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क्या है पत्थलगड़ी आंदोलन, क्यों हो रहा है झारखंड में फिर से तेज़

पत्थलगड़ी में आदिवासियों के गांव की सीमाओं पर पत्थर की पट्टिका स्थापित करने का रिवाज़ है. यह दर्शाता है कि गांव राज्य की कार्यकारी शक्तियों से बाहर है, और उस गांव में आदिवासी नियम ही प्रबल हैं.

झारखंड में पिछले कुछ दिनों में पत्थलगड़ी आंदोलन फिर से तेज़ हो गया है. रविवार को कुछ आदिवासियों ने रांची के बिरसा मुंडा हवाई अड्डे के पास ज़मीन पर एक पत्थर की पट्टिका स्थापित की.

इस पट्टिका में लिखा है कि यह ज़मीन ग्राम सभा की है, और वहां पंचायती राज कानून के तहत पंचायतों के प्रावधान लागू होने चाहिएं. झारखंड की पूर्व बीजेपी सरकार ने यह ज़मीन श्री श्री रविशंकर के संगठन द आर्ट ऑफ़ लिविंग को दी थी.

पुलिस का कहना है कि यह प्रदर्शन पत्थलगड़ी आंदोलन से नहीं जुड़ा है, और आदिवासी केवल पेसा (PESA) क़ानून के प्रावधानों के अनुसार अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं.

पत्थलगड़ी में आदिवासियों के गांव की सीमाओं पर पत्थर की पट्टिका स्थापित करने का रिवाज़ है. यह दर्शाता है कि गांव राज्य की कार्यकारी शक्तियों से बाहर है, और उस गांव में आदिवासी नियम ही प्रबल हैं.

पत्थलगड़ी आंदोलन झारखंड में शुरू हुआ था

झारखंड में फ़रवरी के महीने में पत्थलगड़ी आंदोलन फिर से शुरू हुआ. कुछ आदिवासी समूहों ने झारखंड हाई कोर्ट के पास पत्थर की पट्टियों को खड़ा करने की कोशिश की थी.

इन समूहों ने राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को एक ज्ञापन सौंपकर विधानसभा के बाहर भी इस रिवाज़ को निभाने के लिए मदद मांगी थी.

आदिवासी प्रदर्शनकारियों का कहना है कि झारखंड के 13 ज़िले अनुसूचित क्षेत्रों में आते हैं, इसलिए इनमें राज्य सरकार की कार्यकारी शक्तियां लागू नहीं हो सकतीं. ये 13 ज़िले हैं रांची, पूर्वी सिंहभूम, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, गुमला, लातेहार, सरायकेला खरसावां, साहेबगंज, दुमका, पाकुड़, जमताड़ा, खुंटी और सिमडेगा.

2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की 3.29 करोड़ की कुल आबादी में कम से कम 26.2 प्रतिशत आदिवासी हैं. राज्य में 32 आदिवासी समूह हैं, जो मुख्य रूप से इन 13 ज़िलों में रहते हैं, और यहीं पत्थलगड़ी आंदोलन तेज़ भी है.

पत्थलगड़ी आंदोलन क्या है?

पत्थलगड़ी शब्द झारखंड में आदिवासियों के एक रिवाज़ से लिया गया है. राज्य का मुंडा आदिवासी समूह, अपने पूर्वजों के सम्मान में पत्थर की पट्टियों लगाते हैं. इस पट्टिका का मक़सद उनके परिवारों और गांवों के बारे में महत्वपूर्ण घोषणाएं करना, या उनके गांवों की सीमा को चिह्नित करना है.

गुजरात के भरूच ज़िले के वंठेवाड गांव में लगा एक बोर्ड

PESA क़ानून के लागू होने के बाद, पूर्व आईएएस अधिकारी बीडी शर्मा ने इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए गांवों में पत्थर की पट्टियां लगाने की प्रथा शुरू की.

इन पट्टिकाओं पर संविधान की अनुसूची 5 के प्रावधान लिखे जाते थे. इनपर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कई आदेशों को भी लिखा जाता था, जिनमें आदिवासी स्वायत्तता, उनके सांस्कृतिक और आर्थिक सशक्तीकरण, सामाजिक, और राजनीतिक न्याय की बात होती थी.

अब ऐसी पट्टिकाएं देश के कई राज्यों के आदिवासी गांवों में देखने को मिलती हैं. इससे आदिवासियों के ज़मीन पर अधिकार, और अनुसूचित क्षेत्रों में गैर-आदिवासियों और बाहरी लोगों के सीमित अधिकार साफ़ हो जाते हैं.

और यह भी साफ़ हो डजाता है कि देश के आदिवासी भारत के मूल निवासी और मालिक हैं.

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