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लोकसभा चुनाव 2024: दिग्गज़ आदिवासी नेताओं में किस को मिली मात, किसने जीत पाई

लोकसभा की 543 सीटों में से 47 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है. लोकसभा चुनाव 2024 में कई दिग्गज़ आदिवासी नेता चुनाव हार गए, तो कई ने अपनी जीत का सिलसिला बरक़रार रखा. आइए इन सभी के बारे में विस्तार से जानते हैं.

लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) पिछले दो बार हुए चुनावों से अलग रहा है. इस चुनाव में बीजेपी को झटका लगा तो कहा जा रहा है कि इस चुनाव में कांग्रेस पुनर्जीवित हो गई है.

लोकसभा की 543 सीटों में से 47 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है. लोकसभा चुनाव 2024 में कई दिग्गज़ आदिवासी नेता (Big Tribal Leaders) चुनाव हार गए, तो कई ने अपनी जीत का सिलसिला बरक़रार रखा.

कई आदिवासी नेता ऐसे भी हैं जो पहली बार संसद पहुंच रहे हैं. आइए इन आदिवासी नेताओं के बारे में विस्तार से जानते हैं.  

अर्जुन मुंडा

अर्जुन मुंडा (Arjun Munda) जनजातीय मामलों के मंत्री रहे चुके हैं. वह झारखंड की खूंटी सीट से लड़ रहे थे. यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है.

खूंटी आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा (Birsa Munda) की जन्म भूमि मानी जाती है. इसके अलावा यह लोकसभा क्षेत्र बीजेपी की परांपरागत सीट रही है. अर्जुन मुंडा से पहले कड़िया मुंडा यहां से सांसद रहे थे.

बीजेपी ने चुनाव से एक साल पहले अपने 2023-24 के बजट में आदिवासियों के लिए कई बड़ी घोषणाएं की थी. इसके अलावा 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती के समय नरेंद्र मोदी ने बिरसा मुंडा की जन्म भूमि खूंटी में पीएम जनमन का ऐलान किया था.

इसके अलावा 15 नवंबर के दिन को जनजातीय गौरव दिवस घोषित किया था. इन सब के बावजूद अर्जुन मुंडा झामुमो पार्टी के उम्मीदवार कालीचरण मुंडा से 1,49,675 वोटों से हार गए.

कालीचरण मुंडा

कालीचरण मुंडा (Kalicharan Munda) को राजनीति विरासत में मिली है. उनके पिता को झारखंड का गांधी कहा जाता था. कालीचरण मुंडा के पिता टी मुचिराय मुंडा बिहार में 8 बार मंत्री रहे चुके हैं.

वहीं 1967 से 1992 तक वह खूंटी और तामड़ से छह बार विधायक भी रहे हैं.

अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए कालीचरण मुंडा भी 1997 से 2007 तक खूंटी से विधायक रहे चुके है.

2014 के चुनाव में वे बीजेपी के दिग्गज नेता कड़िया मुंडा से हार गए थे. 2019 में वह बीजेपी के अर्जुन मुंडा से सिर्फ 1445 वोटों से हार गए.

लेकिन इस लोकसभा चुनाव में उन्होंने खूंटी में जीत का झंडा फहराया है.

सीता सोरेन

सीता सोरेन (Sita Soren) झामुमो पार्टी (JMM) के प्रमुख शिबू सोरेन की बड़ी बहू है और हेमंत सोरेन की भाभी है.

हेमंत सोरेन (Hemant Soren) की गिरफ्तारी के बाद से ही सोरेन परिवार लोकसभा चुनाव के दौरान सुर्खिया बटोरता नज़र आया.

सीता सोरेन ने मार्च के महीनें में जेएमएम पार्टी को छोड़ बीजेपी में शामिल हुई थी.

लेकिन उनका यह दल बदलना काम ना आया. वह दुमका सीट से जेएमएम पार्टी के वरिष्ठ नेता और उम्मीदवार नलिन सोरेन से हार गई.

उनकी हार को हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन से जोड़ा जा रहा है.

क्योंकि कल्पना सोरेन अपने पत्नी के गिरफ्तारी के बाद कई जेएमएम के लिए कई भाषण और रेलियां करते हुए देखी गई.

कवासी लखमा

कवासी लखमा (Kawasi Lakhma) छत्तीसगढ़ के आबकारी और उद्योग विभाग के मंत्री रहे चुके हैं. वह पढ़े-लिखे नहीं है, लेकिन उन्हें छत्तीसगढ़ की राजनीति का पूरा ज्ञान है.

वह बस्तर के उस इलाके से है, जहां नक्सलियों का प्रभाव अधिक रहा है. लखमा के नाम के साथ सलवा जूडृम भी चर्चा में रहा है.

वहीं कांग्रेस की टिकट से लखमा कोंटा से पांच बार विधायक रह चुके हैं.

कवासी लखमा उन बचे हुए कांग्रेस के नेताओं में से एक है, जिन पर 2013 में नक्सलियों द्वारा हमला किया था. कांग्रेस के सभी बड़े नेता इस हमले में मारे गए थे. लेकिन लखमा इस हमले में बच गए.

लोकसभा चुनाव 2024 में एक बार फिर उन्होंने सांसद बने के लिए चुनाव लड़ा. वह इस लोकसभा चुनाव में इंडियन नेशनल कांग्रेस की तरफ से बस्तर से लड़ रहे थे.

लेकिन वह बीजेपी के महेश कश्यप से 55245 वोटों से हार गए. महेश कश्यप अपने राजनीति के शुरूआती समय में आरएसएस के संगठन से जुड़े हुए थे. आरएसएस के संगठन जनजाति सुरक्षा मंच ने आदिवासियों में धर्मांतरण का मुद्दा उठाया है.

ऐसा लगता है की राज्य के आदिवासी समाज में फैली धर्मांतरण की हवा बीजेपी के लिए काम आ गई. क्योंकि छत्तीसगढ़ में बीजेपी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 5 सीटों को हासिल करने में कामयाब रही.

जुएल ओराम

जुएल ओराम (Jual Oram) 12वीं, 13वीं, 14वीं और 16वीं लोकसभा के सदस्य रहे चुके हैं. इसके अलावा वे नरेंद्र मोदी की कैबिनेट मंत्रियों में से एक रहे चुके है.

इन्होंने चार वर्षो से अधिक समय तक ओडिशा में बीजेपी के लिए काम किया है.

वह इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी पार्टी की तरफ से सुंदरगढ़ सीट से लड़े रहे थे. उनका मुकाबला बीजू जनता दल के उम्मीदवार दिलीप टिर्की से था.

बीजेपी द्वारा ओडिशा से पहली आदिवासी महिला, द्रौपदी मूर्मू को राष्ट्रपति बनाना काम आया.

जिसके कारण 24 सालों से राज कर रही बीजू जनता दल पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ा.

नाबा चरण माझी और सुदाम मरांडी

नाबा चरण माझी (Naba Charan Majhi) और सुदाम मरांडी (Sudam Marndi) दोनों ने ही अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत झामुमो पार्टी से की थी.

नाबा चरण माझी ने अपनी शुरूआती चरणों में द्रौपदी मुर्मू के साथ काम किया था. वह झामुमो पार्टी के नेता रहे चुके है. 2019 में उन्होंने झामुमो की सदस्यता छोड़ बीजेपी में शामिल हुए थे.

बीजेपी ने अपने बड़े दिग्गज नेता, बिश्वेश्वर टुडू को हटाकर नाबा चरन को चुना था.

उस समय इसकी खूब चर्चा हुई, क्योंकि बिश्वेश्वर टुडू जनजातीय मामले और जल शाक्ति के राज्य मंत्री थे.

मरांडी का मयूरभंज ज़िले में काफी अच्छी राजनीति पकड़ है. वह इस ज़िले से 9 बार विधायक रहे चुके थे.

लेकिन इन सब के बावजूद मयूरभंज सीट से बीजेपी के नाबा चरण माझी ने 2,19,334 वोटों से बीजू जनता दल पार्टी के उम्मीदवार सुदाम मरांडी को हराया है.

कांतिलाल भूरिया

कांतिलाल भूरिया (kantilal Bhuria) मध्यप्रदेश की रतलाम सीट से 5 बार सांसद बन चुके हैं. मध्यप्रदेश की यह सीट उन 6 सीटों में से एक है, जो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है.

कांग्रेस के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया केंद्र मंत्री भी रहे चुके है. इन सब के बावजूद भी वह बीजेपी की उम्मीदवार अनिता नागरसिंह चौहान से 2,07,232 वोटों के अंतर से हार गए.

लोकसभा चुनाव से पहले राज्य के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की थी.

मध्यप्रदेश देश का वो राज्य है, जहां सबसे ज्यादा आदिवासी रहते हैं.

लोकसभा चुनाव के दौरान राज्य में आदिवासियों के साथ हुई कई घटनाएं सामने आई. लेकिन फिर भी बीजेपी राज्य की अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सभी सीटों का हासिल करने में कामयाब रही.

फग्गन सिंह कुलस्ते

मध्यप्रदेश की मंडला सीट बीजेपी के नेता फग्गन सिंह कुलस्ते (faggan singh kulaste) की पंरापारिक सीट मानी जाती है.

1996 से 2004, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में मंडला सीट से फग्गन सिंह कुलस्ते ही जीते आ रहे हैं. उन्होंने यह सीट 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में हारी थी.

वह राज्य में हुए विधानसभा चुनाव 2023  हारने के बावजूद बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2024 में मंडला सीट से फग्गन सिंह कुलस्ते को ही चुना. बीजेपी का यह फैसला सही रहा.

इस लोकसभा चुनाव में उनका मुकाबला कांग्रेस के ओमकार मरकाम से रहा था.

यह दोनों ही गोंड समुदाय से है. मध्यप्रदेश के मंडला लोकसभा क्षेत्र गोंडवाना साम्राज्य की राजधानी माना जाता है.

बीजेपी के उम्मीदवार फग्गन सिंह कुलस्ते ने कांग्रेस के ओमकार मरकाम को 10,38,476 वोटों से हराया है.

मुरारी लाल मीणा

दौसा लोकसभा क्षेत्र को कांग्रेस पार्टी का गढ़ माना जाता है. लेकिन 2014 और 2019 से दौसा बीजेपी ही जीती आ रही है.

यह सीट राजस्थान की उन सीटों में से एक है, जो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है.

2019 में इस सीट से कांग्रेस ने मुरारी लाल मीणा (Murari Lal Meena) की पत्नी सविता मीणा का अपना प्रत्याशी बनाया था. लेकिन वह बीजेपी के जसकौर मीणा से भारी वोटों के अंतर से हार गई.

इस बार फिर कांग्रेस ने मुरारी लाल मीणा पर भरोसा किया और उन्हें दौसा सीट से टिकट दी थी.

कांग्रेस का यह भरोसा उनके काम आया. मुरारी लाल मीणा ने बीजेपी के उम्मीदवार कन्हैया लाल मीणा को 2,37,340 वोटों से हराया है.

मुरारी लाल मीणा की सहायता से कांग्रेस ने अपनी पारंपरिक सीट दौसा में जीत हासिल की.

राजुकमार रोत

दक्षिण राजस्थान में भारत आदिवासी पार्टी (BAP) का तीन विधानसभा सीटे जीतने के बाद से ही काफी वर्चसव देखने को मिला है.

राजकुमार रोत (Rajkumar Roat) बाप की उन तीन नेताओं में से एक है, जो विधानसभा चुनाव में विजयी रहे.

बाप पार्टी ने आदिवासियों से किए अपने वादों के ज़रिए यहां के आदिवासियों का दिल जीता है.

राजकुमार रोत राजस्थान के बांसवाड़ा सीट से लड़े थे. उनका मुकाबला बीजेपी के उम्मीदवार महेंद्रजीत सिंह मालवीय से था.

महेंद्रजीत सिंह मालवीय

महेंद्रजीत सिंह मालवीय (Mahendrajeet Singh Malviya) चुनाव के कुछ समय पहले ही कांग्रेस पार्टी की सदस्यता छोड़ बीजेपी में शामिल हुए थे. उस समय वह कांग्रेस के सांसद थे

जिसकी वज़ह से दक्षिण राजस्थान की राजनीति में काफी उथल-पुथल देखी गई थी.

अंत में बाप पार्टी के उम्मीदवार राजकुमार रोत ने बीजेपी के दावेदार महेंद्रजीत सिंह मालवीय को 2,47,054 वोटों से हराया है.

मनसुख वसावा

भरूच सीट में भील समुदाय की काफी अच्छी खासी जनसंख्या है. यह सीट सामान्य सीटों में से है. लेकिन फिर भी इस सीट के नतीज़े में आदिवासियों का भी बड़ा हाथ है.

यहीं कारण है की आप, बीजेपी और बाप पार्टी ने भील समुदाय से संबंधित रखने वाले उम्मीदवारों को खड़ा किया था.

इस सीट में छोटू वसावा के बेटे दिलीप वसावा और बीजेपी के मनसुख वसावा (Mansukh Vasava) में बराबर की टक्कर मानी जा रही थी.

पहले छोटू वसावा भरूच सीट से लड़ रहे थे, लेकिन इन फिर उन्होंने अपने बड़े बेटे दिलीप को यहां से खड़ा किया था.

बाप, बीजेपी और आप पार्टी के नेता तीनों ही बीटीपी पार्टी के सदस्य रहे चुके हैं.

जसवन्तसिंह सुमनभाई

The Minister of State for Tribal Affairs, Shri Jaswantsinh Sumanbhai Bhabhor addressing at the launch cum workshop of the National Resource Centre for Tribal livelihood “Vanjeevan”, at Bhubaneswar, Odisha on December 22, 2016.

जसवन्तसिंह सुमनभाई (Jaswantsinh Sumanbhai) इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ से दाहोद सीट से लड़े थे.

2019 में उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार बाबूभाई खीमाभाई को हराया था. वहीं 2014 में भी वह सांसद चुनाव जीता था.

1995 में वे पहली बार विधानसभा चुनाव लड़े थे. वह पांच बार विधायक रहे चुके है.

इस लोकसभा चुनाव में वे दाहोद सीट से लड़ रहे थे. उनका मुकाबला इंडियन नेशनल कांग्रेस के उम्मीदवार डॉ प्रभाबेन किशोरसिंह से था. इस सीट में जीत का उंतर 3,33,677 रहा है.

प्रियंका जारकीहोली

लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे घोषित होने के बाद से ही प्रियंका जारकीहोली (Priyanka Jarkiholi) का नाम मेनस्ट्रीम मीडिया में चर्चा का विषय बना हुआ है.

प्रियंका का परिवार पिछले 3 दशक से राजनीति में है. वह अपने परिवार से राजनीति में कदम रखने वाली पहली महिला है.

प्रियंका कांग्रेस उम्मीदवार और मंत्री सतीश जारकीहोली की बेटी है. वह कर्नाटक के चिक्कोडी सीट से लड़ रही थी. चिक्कोडी सीट कर्नाटक के सामान्य सीटों में से एक है.

उनका मुकाबला बीजेपी के मौजूदा सांसद अन्नासाहेब जोले से था.

वह चिक्कोडी सीट से विजय हासिल कर सबसे कम उम्र की सांसदों में से एक बन गई है. उनकी उम्र अभी 27 वर्ष है.

अगाथा कोंगकल संगमा

अगाथा के. संगमा (Agatha K. Sangama) मौजूदा सांसद और मुख्यमंत्री कॉनराड के संगमा की बहन है. वह नेशनल पीपल्स पार्टी की प्रमुख नेता है. नेशनल पीपल्स पार्टी एनडीए गठबंधन में शामिल है.

लेकिन इन सब के बावजूद वे इंडियन नेशनल कांग्रेस के सालेंग ए संगमा से हार गई. वह मेघालय की तुरा सीट से लड़ रही थी.

यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है.

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