HomeAdivasi Dailyमणिपुर में सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन को लेकर 10 आदिवासी विधायकों ने जताया विरोध

मणिपुर में सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन को लेकर 10 आदिवासी विधायकों ने जताया विरोध

सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों दलों के विभिन्न सदस्य (मंत्री एल सुसिंद्रो, विधायक थोंगम शांति सिंह, करम श्याम, रमेश्वर और सत्ता पक्ष के इबोमचा) सुरजाकुमार को छोड़कर सभी विपक्षी विधायक एसओओ समझौते को निरस्त करने के प्रस्ताव के पक्ष में रहे.

कुकी ज़ोमी हमार समुदायों से संबंधित 10 विधायकों ने  एसओओ को निरस्त करने के आग्रह पर आपत्ति व्यक्त करते हुए एक बयान में कहा यह हमारे समुदाय के प्रति पूर्वाग्रह और घृणा से उत्पन्न एकतरफा प्रस्ताव है जो इस मुद्दे पर अदूरदर्शी दृष्टिकोण को दिखता है.

विधायकों ने एक बयान जारी कर कहा है कि हम जानना चाहते हैं कि क्या सदन द्वारा अपनाया गया प्रस्ताव जेएमजी की किसी रिपोर्ट या टिप्पणियों पर आधारित था? क्योंकि जेएमजी यह निर्धारित करने के लिए एकमात्र आधिकारिक संगठन है कि ज़मीनी नियमों का कोई उल्लंघन हुआ है या नहीं.

इनमें से सात विधायक बीजेपी से, दो कुकी पीपुल्स अलायंस से और एक निर्दलीय विधायक है. गुरुवार को प्रस्ताव पारित होने के वक्त ये सभी विधानसभा में मौजूद नहीं थे.

मणिपुर विधानसभा ने गुरुवार को सर्वसम्मति से केंद्र सरकार से कुकी-ज़ो यूजी समूह के सभी उग्रवादियों के साथ सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (एसओओ) समझौते को रद्द करने का आह्वान करने का संकल्प लिया.

यह निर्णय एसओओ समझौते के तहत कुकी उग्रवादी समूहों और विद्रोहियों द्वारा की गई ज्यादतियों और अत्याचारों पर चर्चा के बाद आया, जिसके बाद राज्य में मौजूदा कानून और व्यवस्था की स्थिति पर एक और चर्चा हुई, जिसे कांग्रेस विधायक दल के नेता ओ इबोबी ने उठाया.

सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों दलों के विभिन्न सदस्य (मंत्री एल सुसिंद्रो, विधायक थोंगम शांति सिंह, करम श्याम, एम रमेश्वर और सत्ता पक्ष के इबोमचा) सुरजाकुमार को छोड़कर सभी विपक्षी विधायक एसओओ समझौते को निरस्त करने के प्रस्ताव के पक्ष में रहे.

पिछले कुछ दिनों में, मैतेई समूह मांग भी कर रहे हैं कि एसओओ को वापस लिया जाए क्योंकि ऐसे उग्रवादी समूहों के सदस्यों ने मणिपुर में संघर्ष के दौरान हिंसा की है.

क्या है एसओओ

22 अगस्त 2008 को भारतीय केंद्र सरकार, मणिपुर सरकार और कुकी राष्ट्रीय संस्था  (KNO) के बीच सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन पर पहली बार हस्ताक्षर किए गए थे. इस समझौते में उग्रवादी समूह किसी भी प्रकार की हिंसा को पूरी तरह से रोकने पर सहमत हुए. इसके बाद केंद्र सरकार इसे प्रतिवर्ष बढाती रही है.

केंद्र और राज्य इस बात पर भी सहमत हुए कि यदि हस्ताक्षर करने वाले समूह समझौते की शर्तों का पालन करते हैं तो कोई भी सेना, अर्धसैनिक बल या राज्य पुलिस हस्ताक्षरकर्ताओं के खिलाफ कोई अभियान शुरू नहीं करेगा.

एक संयुक्त निगरानी समूह (जेएमजी) का गठन किया गया जिसमें प्रमुख सचिव, महानिरीक्षक, अतिरिक्त महानिदेशक , सेना, अर्धसैनिक बलों और गृह मंत्रालय के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया था.

मेजर जनरल अश्विनी सिवाच ने  भी इस विवादित मुद्दे पर दूसरे पक्ष को भी मौका देने की संयुक्त निगरानी समूह की जाँच के बाद फैसला सुनाने की राय दी. उन्होंने कहा कि समझौते की शर्तें तय हैं, उसी आधार पर फैसला होना चाहिए.

क्या हैं ये शर्तें

उग्रवादी समूहों के कैडरों को निर्दिष्ट शिविरों में रहना होगा.

शिविर का नियमित प्रशासन समूह के हाथ में होगा.

कैडरों को ₹6,000 का मासिक वजीफा दिया जाता है.

ऐसे शिविर आबादी वाले क्षेत्रों और राष्ट्रीय राजमार्गों के करीब नहीं होंगे.साथ ही, ऐसे शिविर अंतरराष्ट्रीय सीमा से दूर स्थित होने चाहिए.

यूजी समूह के कैडरों की एक पूरी सूची राज्य पुलिस की विशेष शाखा को नाम, जन्म तिथि और नवीनतम तस्वीरों के साथ प्रदान की जाती है. सभी कैडरों को पहचान जारी की जाती है.

यूजी समूह के कैडरों की एक पूरी सूची राज्य पुलिस की विशेष शाखा को नाम, जन्म तिथि और नवीनतम तस्वीरों के साथ प्रदान की जाती है. सभी कैडरों को पहचान पत्र जारी किये गये हैं.

समूह के नेताओं/कैडरों को बार-बार स्थानांतरित होने की आवश्यकता होती है, उन्हें आईजीपी (इंटेलिजेंस) मणिपुर द्वारा अलग-अलग फोटो पहचान पत्र दिए जाएंगे.

किसी भी समय 20% से अधिक कैडरों को शिविर छोड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी.

राज्य सरकार और जेएमजी सदस्य उल्लंघनों की जांच के लिए शिविर में निरीक्षण कर सकते हैं.

सभी हथियार शिविर के शस्त्रागार के भीतर डबल लॉकिंग सिस्टम में रखे जाएंगे, जिसमें एक चाबी समूह के पास और दूसरी संबंधित सुरक्षा बल के पास होगी.

कैडरों को अतिरिक्त हथियार, गोला-बारूद या सैन्य उपकरण हासिल करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.

उन्हें कैडरों की नई भर्ती करने या अतिरिक्त सैन्य/नागरिक संगठन/फ्रंट संगठन खड़ा करने या अपनी सरकार चलाने की कोशिश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.

वे सुरक्षा बलों या जनता के खिलाफ आक्रामक अभियान नहीं चलाएंगे.

वे स्मारकों का निर्माण नहीं करेंगे, झंडे नहीं फहराएंगे या सशस्त्र कैडरों की परेड नहीं निकालेंगे.

किसी भी उल्लंघन के मामले में, राज्य सरकार सू (एसएसओ) को रद्द कर सकती है लेकिन ऐसा केवल जेएमजी की सिफारिश पर ही किया जा सकता है.

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