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केरल: कामचलाऊ शेडों में रहने को मजबूर आदिवासी, आवास योजना के फ़ंड का इंतज़ार

मज़े की बात यह है कि जिन आदिवासियों ने ठेकेदारों को काम सौंपा, उन्हें पूरा पैसा एक साथ मिल गया. घर के निर्माण के लिए आदिवासियों को शुरु में 3.5 लाख रुपए दिए गए, और जीवन परियोजना के तहत ₹6 लाख रुपए और जारी किए जाने थे.

केरल के कण्णूर ज़िले के आरलम फ़ार्म के आदिवासियों को जंगली हाथियों द्वारा रौंदे जाने का डर हमेशा रहता है. फ़ार्म के बस्तियों में रहने वाले आदिवासी पनिया समुदाय के हैं, और यह अस्थायी शेडों में रहते हैं.

इन आदिवासियों में से एक 60 साल की शांता करिकन ऐसे ही एक शेड में रहती हैं. शेड के पास ही उनके घर का ढांचा है, जिसे उन्होंने कुछ साल पहले आदिवासी पुनर्वास विकास मिशन के तहत आदिवासियों को दिए गए 60,000 रुपए के फ़ंड का उपयोग करके बनाना शुरू किया था.

लेकिन अधिकारियों ने बाकी का फ़ंड जारी नहीं किया, तो घर का काम भी अधूरा ही रह गया. बार-बार अधिकारियों से शिकायत करने के बावजूद बाकि का पैसा उन्हें नहीं मिला है.

आरलम फ़ार्म के ब्लॉक 9 में अपने घर का काम पूरा करने के लिए पैसों का इंतज़ार करने वाली शांता अकेली आदिवासी नहीं हैं. उनके जैसे कई दूसरे लोग हैं, जिन्होंने ठेकेदारों को मकान बनाने का काम सौंपने से इंकार किया, तो उनकी फ़ंडिंग भी रुक गई.

अब यह लोग या तो अस्थायी शेड में रहते हैं, या फिर निर्मिती केंद्र द्वारा बनाए गए खंडहरनुमा घरों में.

शांता करिकन उन पनिया परिवारों में से एक हैं, जो 2004-05 के आदिवासी आंदोलन के दौरान आरलम फ़ार्म में बस गए थे.

उन्होंने द हिंदु को बताया, “हमें बहुत संघर्ष के बाद पट्टा मिला है. लेकिन कोई बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं और रहने की उचित जगह के अभाव में जंगली हाथियों से लगातार ख़तरा रहता है.” वो बताती हैं कि हाथी दीवारों को तोड़ते हैं और इस जानवर के डर ने उनकी रातों की नींद छीन ली है.

जंगली हाथियों के डर ने इन आदिवासियों की रातों की नींद छीन ली है

यहां के कई आदिवासी परिवारों ने ठेकेदारों को घर निर्माण का काम सौंपने से मना कर दिया था. उनका कहना है कि ठेकेदार घर बनाने के लिए ज़्यादा पैसा मांगते हैं, और ख़राब सामान का इस्तेमाल करते हैं.

मज़े की बात यह है कि जिन आदिवासियों ने ठेकेदारों को काम सौंपा, उन्हें पूरा पैसा एक साथ मिल गया. घर के निर्माण के लिए आदिवासियों को शुरु में 3.5 लाख रुपए दिए गए, और जीवन परियोजना के तहत ₹6 लाख रुपए और जारी किए जाने थे.

यह आदिवासी आरोप लगातै हैं कि अधिकारी और ठेकेदारों की मिलीभगत है, तभी लोगों को पैसा नहीं मिल रहा है.

इसी बस्ती की निर्मला नारायणन, जो 2016 से अपना घर बना रही हैं, को अभी तक सरकार द्वारा जारी किए गए 3.5 लाख रुपए नहीं मिले हैं. उन्हें सिर्फ़  2.10 लाख रुपए अभी तक मिले हैं. वो कहती हैं कि अधिकारी अलग-अलग वजह देकर उन्हें बाकि का पैसे देने से इनकार कर रहे हैं.

ठेकेदारों को घर का निर्माण कार्य सौंपने वाले लोग भी परेशानी में हैं. इनमें से एक, राजम्मा का मकान, जिसे ठेकेदार ने हाल ही में बनाया था, अभी से रिसना शुरु हो गया है. उन्होंने अभी तक अपने ‘नए’ घर में रहना शुरु नहीं किया है.

जांच की मांग

अनुसूचित जनजाति विकास विभाग का दावा है कि एक-एक करके सभी आवेदनों को मंज़ूरी दी जा रही है. लेकिन आदिवासी संगठनों ने जांच की मांग की है.

आदिवासी दलित मुन्नेटसमिति का आरोप है कि इस पूरी प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा है, और आदिवासी कल्याण के लिए आवंटित धन का दुरुपयोग किया जा रहा है.

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