HomeAdivasi Dailyछत्तीसगढ़: आठ वर्षीय आदिवासी लड़की माओवादी विस्फोट में हुई घायल

छत्तीसगढ़: आठ वर्षीय आदिवासी लड़की माओवादी विस्फोट में हुई घायल

घटना के समय सुनिता अपनी मां के साथ राशन खरीदने के लिए बाजार जा रही थी. तभी उसने गलती से रास्ते में रखे आईईडी बम पर अपना पैर रख दिया, जिसके बाद विस्फोट के कारण पीड़िता और उसकी मां दोनों ही घयाल हो गए.

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बीजापुर ज़िले (Bijapur District) के चेरपाल (cherpal) में माओवादी विस्फोट के कारण एक आठ वर्षीय आदिवासी लड़की की घायल (Minor tribal girl injured) होने की खबर सामने आई है. यह घटना शुक्रवार, 12 जनवरी की बताई जा रही है.

इस बारे में मिली जानकारी के अनुसार पीड़िता का नाम सुनिता हेमला है और वो स्थानीय पोटा केबिन स्कूल में कक्षा 2 की छात्रा है.

पुलिस अधिकारी के मुताबिक घटना के समय सुनिता अपनी मां के साथ राशन खरीदने के लिए बाजार जा रही थी. तभी उसने गलती से रास्ते में रखे आईईडी बम पर अपना पैर रख दिया, जिसके बाद विस्फोट के कारण पीड़िता और उसकी मां दोनों ही घयाल हो गए.

घटना के तुरंत बाद माओवादी पीड़िता और उसकी मां को इलाज के लिए पास के जंगल में स्थापित अपने चिकित्सा केंद्र में ले गए.  

घटना के बाद से ही पुलिस और माओवादियों द्वारा अलग-अलग तर्क दिए जा रहे हैं.

सीपीआई (माओवादी) की पश्चिम बस्तर डिवीजन कमेटी द्वारा एक बयान में यह बताया गया है कि लड़की जीवित है.

माओवादियों ने जारी किए गए बयान के समर्थन में सुनीता की एक तस्वीर भी साझा की थी.

वहीं पुलिस के अनुसार पीड़िता की अभी तक पहचान नहीं हो पाई है और घटना की जांच की जा रही है.

एक पुलिस अधिकारी पी. सुंदरराज ने बताया की पीड़िता नक्सली आईईडी विस्फोट में घायल हुई थी. पीड़िता के घायल होने के बाद माओवादी उसे जंगल में ले गए थे. हम पीड़िता और उसकी मां का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं.

शुक्रवार की रात बीजापुर ज़िले में एक और घटना हुई है. पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक पुसनार के जंगल में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ के दौरान एक माओवादी कमांडर को मार दिया गया है.

इस माओवादी कमांडर पर एक लाख रूपये का इनाम रखा गया था. मृतक माओवादी की पहचान जन मिलिशिया (पीपुल्स आर्मी) कमांडर टोया पोटाम के रूप में की गई है.

छत्तीसगढ़ में अक्सर माओवादी और पुलिस के बीच संघंर्ष देखने को मिलता रहा है. लेकिन सबसे दुखद बात ये है की इनके बीच की लड़ाई की कीमत आदिवासी को चुकानी पड़ती है.

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