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शादी की क़ानून उम्र बढ़ाए जाने से पहले आदिवासी परंपराओं को समझना होगा – संसदीय समिति

भारत की जनसंख्या का क़रीब 9-10 प्रतिशत आदिवासी है. इसलिए उनकी परंपराओं और विश्वासों को समझे बिना बाल विवाह को रोकने के क़ानून के मक़सद को हासिल नहीं किया जा सकता है. इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि आदिवासी भारत में इस मसले पर एक व्यापक अध्ययन कराया जाए.

संसद की स्थाई समिति का विचार है कि देश में लड़कियों की शादी की न्यूनतम सीमा 18 साल से बढ़ा कर 21 साल करने के फ़ैसले से पहले व्यापक अध्ययन की ज़रूरत है. 

समिति चाहती है कि किसी फ़ैसले पर पहुँचने से पहले लड़कियों की शादी की क़ानूनी उम्र सीमा के बारे में आम धारणा और अलग अलग विचारों को समझना ज़रूरी होगा. इसलिए इस मामले में विचार-विमर्श का दायरा बड़ा होना चाहिए. 

महिलाओं और बच्चों के मामले से जुड़ी स्थाई समिति ने कहा है कि लड़कियों की शादी की उम्र से जुड़े क़ानून में संशोधन करने से पहले आदिवासी समाज, उनकी परंपराओं और विश्वासों को समझना भी बेहद ज़रूरी होगा. 

इस स्थाई समिति को 24 जनवरी को अपनी रिपोर्ट देनी थी. लेकिन कमेटी के इस आग्रह के बाद राज्य सभा के सभापति जगदीप धनकड़ ने समिति को रिपोर्ट जमा कराने के लिए 3 महीने का समय और दिया है. 

अब समिति को बाल विवाह प्रतिबंध (संशोधन) अधिनियम, 2021 का अध्ययन करने के बाद 24 अप्रैल तक अपनी रिपोर्ट संसद में पेश करनी होगी. यानि बजट सत्र में इस बिल पर विचार नहीं हो सकेगा. 

दरअसल संसदीय समिति का कहना है कि यह विषय पेचीदा और गंभीर है. इसलिए इस मसले पर व्यापक विचार-विमर्श के बाद ही किसी ठोस नतीजे पर पहुँचा जा सकता है. 

इस कमेटी को इस बिल पर रिपोर्ट देने के लिए तीन-तीन महीने का समय पहले भी बढ़ाया जा चुका है. कमेटी ने इस मसले पर कई मंत्रालयों और संस्थाओं से विचार विमर्श किया है. 

मसलन इस सिलसिले में महिलाओं और बच्चों से जुड़े मंत्रालय के अलावा अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और जनजातीय कार्य मंत्रालय से भी विचार विमर्श किया गया है. 

इसके अलावा कमेटी ने संयुक्त राष्ट्र संघ के संस्थाओं के प्रतिनिधियों से भी सलाह ली है. 

कमेटी से जुड़े कुछ लोगों ने यह भी जानकारी दी है कि इस मसले पर ज़मीनी हक़ीक़त जानने के बाद ही क़ानून में बदलाव का सुझाव दिया जा सकता है. 

उनके अनुसार कमेटी ने TISS यानि टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंस और इंस्टिट्यूट ऑफ़ रूरल मैनेजमेंट आणंद, गुजरात को इस विषय पर एक अध्ययन करने को कहा गया है. 

आदिवासी समाज और परंपरा को समझना ज़रूरी

बाल विवाह प्रतिबंध (संशोधन) विधेयक, 2021 का मक़सद माँ और बच्चे की मृत्यु दर में सुधार, पोषण और बराबरी का हक़ बताया गया है. लेकिन यह एक पेचीदा मसला भी है. 

नेशनल फ़ैमिली हैल्थ सर्वे 2019-21 के अनुसार देश में 20-24 साल की लड़कियों में से लगभग एक चौथाई की शादी 18 साल से कम उम्र में हो गई थी. 

जबकि इस सिलसिले में 1978 से क़ानून मौजूद है. इस क़ानून के अनुसार लड़के के लिए 21 साल और लड़की के लिए 18 साल शादी की उम्र तय की गयी है. 

आदिवासी समाज के संदर्भ में इस क़ानून की सफलता देखेंगे तो अनुभव और ख़राब नज़र आएगा. हालाँकि इस विषय पर आदिवासी आबादी मे राष्ट्रीय स्तर पर अलग से कोई सर्वे या अध्ययन मौजूद नहीं है. 

लेकिन आदिवासी समुदायों में शायद ही किसी समुदाय में इस क़ानून को माना जाता है. हमारा अनुभव बताता है कि आदिवासी समुदायों में से अधिकतर अभी भी अपने परंपरागत नियमों से ही ज़्यादा चलते हैं.

इसके अलावा आदिवासी समुदायों में बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम जैसे क़ानूनों के बारे में जानकारी का अभाव भी है. इसलिए संसदीय समिति का यह मानना कि इस विषय पर व्यापक विचार-विमर्श और फ़ीडबैक की ज़रूरत है, बिलकुल सही नज़र आता है. 

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