HomeAdivasi Dailyदो आदिवासी भाई बढ़ावा दे रहे हैं वारली कला को

दो आदिवासी भाई बढ़ावा दे रहे हैं वारली कला को

प्रदर्शनी को "पुनरुत्थान" या रीजेनरेशन कहा जा रहा है क्योंकि वारली जनजाति के ज्ञान को संरक्षित करना कलाकारों की जिम्मेदारी है. यही वजह है कि वायडा भाई अपने पुश्तैनी ज्ञान को अपनी कला से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.

मयूर और तुषार वायडा अपने घर पालघर जिले से रोजाना छह घंटे की यात्रा करके पढ़ने के लिए मुंबई पहुंचते थे. गंजाद गांव के वारली आदिवासी समुदाय के यह दो भाई कहते हैं कि कॉलेज तक की यात्रा ने उन्हें “देश में पारंपरिक और आधुनिक जीवन के बीच का संतुलन” दिखाया.

अपने अनुभवों को अब उन्होंने वारली शैली में बनाए गए चित्रों में कैद किया गया है. जापान में सेतोची ट्रिएनेल और एशिया-पैसिफिक ट्राइएनिअल ऑफ़ कंटेम्पररी आर्ट में प्रदर्शनियों के माध्यम से दुनिया भर में मशहूर इन भाइयों ने अब मुंबई में काला घोड़ा फेस्टिवल में अपना काम प्रदर्शित किया है.

“अवर सिटी: रीजेनरेटिंग होप” शीर्षक वाली पेंटिंग, प्रगति का एक स्थायी विचार प्रस्तुत करती है.

“इमरजेंस ऑफ़ स्पिरिट्स”

मयूर ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, “यह मुंबई का भविष्य है. हम उम्मीद दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं. बुनियादी ढांचा तैयार करने वाली कई परियोजनाओं से शहर में तटीय इकोलॉजी नष्ट हो रही है. यह पेंटिंग वारली जीवनशैली से प्रेरित है, जिसके केंद्र में स्थायी खेती, प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व और प्रकृति की पूजा शामिल है.”

मयूर ने यह भी कहा कि भले ही वारली मुंबई से ज्यादा दूर नहीं है, लेकिन उनके समुदाय के लोगों का शहर से संपर्क टूट गया है. प्रदर्शनी को “पुनरुत्थान” या रीजेनरेशन कहा जा रहा है क्योंकि वारली जनजाति के ज्ञान को संरक्षित करना कलाकारों की जिम्मेदारी है. यही वजह है कि वायडा भाई अपने पुश्तैनी ज्ञान को अपनी कला से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.

उनकी दूसरी पेंटिंग, जिसका नाम “इमर्जेंस ऑफ स्पिरिट्स” है, में एक नदी तीन पैनलों में बहती है, जिनमें से हर एक में मौसम का चित्रण है. एक पैनल “खाला चा देव” नामक एक उत्सव को दर्शाता है, जहां फसल का जश्न मनाया जाता है और बीजों की देवी “कंसारी” को धन्यवाद दिया जाता है.

वारली पेंटिंग जैसे एक भाषा है. पेंटिंग के जरिए कहानियां लिखी जाती हैं. इसका एक बुनियादी व्याकरण है, जिसे बचपन से समुदाय के लोग देखते, समझते aa rahe hain.मुंबई में यह प्रदर्शनी 22 जनवरी तक चलने वाली है.

12,000 रुपये से 5,50,0000 रुपये के बीच की पेंटिंग, वारली जीवन के दूसरे पहलुओं को भी उजागर करती है – एक “भगत” या “शमन” जिसका अर्थ है अजेय नदियाँ और प्राकृतिक देवता. “पक्षियों” में, भाइयों ने पवित्र सफेद पक्षियों के एक झुंड को बनाया है, जिसे “आसरा” कहा जाता है, जिसका मकसद पूर्वजों की आत्माओं को जगाना है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments