छत्तीसगढ़ में सरगुजा से पैदल रायपुर पहुँचे आदिवासी अपने अपने गाँव लौटने को तैयार हो गए हैं. क़रीब 10 दिन पैदल चल कर 30 गाँवों के आदिवासी राज्य की राजधानी पहुँचे थे. 13 अक्तूबर को ये आदिवासी राज्य के हसदेव जंगल में कोयला खादान परियोजना का विरोध करने के लिए रायपुर पहुँचे हैं.
इन आदिवासियों ने रायपुर में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राज्यपाल अनुसुइया उइके से मुलाक़ात की. आदिवासियों ने मुख्यमंत्री और राज्यपाल दोनों को ही अपनी माँग से जुड़ा ज्ञापन सौंपा है.
इन आदिवासियों ने बताया कि वो 10 दिन पैदल चल कर रायपुर इसलिए पहुँचे हैं क्योंकि उनकी ज़मीन का ग़ैर क़ानून अधिग्रहण किया जा रहा है. इनका कहना है कि हसदेव नदी और जंगल की जैव विविधता और आदिवासियों की जीविका इस परियोजना से प्रभावित होगी.
आदिवासियों का यह भी आरोप है कि देश के बड़े औद्योगिक घराने को फ़ायदा पहुँचाने के लिए इस परियोजना से जुड़ी अहम प्रक्रिया में भी गड़बड़ी की गई है. उनके अनुसार केंद्र से पर्यावरण संबंधी मंज़ूरी में भी गड़बड़ी है.
इन आदिवासियों का सबसे बड़ा आरोप है कि इस इलाक़े की ग्राम सभाओं ने इस परियोजना की मंज़ूरी नहीं दी है. लेकिन अधिकारियों और कंपनी ने मिलीभगत से ग्राम सभाओं की मंज़ूरी के फ़र्ज़ी दस्तावेज़ तैयार कर लिए हैं.
आदिवासियों से मिलने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि आदिवासियों के आरोपों की जाँच की जाएगी. उन्होंने यह भी बताया कि लेमरू एलिफ़ेंट रिज़र्व का क्षेत्र 1995 वर्ग किलोमीटर से कम नहीं किया जाएगा.
भूपेश बघेल ने दावा किया है कि उनकी सरकार आदिवासियों के साथ खड़ी है और किसी भी तरह से आदिवासी से अन्याय नहीं होने दिया जाएगा.
रायपुर पहुँचे आदिवासियों के नेताओं ने कहा है कि राज्यपाल से भी उन्हें आश्वासन मिला है. राज्यपाल ने कहा है कि वो आदिवासियों की माँग को केन्द्र और राज्य सरकारों के सामने रखेंगीं.
इन आदिवासियों का कहना था कि सरकार की तरफ़ से आश्वासन दिया गया है कि उनके आरोपों की जाँच की जाएगी. इसलिए फ़िलहाल आदिवासी अपने गाँवों को लौट रहे हैं.