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आदिवासी पहचान दांव पर: आमागढ़ के बाद उदयपुर में आदिवासी और हिंदू संगठन आमने सामने

जयपुर के आमागढ़ किला विवाद के बाद राजस्थान में एक महीने के भीतर यह दूसरा मुद्दा है जब आदिवासी समूह और हिंदू संगठन आदिवासी इतिहास को लेकर आमने-सामने हैं.

विश्व आदिवासी दिवस पर उदयपुर में आदिवासी राजनीति ने इस कदर जोर पकड़ा कि यहां समाज दो अलग-अलग भागों में बंटता नज़र आ रहा है. दरअसल आदिवासी दिवस पर महाराणा प्रताप के प्रमुख वीर सेनानी और आदिवासियों का नेतृत्व करने वाले राणा पुंजा भील की प्रतिमा पर पुष्पांजलि करने के लिए कई लोग पहुंचे थे.

लेकिन जब आदिवासी महासभा के लोग राणा पुंजा भील की प्रतिमा पर पहुंचे तो वहां भगवा झंडा फहराता हुआ मिला. भगवा झंडे को देखकर उत्साह का माहौल आक्रोश में बदल गया और स्थिति तनावपूर्ण हो गई. झंडे पर हुए विवाद के बाद नौबत हाथापाई तक आ गई. हालांकि बाद में समय रहते हालात को संभाल लिया गया.

इस मामले ने आदिवासी समूहों और भाजपा सदस्यों के बीच तनाव पैदा कर दिया है. राणा पुंजा भील की प्रतिमा पर भगवा झंडा देखकर आदिवासी महासभा के कार्यकर्ताओं ने अपना विरोध दर्ज कराया. आदिवासी महासभा के पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि बीजेपी और संघ परिवार द्वारा यह झंडा राणा पुंजा भील की प्रतिमा पर लगाया गया है जो निंदनीय है.

उनका कहना था कि आदिवासियों की संस्कृति और विचारधारा इससे मेल नहीं खाती है. आदिवासी महासभा ने इस मामले में बीजेपी के विधायक और कुछ आदिवासी नेताओं पर आरोप भी लगाए. हालांकि बीजेपी के नेताओं का कहना है कि उनके द्वारा यह झंडे नहीं लगाए गए हैं.

जयपुर के आमागढ़ किला विवाद के बाद राजस्थान में एक महीने के भीतर यह दूसरा मुद्दा है जब आदिवासी समूह और हिंदू संगठन आदिवासी इतिहास को लेकर आमने-सामने हैं.

कौन है राणा पुंजा भील

राणा पुंजा भील को मेवाड़ अंचल में महाराणा प्रताप की तरह ही पूजनीय माना जाता है क्योंकि उन्होंने महाराणा प्रताप का साथ अपनी भील आर्मी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर दिया था.

कुछ इतिहासकार कहते हैं कि जब महाराणा प्रताप अकबर के साथ युद्ध के लिए तैयार हो रहे थे, तब आदिवासी भील समुदाय अपनी इच्छा से उनकी सहायता के लिए आया और उस समय भील सेना की कमान पुंजा के पास थी. एक कमांडर के रूप में उनकी स्थिति के चलते उन्हें राणा की उपाधि से सम्मानित किया गया.

उन्होंने कहा कि पुंजा का बहुत सम्मान किया जाता था और अभी भी उनके नाम पर पुरस्कार और छात्रवृत्तियां दी जाती है.

लेकिन अब राजनीति में भी राणा पुंजा भील की विचारधारा को लेकर लड़ाई शुरू हो गई है. भारतीय ट्राइबल पार्टी आदिवासियों के हक की बात करते हुए मेवाड़ में अपना वर्चस्व बढ़ाने की कोशिश में जुटी है. वहीं भारतीय जनता पार्टी भी आदिवासी अंचल में राणा पुंजा भील की वीरता और उनके विचारों को अपनाने का वायदा कर आदिवासियों के वोट बटोरने की कोशिश करती है.

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