आदिवासी और दलित कार्यकर्ता एक लंबे समय से कहते आए हैं कि इन समुदायों के छात्रों को उच्च शिक्षा संस्थानों में सामान्य से ज़्यादा दबाव और भेदभाव का सामना करना पड़ता है. और इसका एक बड़ा नतीजा होता है कि यह छात्र अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं.
अब यह बात संसद में केंद्र सरकार द्वारा भी मानी गई है.
हालांकि, शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने राज्यसभा को बताया कि ड्रॉपआउट मुख्य रूप से छात्रों की पसंद के अन्य विभागों या संस्थानों में सीट हासिल करने या किसी दूसरे व्यक्तिगत कारणों से हुए हैं. प्रधान केरल के सांसद वी. शिवदासन द्वारा पूछे गए एक सवाल का जवाब दे रहे थे.
नैशनल इंस्टीट्यूट रैंकिंग में पहले 10 स्थानों में खड़े सात आईआईटी से हुए ड्रॉपआउट के विश्लेषण से पता चलता है कि कुछ संस्थानों में असमानता ज़्यादा है.
आईआईटी गुवाहाटी का रिकॉर्ड सबसे ख़राब है. इसके 25 ड्रॉपआउट में से 88 प्रतिशत छात्र आरक्षित श्रेणियों से हैं. 2018 में आईआईटी दिल्ली से ड्रॉपआउट होने वाले 10 छात्रों में से सभी आरक्षित श्रेणियों से थे. 2019 को छोड़कर यह बात हर साल के लिए सही है.
दूसरी तरफ़ टॉप रैंकिंग पाने वाले आईआईटी मद्रास में पिछले पांच सालों में सिर्फ़ 10 छात्रों ने ड्रॉपआउट किया है, लेकिन इनमें से छह अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग से आते हैं. बाकि के चार दूसरे पिछड़े वर्गों से हैं.
आईआईटी खड़गपुर ने भी पिछले पांच सालों में 79 छात्रों को ड्रॉपआउट करते देखा. इनमें से 60 प्रतिशत से ज़्यादा आरक्षित श्रेणियों से हैं.