HomeGround Reportअंधेरे में तीर: आदिवासी जनगणना के बिना विकास के दावे

अंधेरे में तीर: आदिवासी जनगणना के बिना विकास के दावे

संसद में आदिवासियों पर कभी कोई ख़ास चर्चा सुनने को नहीं मिलती है. लेकिन अफ़सोस की आदिवासी मसलों से जुड़े अहम सवालों पर सरकार के जवाब सतही रहते हैं. इन जवाबों में जवाबदेही ग़ायब मिलती है.

भारत के 18 राज्यों और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में बसे 75 आदिवासी समुदायों को विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समुदाय (PVTG) की पहचान दी गई है. सरकार का कहती है कि इन आदिवासी समुदायों सहित सभी आदिवासी आबादी की शैक्षिक और आर्थिक विकास की दिशा में ठोस प्रयास किए गए हैं. 

संसद में यह दावा करते हुए सरकार ने कहा है कि वैसे तो सभी आदिवासी समुदायों के विकास का काम किया जा रहा है लेकिन PVTG यानि विशेष रुप से पिछड़ी जनजातियों के लिए टार्गेटेड योजनाएँ चलाई जा रही हैं. 

सरकार का बयान है कि पीवीटीजी के विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए सरकार ने ‘पीवीटीजी विकास योजना’ लागू की गई है. इस योजना का उद्देश्य उनकी संस्कृति और विरासत को बनाए रखते हुए, उनका सामाजिक और आर्थिक विकास हासिल करना है.

सरकार का यह दावा ग़लत नहीं कहा जा सकता है. क्योंकि यह बयान सरकार ने संसद के पटल पर रखा है. लेकिन सरकार आदिम जनजातियों या जिन्हें औपचारिक भाषा में विशेष रूप से कमजोर जनजाति कहते हैं उनके लिए योजनाओं को बनाने का आधार क्या है ?

यह सवाल हम इसलिए पूछ रहे हैं कि सरकार को यह ही नहीं पता है कि देश में पीवीटीजी यानि विशेष रूप से कमज़ोर आदिवासियों की आबादी कितनी है. संसद में सरकार ने एक सवाल के जवाब में यह जानकारी दी है. 

25 जुलाई को लोकसभा में जनजातीय कार्य मंत्रालय के जवाब में कहा गया है कि आदिवासी समुदायों की गिनती अलग से नहीं की जाती है. इस जवाब में बताया गया है कि आख़री बार 1951 की जनगणना में आदिवासी आबादी की अलग से गिनती हुई थी.

यानि सरकार 75 आदिवासी समुदायों के बारे में मानती है कि ये विशेष रूप से कमज़ोर हैं. सरकार इनके लिए ख़ास योजनाएँ भी बनाती है. लेकिन सरकार यह नहीं जानती है कि इन समुदायों में से किसी समुदाय की कितनी आबादी है.

इस पृष्ठभूमि में अगर हम यह सवाल पूछें कि फिर सरकार किसी समुदाय के लिए योजना बनाती कैसे हैं? योजना का साइज़ क्या होगा, उस पर कितना ख़र्च किया जाएगा, यह भला कैसे तय होता होगा? 

इन सवालों के अलावा विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों से जुड़ा एक बेहद अहम सवाल  उनके अस्तित्व के संकट से जुड़ा है. भारत की कई जनजातियों के बारे में यह चिंता प्रकट की जाती रही है कि उनकी जनसंख्या लगातार कम हो रही है. 

अंडमान के ग्रेट अंडमानी, सेंटिनिली और ओंग और जारवा जनजातियों के बारे में तो दुनिया भर में चर्चा होती रही है. लेकिन इन जनजातियों के अलावा भी भारत के कई हिस्सों में यह बताया जाता है कि आदिम जनजातियों में से कुछ की आबादी लगातार घट रही है.

इस तरह के दावे ओडिशा की लोधा, हिल खड़िया, मांकड़िया और पहाड़ी बोंडा जनजातियों के बारे में किये जाते रहे हैं. झारखंड की बिरहोर और पहाड़िया जनजाति की आबादी में गिरावट पर भी बहस होती रही है.

झारखंड के बिरहोर की आबादी में गिरावट बताई जाती है

इसके अलावा राजस्थान और मध्य प्रदेश की सहरिया जनजाति में कुपोषण और शिशु मृत्यु दर एक चिंता का कारण रही है. सरकार कहती है कि इन सभी मसलों पर काम किया जा रहा है. 

किसी समुदाय में कुल कितने लोग हैं उनकी आर्थिक सामाजिक स्थिति कैसी है यह जाने बिना भला कैसे सरकार योजनाएँ बना भी लेती है. 

2014 में आदिवासियों की सामाजिक आर्थिक स्थिति का पता लगाने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया था. प्रोफ़ेसर खाखा के नेतृत्व में बनी इस कमेटी ने व्यापक अध्ययन के बाद एक विस्तृत रिपोर्ट सरकार को दी थी.

इस रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया था कि पीवीटीजी की अलग से जनगणना ज़रूरी है. क्योंकि तभी उनके लिए सही योजनाएँ बन पाएँगी. इसके अलावा अगर पीवीटीजी की सही सही संख्या का पता होगा तो योजनाओं को लागू करने में भी आसानी होगी.

यह सवाल संसद के मानसून सत्र में इंजीनियर गुमान सिंह दामोर ने लोकसभा में पूछा था. उन्होंने सरकार से यह भी पूछा था कि क्या सरकार पीवीटीजी को अच्छी गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के लिए एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय खोलने की योजना बनाई है.

इस सवाल के जवाब में सरकार ने पहले से मौजूद और मंज़ूर स्कूलों की संख्या बता कर पल्ला झाड़ लिया है. सरकार यह कहने से बच गई कि पीवीटीजी के लिए अलग से ऐसे स्कूलों की स्थापना का उसका कोई इरादा नहीं है.

सरकार ने बताया कि मध्य प्रदेश में कुल 69 स्कूल मंज़ूर है जिनमें से 63 चालू हैं. इसके अलावा सरकार 2 स्कूल और शुरू करने की योजना बना रही है.

इससे पहले बजट सत्र में भी इससे मिलता जुलता सवाल सरकार से पूछा गया था. लेकिन पहले के सत्रों में भी और इस सत्र में भी सरकार के पास कोई ठोस जवाब नहीं था. 

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