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झारखंड में सरना धर्म और आदिवासी अधिकार विधान सभा चुनाव में मुद्दे बन सकते हैं

चंपाई सोरेन ने आदिवासी पहचान और अधिकार पर आंदोलन का आह्वान किया. उन्होंने सरना धर्म कोड के पास ना होने का ज़िम्मेदार केंद्र सरकार को ठहराया है.

चंपाई सोरेन (Champai Soren) ने कहा है कि झारखंड (Tribes of Jharkhand) की राज्य सरकार सरना धर्म कोड (Sarna Code) लाने के लिए सभी मुमकिन प्रयास कर रही है. उन्होंने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को निशाना बनाया.

उन्होंने कहा कि सरना धर्म कोड को मान्यता देने का प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास लटका हुआ है.

उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार को देने में आनाकानी कर रही है.

चंपाई सोरेन रविवार को एक कार्यक्रम में बोल रहे थे जब उन्होंने ये बातें कहीं.

इस मामले में उन्होंने कहा कि देश के सभी आदिवासियों को एकजुट होकर सरना धर्म कोड के लिए एक साथ आंदोलन करना होगा ताकि केंद्र सरकार आदिवासियों को सरना धर्म कोड देने पर मजबूर हो जाए.

इसके अलावा चंपाई सोरेन ने केंद्र पर बैठी सत्ताधारी पार्टी पर यह आरोप लगाया कि बीजेपी सिर्फ खनिजों को लूटने का काम करती आई है.

उन्होंने कहा, “ आदिवासियों के जल, जंगल जमीन से छेड़छाड़ की जा रही है. वन अधिकार अधिनियम, सीएनटी और एसपीटी एक्ट के साथ किसी भी तरह का छेड़छाड़ नहीं सहा जाएगा.”

आदिवासी पहचान और जनगणना

देश में सबसे पहली जनगणना 1871 यानी ब्रिटिश इंडिया के समय हुई थी. उस समय आदिवासियों के लिए अलग से धर्म कॉलम की व्यवस्था थी. आदिवासियों के लिए यह धर्म कॉलम 1941 तक ज़ारी रहा था.

लेकिन आज़ादी के बाद 1951 में आदिवासियों का यह धर्म कॉलम मिटा दिया गया और उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला.

जिसके बाद अब आदिवासियों के लिए जनगणना में अन्य नाम से धर्म कॉलम बना दिया गया है.

2011 में जब जनगणना हुई तो उस समय लगभग 49 लाख लोगों ने धर्म कॉलम में अन्य की जगह सरना धर्म भरा था. इन 49 लाख लोगों में से 42 लाख झारखंड से थे.

1951 के बाद से ही सरना धर्म की मांग अब तक ज़ारी है. सरना धर्म के लोग वो है, जो प्रकृति की पूजा करे हैं.

हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी झारखंड की सभी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर हार गई है.

इन पांचों की सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस पार्टी ने जीती हैं. अब राज्य में विधानसभा चुनाव (Jharkhand Assembly Election 2024) का माहौल बन गया है.

इस चुनाव में भी आदिवासी पहचान और अधिकार चर्चा के ज़रूरी मुद्दे होंगे. झारखंड के मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के इस भाषण को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए.

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