HomeAdivasi Dailyपारसनाथ विवाद की आग में अल्पसंख्यक आयोग ने घी डाला है

पारसनाथ विवाद की आग में अल्पसंख्यक आयोग ने घी डाला है

जब स्थानीय प्रशासन ने मामले को आपसी बातचीत से सुलझाने की कोशिश की है, उस समय में अल्पसंख्य का यह बयान ग़ैर ज़रूरी नज़र आता है. क्योंकि पारसनाथ पर केंद्र सरकार के आदेश के बाद आदिवासी पहले से ही आंदोलन कर रहे हैं. उन्हें आशंका है कि जैन समुदाय के प्रभाव में उनके धर्म स्थल को ज़बरदस्ती क़ब्ज़ा किया जा रहा है.

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अनुसार केंद्र और झारखंड सरकार के फैसलों के अनुरूप जैन स्थल सम्मेद शिखर तीर्थ स्थल ही रहेगा, पर्यटन केंद्र नहीं बनेगा. आयोग के अध्यक्ष इकबाल लालपुरा के अनुसार केंद्र और झारखंड सरकार ने यह फ़ैसला किया है कि पारसनाथ पहाड़ जैनियों का तीर्थ स्थल ही बना रहेगा. 

अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष ने एक कदम आगे जाते हुए झारखंड सरकार को निर्देश दिया है कि इस सिलसिले में जारी नोटिस में पर्यटन स्थल के स्थान पर पवित्र तीर्थस्थल किया जाए.

अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष लालपुरा के अनुसार केंद्र और झारखंड सरकार इस बात पर सहमत हैं कि झारखंड के गिरडीह स्थित पारसनाथ पहाड़ पर शराब या मांस ले जाने पर प्रतिबंध रहेगा.

मंगलवार को दिल्ली में अल्पसंख्यक आयोग ने इस सिलसिले में एक सुनवाई की थी. 

अल्पसंख्यक आयोग के इस बयान पर आदिवासी संगठनों ने आपत्ति दर्ज की है. इस सिलसिले में आदिवासी सेंगल अभियान नाम के संगठन ने एक बयान जारी कर आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा है कि पारसनाथ पहाड़ पर असली हक़ आदिवासियों का है. 

आदिवासी इस पहाड़ को मरांग बुरू मान कर पूजते हैं.

सेंगर अभियान की तरफ़ से जारी बयान में पूछा गया है कि अगर पारसनाथ सिर्फ़ जैन समुदाय का है तो वहां आदिवासियों के मरांग बुरू अर्थात ईश्वर और युग जाहेरथान (पूजा स्थल) का क्या होगा ? 

क्या आदिवासियों का ईश्वर नहीं है? धर्म नहीं है? तीर्थ स्थल नहीं है? यह भारत के आदिवासियों के खिलाफ एक बड़ा षड्यंत्र है, धार्मिक नरसंहार है. 

आयोग, केंद्र तथा झारखंड सरकार तीनों का फैसला आदिवासी अस्तित्व, पहचान, हिस्सेदारी पर घातक हमला है. आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ है. सेंगेल ने चेतावनी के लहज़े में कहा है कि इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. यह संगठन करो या मरो की तर्ज पर लड़ेगा.

गिरिडीह में कल ही यानि 18 जनवरी को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा था  पारसनाथ मरांग बुरू आदिवासियों का था और हमेशा रहेगा. 

लेकिन सेंगल अभियान का आरोप है कि यह उनकी ख़ातियानी झुनझुना की तरह और एक झुनझुना और बड़ा झूठ साबित हो रहा है. चूँकि हेमंत सोरेन  ने मरांग बुरू या आदिवासी के ईश्वर को बचाने की जगह जैनियों को बेचने का काम किया है. 

सेंगल अभियान के नेता सलखान मूर्मु ने हेमंत सोरेन से सवाल पूछा है, “क्या  वे राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के फैसले का विरोध कर सकेंगे?” 

उन्होंने एक बयान जारी कर कहा है कि जब तक केंद्र और झारखंड सरकार मरांग बुरु पर आदिवासियों के प्रथम दावेदारी को लिखित रूप में नोटिफाई नहीं करेंगे सेंगेल का राष्ट्रव्यापी मरांग बुरु बचाओ भारत यात्रा आंदोलन जारी रहेगा. 

सेंगेल का “मारंग बुरू बचाओ यात्रा” 17 जनवरी को जमशेदपुर से शुरू हुआ है. 18 जनवरी को रांची था. आज 19 जनवरी को रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड मुख्यालय में दिन के 11:00 बजे सेंगेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सांसद सालखन मुर्मू और सेंगेल के केंद्रीय संयोजक सुमित्रा मुर्मू का प्रेस कॉन्फ्रेंस है. 

उसके बाद मांडू प्रखंड के अंतर्गत सरूबेड़ा और परेज में आदिवासी जनसभा का आयोजन है. यात्रा का अगला पड़ाव चौथा दिन, 20 जनवरी  हजारीबाग जिला होगा. 

जहां हजारीबाग सर्किट हाउस में दिन के 12:00 बजे एक पत्रकार सम्मेलन होगा. तत्पश्चात दिन के 2:00 बजे से एक आदिवासी सभा का आयोजन बिष्णुगढ़ के सत्कार होटल में है.

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