HomeGround Report27 साल से एक चिट्ठी का इंतज़ार करता यह आदिवासी खिलाड़ी

27 साल से एक चिट्ठी का इंतज़ार करता यह आदिवासी खिलाड़ी

तीर-कमान आदिवासी संस्कृति और जीवन का एक अहम हिस्सा है. प्राचीन काल से यह उनके जीवन यापन, सुरक्षा और परंपरा से जुड़ा हुआ हथियार है. आज जब दुनिया और हमारा देश काफ़ी बदल चुका है और तीर-धनुष अब हथियार के तौर पर नहीं बल्कि खेल के एक यंत्र के तौर पर इस्तेमाल होने लगा है.

आदिवासी भारत भी बदला है, लेकिन अभी भी तीर-कमान उनकी जीवन और परंपरा में अपनी अहमियत बनाए हुए है. किसी भी आदिवासी की तरह राजेश ने भी बचपन से ही तीर चलाना सीख लिया था. गाँव के बाक़ी बालकों की तरह उन्हें भी यह कला किसी ने सिखाई नहीं थी.

अपने परिवार और परिवेश में उनके लिए यह एक सामान्य बात थी. लेकिन जब वो स्कूल पहुँचे तो उनके खेल के टीचर ने उनमें कुछ ख़ास देखा. उनका निशाना और तीर की गति से वो चकित हो जाते. उन्होंने इस बालक पर विशेष ध्यान देना शुरू किया और उसे एक बड़े आयोजन में भेजा.

लड़के ने साबित किया की वो सचमुच में ही बेहद ख़ास है. वह इस आयोजन में गोल्ड मेडल जीत कर लाया था. जब वो इस आयोजन से लौटा तो जिला के सभी बड़े लोग ने उसका सम्मान किया. साल 1995 में उससे वादा किया गया था कि एक चिट्ठी आएगी जो उसे दुनिया में उस मुक़ाम पर पहुँचा देगी जिसकी कल्पना भी उसने नहीं की होगी.

लेकिन साल 2022 आ गया पर वो चिट्ठी नहीं आई, राजेश के मन में मलाल है…लेकिन करे क्या, तीरंदाज़ी में सर्वोच्च स्थान पाने और अपने देश को सम्मान दिलाने की ताक़त और हुनर रखने वाला यह संताल आदिवासी लड़का गाय-बैल चरा कर अपना गुज़र बसर करता है.

पूरी कहानी उनकी अपनी ज़ुबानी सुनने के लिए उपर के वीडियो लिेक को क्लिक कर सकते हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments