आचार्य एनजी रंगा कृषि विश्वविद्यालय अगले पांच से छह सालों में राज्य के आदिवासी किसानों को जैविक खेती की ओर ले जाने की योजना बना रहा है. इसने आदिवासी किसानों की उपज के लिए बेहतर मूल्य प्रदान करने के लिए बड़े पैमाने पर जैविक खेती, विपणन और प्रमाणन को अपनाने की योजना बनाई है.
इस दिशा में विश्वविद्यालय, चिंतापल्ले अनुसंधान केंद्र के साथ समन्वय में उत्तर आंध्र प्रदेश के प्रत्येक मंडल में एक दो वर्षों में आदर्श जैविक खेती गांवों की स्थापना करेगा.
विश्वविद्यालय ने एक साल पहले विशाखा एजेंसी क्षेत्र के चिंतापल्ले में क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र में जैविक खेती में उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किया था. केंद्र के वैज्ञानिकों ने पहले ही खेत की फसलों, सब्जियों और फूलों की खेती में जैविक खेती शुरू कर दी है.
जैविक खेती परियोजना के समन्वयक और वैज्ञानिक सी वी रमा लक्ष्मी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि आंध्र प्रदेश में आदिवासी क्षेत्रों में 75 फीसदी से अधिक किसान खेती के जैविक तरीके का पालन कर रहे हैं. लेकिन उन्हें उनकी उपज का बेहतर दाम नहीं मिल रहा है.
कुलपति अदाला विष्णुवर्धन रेड्डी ने कहा, “अगर हम आदिवासी किसानों को प्रमाणीकरण और बेहतर जैविक खेती की प्रक्रिया प्रदान कर सकते हैं, तो उन्हें उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिलेगा. हमने कृषि विश्वविद्यालय के सक्रिय समर्थन से गुणवत्तापूर्ण उपज, मिट्टी और पानी के परीक्षण के लिए चिंतापल्ले में एक रेफरल प्रयोगशाला स्थापित की है.”
श्रीकाकुलम, विजयनगरम और विशाखापत्तनम जिलों सहित उत्तरी तटीय आंध्र के 22 आदिवासी मंडलों में सात से आठ लाख से अधिक आदिवासी किसान पांच लाख हेक्टेयर से अधिक की सीमा में बागवानी और कृषि फसलों की खेती कर रहे हैं. कृषि विश्वविद्यालय के निर्देश पर विभिन्न अनुसंधान केन्द्रों द्वारा 33 विभिन्न फसलों में जैविक खेती अपनायी जा रही है.
वैज्ञानिकों ने कहा कि उत्तरी आंध्र प्रदेश के जनजातीय मंडल अगले पांच से छह वर्षों में बड़े पैमाने पर जैविक खेती को अपनाएंगे.