HomeAdivasi Dailyझारखंड : 1932 खातियान मामला हेमंत सोरेन सरकार की परीक्षा लेगा

झारखंड : 1932 खातियान मामला हेमंत सोरेन सरकार की परीक्षा लेगा

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि स्थानीय नीति को लागू करने के मामले में सरकार कई सीढ़ी चढ़ी और उतरी है़ं. यह विषय हमेशा ही राज्य की राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है़. झारखंड राज्य गठन के 20 साल हो चुके हैं. इस दौरान 1932 खतियान की मांग उठती रही है़.

झारखंड विधान सभा के बजट सत्र के दूसरे दिन स्थानीय नीति को लागू करने का मामला उठाया गया. इस सिलसिले में विपक्ष के कुछ सदस्यों ने वर्ष 1932 को स्थानीय नीति बनाने का कटऑफ़ प्वाइंट रखने की माँग की है.

इस मसले को उठाते हुए कहा गया कि झारखंडी की पहचान अंतिम सर्वे 1932 के आधार पर ही होना चाहिए. इसके साथ ही माँग की गई कि सरकार इस पर जल्दी फैसला करे. 

आजसू (AJSU) विधायक डॉ लंबोदर महतो ने सरकार से पूछा कि 1932 के आधार पर स्थानीय नीति लागू कर यहां के खतियानी लोगों को अधिकार कब मिलेगा.

इस मसले पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि स्थानीय नीति को लागू करने के मामले में सरकार कई सीढ़ी चढ़ी और उतरी है़ं. यह विषय हमेशा ही राज्य की राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है़. झारखंड राज्य गठन के 20 साल हो चुके हैं. इस दौरान 1932 खतियान की मांग उठती रही है़.

मुख्यमंत्री ने इस सिलसिले में कोर्ट ऑर्डर का भी हवाला दिया. उन्होंने कहा कि तत्कालीन सरकार ने इसे परिभाषित भी किया था.

लेकिन उच्च न्यायालय ने उसे निरस्त कर दिया था़. मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार आदिवासी-मूलवासी के सवाल पर गंभीर है़. लेकिन कोई भी कदम उठाने से पहले न्यायालय के आदेश का अध्ययन करना होगा. उन्होंने आश्वासन दिया है कि सरकार जल्दी ही इस मसले पर कोई निर्णय लेने का प्रयास कर रही है. 

इस मसले को सदन में उठाने वाले सदस्यों का कहना है कि सरकार की नियोजन नीति के तहत राज्य के गैर आरक्षित मूलवासी के बच्चों को झारखंड में नौकरी से वंचित किया जा रहा है.

आजसू विधायक डॉ लंबोदर महतो ने अल्पसूचित के तहत पूछा था कि राज्य में तृतीय व चतुर्थ वर्ग की श्रेणी में नौकरी के लिए मैट्रिक व इंटरमीडिएट झारखंड से पास होना अनिवार्य किया गया है़.

भाषा, पहचान और ज़मीन का अधिकार झारखंड की राजनीति में बड़े मुद्दे रहे हैं

इस पर सरकार ने कहा है कि इसमें आरक्षण की श्रेणी में आनेवाले लोगों को बाहर पढ़ने के बावजूद आरक्षण का लाभ मिलेगा़.  इस मसले पर पक्ष-विपक्ष के विधायक एक स्वर में बोलते हुए नज़र आए.

उनका कहना था कि गैर आरक्षित खतियानी मूलवासियों को क्यों वंचित किया जा रहा़. अगर किसी मूलवासी का बच्चा बाहर पढ़ेगा, तो उसे क्यों रोका जा रहा है़ सरकार इस नीति में परिवर्तन लाया जाना चाहिए.

आजसू विधायक सुदेश महतो, माले विधायक विनोद सिंह, भाजपा विधायक भानु प्रताप शाही, नवीन जायसवाल, अमर बाउरी और विधायक प्रदीप यादव सहित कई विधायकों ने इस नीति पर आपत्ति जतायी़. 

मंत्री आलमगीर आलम का कहना था कि सरकार झारखंड के लोगों को ज्यादा से ज्यादा लाभ देना चाहती है़. 32 के खतियान का मामला विचाराधीन है़ और इस सिलसिले में त्रि-सदस्यीय उपसमिति जल्द बनेगी़. 

1932 खातियान है बड़ा राजनीतिक मुद्दा

झारखंड में स्थानीयता, भाषा का विवाद और 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति की मांग तेज होने लगी है. दरअसल, झारखंड राज्य की जब से स्थापना हुई तभी से 1932 के खतियान का जिक्र होता रहा है.

झारखंड गठन के बाद से ही समय समय पर इसकी मांग हो रही है. 1932 खतियान का मतलब यह है कि 1932 के वंशज ही झारखंड के असल निवासी माने जाएंगे. 1932 के सर्वे में जिसका नाम खतियान में चढ़ा हुआ है, उसके नाम का ही खतियान आज भी है. 

अगर थोड़ा पीछे देखें तो पता चलता है कि राज्य की राजनीति में यह एक संवेदनशील मुद्दा रहा है. इस मसले पर भाजपा मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की सरकार वर्ष 2002 में राज्य की स्थानीयता को लेकर डोमिसाइल नीति लाई थी.

सरकार के इस फ़ैसले का विरोध हुआ और राज्य में खूब प्रदर्शन हुए.  जगह-जगह पर आग जनी हुई और इस दौरान कई लोगों की मौत भी हुई. यह मामला झारखंड हाई कोर्ट पहुंच गया और कोर्ट ने इसे अमान्य घोषित करते हुए रद कर दिया. यह मामला इतना बड़ा हुआ कि बाबुलाल मरांडी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा. इसके बाद अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने थे.

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