमरी स्कूल भी है. गाँव में इन आदिवासियों के जन धन खाते हैं.
बिजली भी आते आते आ ही जाएगी. जब इतना कुछ आ गया तो बिजली भी आ ही जाएगी. वैसे प्रशासन कहता है कि दरअसल यह गाँव जंगल के एरिया में है और वन विभाग के साथ सहमति नहीं बन पाने के कारण अभी तक इस गाँव में बिजली नहीं पहुँच पाई है.
वैसे मिनिमम गवर्मेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस (minimum government, maximum governance) की कुछ बातें हो रही थीं.
मध्य प्रदेश में ऐसा भी नहीं है कि सरकारें बनती बिगड़ती रही हैं, बीच में बुलबुले के तरह कमलनाथ ज़रूर प्रकट हुए थे, वरना तो राज्य में लगातार बीजेपी का शासन है और शिवराज चौहान अजातशत्रु मुख्यमंत्री रहे हैं. फिर भी दो विभागों में एक मामूली सहमति नहीं बन पाई है.
अगर आदिवासी इलाक़े में कोई व्यवसायिक परियोजना सरकार लाना चाहे जिसमें उद्योगपति या व्यापारी शामिल हों, तो भी क्या यही नज़रिया होता है. तब शायद सिद्धांत बदल जाते हैं.
बहरहाल देश की राजधानी दिल्ली की सड़कों पर रातों में जब मध्य प्रदेश सरकार के जगमग जगमग साइनबोर्ड देखो तो सूरजपुरा के बारे में सोचने मत बैठ जाना है. हमें एक भारत, श्रेष्ठ भारत में यक़ीन रखना है. हमें सबसे साथ सबके विकास में विश्वास रखना है.
क्यों ? क्योंकि हम भारत के लोग हैं.