HomeAdivasi Dailyअरुणाचल प्रदेश में 26 जनजाति और 110 उप जनजाति, सच या मिथक

अरुणाचल प्रदेश में 26 जनजाति और 110 उप जनजाति, सच या मिथक

यह चिंता का विषय है कि भारत की आज़ादी के 70 सालों बाद और अरुणाचल प्रदेश के एक अलग केंद्र शासित प्रदेश/राज्य सरकार के रूप में आने के 50 साल बाद भी, भारत के संविधान में अभी भी अरुणाचल प्रदेश में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों की निश्चित सूची नहीं है.

विश्व आदिवासी दिवस के दिन यानि 9 अगस्त को विपक्ष के हंगामों के बीच लोकसभा ने अहम संविधान (127वां संशोधन) विधेयक पारित कर दिया. संसद ने अरुणाचल प्रदेश के संबंध में अनुसूचित जनजातियों की सूची को संशोधित करने के प्रावधान वाले संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक 2021 को मंजूरी दे दी.

इस दौरान अरुणाचल प्रदेश से लोकसभा सदस्य और केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, “अरुणाचल प्रदेश की कई जनजातियों का नाम जनजातियों की सूची से अंग्रेजों के समय से ही गायब था. इसे ठीक करने के लिए सरकार यह विधेयक ले कर आई है.”

वहीं विधेयक को चर्चा और पारित कराने के लिए रखते हुए जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा था कि अरुणाचल प्रदेश में कई ऐसी जनजातिया हैं जिन्हें नगा आदिवासी के तौर पर रिकॉर्ड में होने के कारण फायदा नहीं मिल पा रहा है. अब संशोधन करके इसका विस्तार किया जा रहा है. इस विधेयक के माध्यम से नगा जनजातियों को मदद मिलेगी.

अरुणाचल प्रदेश में वर्तमान में 18 समुदाय जनजातियों की सूची में शामिल हैं. राज्य सरकार की सिफारिश के आधार पर विधेयक में अरुणाचल प्रदेश के संबंध में अनुसूचित जनजातियों की सूची को संशोधित करने का प्रावधान किया गया है.

निसी जनजाति

इसके साथ ही इसमें मिश्मी कमान (मिजू मिश्मी), इदू (मिश्मी), तारोन (दिगरू मिश्मी) जनजातियों को सूची में मिश्मी, इदु और तारोन के स्थान पर शामिल किया गया है.

अरुणाचल प्रदेश सरकार अपने दस्तावेजों, किताबों, सूचना और जनसंपर्क (IPR) विभाग द्वारा प्रकाशित वार्षिक डायरी में और सरकारी कार्यों और सार्वजनिक भाषणों में यह कहती रही है कि राज्य में 26 प्रमुख जनजातियां और 110 उप जनजातियां रहती हैं.

हालांकि किसी भी सरकारी विभाग ने 26 प्रमुख जनजातियों के नाम या 110 छोटी जनजातियों के नाम कभी भी प्रकाशित नहीं किए हैं.

दानी सुलु (Dani Sulu), राज्य में सांस्कृतिक मामलों के सचिव रह चुके हैं. द अरुणाचल टाइम्स में हाल ही में उन्होंने एक लेख लिखा है. उनका कहना है कि 26 प्रमुख जनजातियों और 110 छोटी जनजातियों के नाम खोजने का मुद्दा कई मौकों पर उठाया गया था.

(Photo Credit: Google Images)

इस मुद्दे पर आईपीआर, गृह, राजनीतिक, पर्यटन और सांस्कृतिक मामलों के विभागों के बीच अंतर-विभागीय परामर्श किया गया.

लेकिन बावजूद इसके न तो 26 प्रमुख जनजातियों और 110 उप जनजातियों के नामों की पुष्टि की जा सकी और न ही उनके नामों का पता लगाने का कोई रास्ता निकाला जा सका.

उन्होंने यह सवाल उठाया है कि क्या असल में अरुणाचल प्रदेश में वास्तव में 26 प्रमुख जनजातियों और 110 छोटी जनजातियों रहती हैं. या फिर यह सिर्फ एक मिथक है, जो गलती से सरकारी भाषणों और उसके प्रकाशनों की शब्दावली में आ गया है और लोग भी यह मान बैठे हैं.

अरुणाचल प्रदेश की जनजातियों के नाम संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश 1950 (संविधान के तहत भाग III नियम और आदेश) के भाग XVIII में सूचीबद्ध हैं, जिन्हें समय-समय पर संशोधित किया गया है.

इस संवैधानिक प्रावधान के तहत नए आदेश में कहा गया है, राज्य में सभी जनजातियां जिनमें शामिल हैं- अबोर, उर्फ, अपतानी, निशी, गालो, खम्पटी, खोवा, मिश्मी, मोम्बा, कोई भी नागा जनजाति, शेरडुकपेन, सिंगफो, ह्रसो, तागीन, खंबा और आदि.

दानी सुलु कहते हैं कि अरुणाचल प्रदेश की जनजातियों की सूची कुछ बहुत ही रोचक, संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दों को सामने लाती है. सबसे पहले तो अका और ह्रसो के नाम अलग-अलग जनजातियों के रूप दर्ज हैं, जबकि अका और ह्रसो एक ही जनजाति हैं.

दूसरी बात संवैधानिक दृष्टिकोण से यह स्पष्ट है कि अरुणाचल प्रदेश की 26 प्रमुख जनजातियों और 110 छोटी जनजातियों के नाम भारत के संविधान में प्रकाशित नहीं हुए हैं.

संवैधानिक प्रावधान है कि अरुणाचल प्रदेश में रहने वाली सभी जनजातियाँ, जिनमें 22 जनजातियों के सांकेतिक नाम शामिल हैं (नए संशोधन के बाद), लेकिन यह सवाल तो रहेगा ही ना कि इन 22 जनजातियों के अलावा जो जनजातीय समुदाय अरुणाचल प्रदेश में रहते हैं, आख़िर उनके नाम क्या हैं.

क्योंकि जनजातियों के नाम सिर्फ सांकेतिक हैं. तो क्या संविधान में सूचीबद्ध जनजातियों के अलावा किसी अन्य जनजाति को अरुणाचल प्रदेश की मूल जनजातियों के अधिकार और विशेषाधिकार मिले हुए हैं?

यह ध्यान रखना अहम है कि अन्य सभी राज्यों में आदिवासियों के नामों की निश्चित सूची है. लेकिन अरुणाचल प्रदेश के मामले में ऐसा नहीं है.

यह चिंता का विषय है कि भारत की आज़ादी के 70 सालों बाद और अरुणाचल प्रदेश के एक अलग केंद्र शासित प्रदेश/राज्य सरकार के रूप में आने के 50 साल बाद भी, भारत के संविधान में अभी भी अरुणाचल प्रदेश में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों की निश्चित सूची नहीं है.

जनगणना के रिकॉर्ड में 26 प्रमुख जनजातियों और 110 छोटी जनजातियों की सूची के बारे में कुछ पता नहीं चल पाता है. अलबत्ता इतना ज़रूर है कि 1961 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर अरुणाचल प्रदेश जनसंपर्क निदेशालय ने 22 प्रमुख जनजातियों के नाम प्रकाशित किए है . इसके अलावा जनगणना के आँकड़ों से भी इस राज्य की 26 जनजातियों और 110 उप जनजातियों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाती है.

सारी कोशिशों को बाद भी यह नतीजा निकाला जा सकता है कि 26 प्रमुख जनजातियों और 110 उप जनजातियों के नामों का कोई अलग प्रामाणिक आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है.

इस पृष्ठभूमि में कुछ जनजातियों के नामों को सही करने और अरुणाचल प्रदेश की अनुसूचित जनजाति सूची के सांकेतिक नामों में कुछ और जनजातियों को शामिल करने में हालिया संशोधन अरुणाचल प्रदेश सरकार और भारत सरकार द्वारा उठाया गया अहम कदम है.

अरुणाचल प्रदेश की अपनी जनजातियों के नामों की पहचान करने और संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 की अनुसूची के भाग-XVIII के तहत इसे निश्चित शब्दों में सूचीबद्ध करने के लिए अरुणाचल प्रदेश सरकार की और सक्रिय भूमिका की आवश्यकता है.

वहीं 2021 की जनगणना का साल है. अरुणाचल प्रदेश सरकार जनगणना करने वाले कर्मियों को जनजातियों के नाम और उनके द्वारा सही ढंग से बोली जाने वाली भाषा को को दर्ज करने के लिए संवेदनशील बना सकती है.

साथ ही इस मामले में समुदाय-आधारित संगठनों और अरुणाचल स्वदेशी जनजातीय मंच को स्थानीय आबादी को अपने जनजाति के नाम और मातृभाषाओं को सही ढंग से दर्ज करने के महत्व के बारे में जागरूक करने की जरूरत है.

समुदाय-आधारित संगठनों द्वारा अपने-अपने समुदायों के लिए जागरूकता और इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं कि कैसे उनकी जनजातियों का नाम जनगणना रिकॉर्ड में सही ढंग से वापस किया जाए.

अरुणाचल प्रदेश राज्य एक बहुत ही संवेदनशील सीमावर्ती राज्य है और यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि यहाँ के मूल लोगों की पहचान की रक्षा की जाए.

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