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70 साल पुरानी है यह आदिवासी लड़ाई, ज़मीन के हक़ से महरूम असम के मिसिंग

उनका घर (जिस भूमि पर वो रहते हैं) दो बड़ी नदियों - उत्तर में शक्तिशाली ब्रह्मपुत्र और पश्चिम में डिब्रू - से घिरा हुआ है. हर साल बारिश के मौसम में दोनों गांव बाढ़ से जूझते हैं, और ज़्यादातर लोगों को राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ती है. 1986 की आधिकारिक अधिसूचनाओं के बावजूद लाइका और डोढिया के इलाक़े के लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है. लाइका तिनसुकिया ज़िले के अंतर्गत है, जबकि डोढिया डिब्रूगढ़ ज़िले में शामिल है.

असम के डिब्रू सिकोवा नैशनल पार्क में स्थित लाइका और डोढिया गांवों के 2000 से ज़्यादा निवासी पिछले क़रीब एक महीने से स्थायी पुनर्वास के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. अब तक इस विरोध प्रदर्शन से जुड़े तीन लोगों के मरने की भी ख़बर है. उनका यह आंदोलन 70 सालों से जारी है, जब 1950 में एक भूकंप ने बड़े पैमाने पर राज्य को तबाह कर दिया था. भूकंप के बाद मिसिंग जनजाति के इन लोगों को तत्काल डिब्रू फ़ॉरेस्ट रिज़र्व में अस्थायी उपाय के तौर पर पुनर्वास दिया गया था. लेकिन जिस ज़मीन पर वो बसे हैं, उसका पट्टा इन आदिवासियों के पास नहीं है.

डिब्रू सिकोवा नैशनल पार्क

फ़िलहाल जो दस हज़ार लोग इन दोनों गांवों में रहते हैं, उनके पास बिजली और पानी जैसी ज़रूरी सुविधाएं भी नहीं हैं. और उनका घर (जिस भूमि पर वो रहते हैं) दो बड़ी नदियों – उत्तर में शक्तिशाली ब्रह्मपुत्र और पश्चिम में डिब्रू – से घिरा हुआ है. हर साल बारिश के मौसम में दोनों गांव बाढ़ से जूझते हैं, और ज़्यादातर लोगों को राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ती है. 1986 की आधिकारिक अधिसूचनाओं के बावजूद लाइका और डोढिया के इलाक़े के लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है. लाइका तिनसुकिया ज़िले के अंतर्गत है, जबकि डोढिया डिब्रूगढ़ ज़िले में शामिल है.

फ़िलहाल दोनों गांवों के दो हज़ार से ज़्यादा निवासी 21 दिसंबर से तिनसुकिया के कलेक्टर कार्यालय के बाहर डेरा डाले हुए हैं. उनकी मांग है कि उन्हें अपर दीहिंग रिज़र्व फॉरेस्ट डिवीज़न के ओगुरी क्षेत्र की प्रस्तावित 320 हेक्टेयर वन भूमि में स्थायी पुनर्वास दिया जाए. मिसिंग आदिवासियों के छात्र संगठन टाकम मिसिंग पोरिन केबांग के अनुसार पुनर्वास का मुद्दा 1999 से बना हुआ है जब डिब्रू सिकोवा वाइल्डलाइफ़ सैंक्चुअरी को नैशनल पार्क में तब्दील कर दिया गया था. यह अपग्रेड जंगल में रहने वाले इन आदिवासियों के अधिकारों का भी उल्लंघन है.

मिसिंग आदिवासियों का यह भी आरोप है कि उनकी ज़मीन धीरे-धीरे उनकी सहमति के बिना छीन ली गई. 1999 में इन गांवों के सैंक्चुअरी का हिस्सा बनने से पहले, 1997 में 765 वर्ग किमी भूमि को बायोरिज़र्व घोषित कर दिया गया था, जिससे इन समुदायों का जंगल में प्रवेश सीमित हो गया.

विरोध प्रदर्शन करते मिसिंग आदिवासी

दरअसल, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के बाद से नैशनल पार्क के अंदर किसी भी प्रकार की मानव बस्ती पर प्रतिबंध है. 30 दिसंबर को असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने लाइका और डोढिया गांवों के पुनर्वास का समाधान खोजने के लिए एक समिति का गठन किया, और 31 जनवरी तक इस कार्य को पूरा करने के लिए भी कहा है. इसके तहत डोढिया के लोगों के पुनर्वास के लिए लखीमपुर में जगह प्रस्तावित की गई है, और लाइका के लोगों के लिए नम्फ़ाई रिज़र्व फॉरेस्ट में जमीन दी गई है. लेकिन इस प्रस्ताव को इन आदिवासियों ने अस्वीकार कर दिया गया है.

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