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महाराष्ट्र: आदिवासी गांवों में बुनियादी सुविधाओं की कमी पर हाई कोर्ट का सरकार को नोटिस

मुंबई से लगभग 1,000 किमी की दूरी पर आदिवासी बहुल गढ़चिरौली जिले में एक छोटा सा गांव है वेंगनूर. हर साल मानसून के दौरान वेंगनूर बाकी दुनिया से कट जाता है, क्यों उसके पास का दीना बांध ओवरफ्लो हो जाता है. नतीजा यह होता है कि महीनों तक आदिवासियों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, जिनमें से सबसे बड़ी है स्वास्थ्य सेवा तक पहुंचने का कोई रास्ता न होना.

इस साल जून में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने बस्ती के आदिवासी निवासियों की दुर्दशा का संज्ञान लिया, और राज्य को इन आदिवासी निवासियों के “मौलिक अधिकारों के उल्लंघन” करने के लिए नोटिस जारी किया. कोर्ट ने आदिवासी बहलु वेंगनूर गत ग्राम पंचायत में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे और unmanned नावों की अनुपलब्धता की शिकायतों के जवाब में जानकारी पेश करने के लिए एक स्वतंत्र वकील भी नियुक्त किया. इस पंचायत में चार गांव शामिल हैं – वेंगनूर, पडकोटोला, अडांगेपल्ली और सुरगांव.

कोर्ट का हस्तक्षेप इलाक़े के एक 23 साल के वकील बोधि रामटेके द्वारा दायर की गई याचिका के बाद आया. रामटेके ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि राज्य स्थानीय निवासियों को बुनियादी सुविधाएं प्रदान न करके, उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है.

रामटेके, जो गढ़चिरौली में ही पैदा हुए और अपना बचपन यहीं बिताया, कहते हैं कि उन्हें आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने की प्रेरणा अपने माता-पिता से मिली.

रामटेके ने कानून की पढ़ाई की, और महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों से सामाजिक रूप से जागरुक युवा वकीलों के एक समूह, पाथ फाउंडेशन (People’s Action Towards Humanity) की स्थापना की. PATH गढ़चिरौली और चंद्रपुर जिलों में PVTG (विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह) और दूसरे आदिवासी समूहों के साथ काम कर रहा है.

इलाक़े में अपने काम के दौरान, रामटेके और उनके सहयोगियों ने पाया कि स्थानीय निवासियों को राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच नहीं मिल पा रही थी. उन्होंने देखा कि आपातकालीन स्थिति में स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने के लिए निवासियों को निजी नावों या राफ्ट का उपयोग करना पड़ता है.

“दस साल पहले, जिला कलेक्टर द्वारा दो नावें दी गई थीं, जिनकी तब से सिर्फ़ दो बार मरम्मत की गई है. अब उन नावों की स्थिति बहुत ख़राब है, और उन्हें इस्तेमाल करना जोखिम से भरा है,” रामटेके कहते हैं.

एक आरटीआई (RTI) के माध्यम से, रामटेके ने पाया कि जिला स्वास्थ्य विभाग में लगभग 57% पद खाली हैं. चिकित्सा अधिकारियों के 75 पदों में से 43 खाली पड़े थे. फिर उन्होंने 40 से ज़्यादा ग्रामीणों के हस्ताक्षर इकट्ठा किए और हाई कोर्ट के सामने एक याचिका दायर की.

बाद में कोर्ट ने इसे सुओ मोटो PIL के रूप में स्वीकार कर लिया. याचिका पर सुनवाई के बाद, कोर्ट ने जनजातियों के “मौलिक अधिकारों के उल्लंघन” के संबंध में राज्य सरकार को नोटिस जारी किया.

अदालत ने जनहित याचिका में किए गए दावों की जांच के लिए रेणुका सिरपुरकर को न्याय मित्र (amicus curiae) नियुक्त किया. याचिका पर अगली सुनवाई 8 अगस्त को है.

“सालों से, मैं ग्रामीणों की पीड़ा देख रहा हूं. हम आम लोग हैं और हमारी कोई नहीं सुनता. अब, कानून की मदद से, मुझे उम्मीद है कि ग्रामीणों को न्याय मिलेगा, और स्वास्थ्य केंद्र और एक पुल बनाया जाएगा,” रामटेके ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया.

गढ़चिरौली के कलेक्टर संजय मीणा ने कहा कि अदालत से नोटिस मिलने के बाद जिला प्रशासन ने स्थानीय निवासियों को लाने-ले जाने के लिए गांव में एक नई नाव की आपूर्ति पहले ही कर दी है. इसके अलावा एक पुल के निर्माण के लिए भी कदम उठाए गए हैं, जो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंच बढ़ाने के लिए गांवों को मुख्य सड़क से जोड़ेगा.

हालांकि पुल की लागत ज़्यादा होगी, तो प्रशासन को एनओसी लेनी होगी और राज्य सरकार से फ़ंड की मांग करनी होगी. प्रशासन अपने द्वारा उठाए गए सभी कदमों का विवरण कोर्ट को अगली सुनवाई पर देगा.

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